रानिल विक्रमसिंघे ने Srilanka के 8वें राष्ट्रपति पद की शपथ ली, दिवालिया देश को बचाने की है जिम्मेदारी

रानिल विक्रमसिंघे श्रीलंका के 8वें राष्ट्रपति बने हैं। अभी तक वे कार्यवाहक राष्ट्रपति थे। इस रेस में उनका मुकाबला पोदुजाना पेरामुना (SLPP) के दुल्लास अलहप्परुमा और जनता विमुक्ति पेरामुना (JVP) के नेता अनुरा कुमारा दिसानायके से था। श्रीलंका में राष्ट्रपति इलेक्शन के 44 साल के इतिहास में पहली बार त्रिकोणीय मुकाबला हुआ।

Dheerendra Gopal | Published : Jul 21, 2022 3:28 PM IST

कोलंबो। रानिल विक्रमसिंघे को श्रीलंका की संसद ने अपना नया राष्ट्रपति चुन लिया है। गुरुवार को विक्रमसिंघे ने राष्ट्रपति पद की शपथ ले ली। रानिल विक्रमसिंघे ने सांसद बनने के ठीक 45 साल बाद गुरुवार को श्रीलंका के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। अब नए राष्ट्रपति पर दिवालिया देश को बचाने और राजनीतिक स्थिरता बहाल करने का सारा दारोमदार होगा। छह बार के प्रधानमंत्री रहे विक्रमसिंघे ने प्रधान न्यायाधीश जयंत जयसूर्या के समक्ष गुरुवार को कड़े सुरक्षा वाले संसद परिसर में श्रीलंका के 8वें कार्यकारी राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली।

गोटाबया राजपक्षे के देश छोड़ने के बाद नया राष्ट्राध्यक्ष

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73 वर्षीय विक्रमसिंघे ने अपने पूर्ववर्ती गोटाबया राजपक्षे के देश छोड़कर जाने और महीनों के सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बाद पिछले सप्ताह इस्तीफा देने के बाद कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला था। बुधवार को सांसदों ने दिग्गज नेता को श्रीलंका का राष्ट्रपति चुना। उन्होंने 225 सदस्यीय सदन में 134 वोट हासिल किए, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी और असंतुष्ट सत्तारूढ़ दल के नेता दुल्लास अलहप्परुमा को 82 वोट मिले। वामपंथी जनता विमुक्ति पेरामुना नेता अनुरा कुमारा दिसानायके को सिर्फ तीन वोट मिले।

कई चुनौतियों से जूझना पड़ेगा राष्ट्रपति को

रानिल विक्रमसिंघे को देश की कई चुनौतियों से जूझना पड़ेगा। उन्हें देश को उसके आर्थिक पतन से बाहर निकालने और महीनों के बड़े विरोध के बाद व्यवस्था बहाल करने के कार्य का सामना करना पड़ेगा।
हालांकि, उन्होंने पिछले हफ्ते कार्यवाहक राष्ट्रपति का पद ग्रहण करने के साथ ही सेना को शांति बहाली के लिए कोई भी कदम उठाने का आदेश दिया था। दरअसल, राजपक्षे परिवार के खिलाफ हद से अधिक विरोध के बाद जनता के आगे इस परिवार को झुकना पड़ा और सभी लोगों को पद छोड़ना पड़ा था। प्रधानमंत्री पद से महिंदा राजपक्षे के इस्तीफा के बाद रानिल विक्रमसिंघे को बीते दिनों पीएम बनाया गया था। हालांकि, प्रदर्शनकारी विक्रमसिंघे की भी इस्तीफा की मांग कर रहे थे। लेकिन राष्ट्रपति चुने जाने के पहले ही विक्रमसिंघे ने प्रदर्शन को दबाने के लिए सुरक्षा बलों को लगा दिया। चुनाव के दौरान कोई उपद्रव न हो इसलिए इसके पहले ही पूरे देश में आपातकाल लागू कर दिया गया है।

राष्ट्रपति चुने जाने के बाद क्या कहा?

अपनी जीत के बाद संसद में अपने संबोधन में विक्रमसिंघे ने कहा कि देश बहुत मुश्किल स्थिति में है और आगे बड़ी चुनौतियां हैं। उन्होंने विपक्षी दलों से श्रीलंका को जंगल से बाहर निकालने के लिए उनके साथ हाथ मिलाने का आग्रह करते हुए कहा कि लोग हमसे पुरानी राजनीति नहीं पूछ रहे हैं। हम पिछले 48 घंटों से बंटे हुए थे। वह अवधि अब खत्म हो गई है। हमें अब साथ मिलकर काम करना होगा।
उन्होंने कहा कि अब चुनाव खत्म हो गया है, हमें इस बंटवारे को खत्म करना होगा, अब से मैं आपसे बातचीत के लिए तैयार हूं।

देशहित में विपक्षी दल आ रहे साथ

गुरुवार को, श्रीलंका के विपक्ष के नेता साजिथ प्रेमदासा ने राष्ट्रपति विक्रमसिंघे से मुलाकात की और संकटग्रस्त राष्ट्र में आपदा को रोकने के लिए उनकी सरकार को अपनी पार्टी के रचनात्मक समर्थन की पेशकश की। आईएमएफ के साथ अहम बातचीत का नेतृत्व कर रहे विक्रमसिंघे ने पिछले हफ्ते कहा था कि बातचीत खत्म होने वाली है। श्रीलंका को अपने 2.2 करोड़ लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए अगले छह महीनों में करीब 5 अरब डॉलर की जरूरत है। पूरे देश में आवश्यक सामानों, बिजली, ईंधन, दवाईयों के लिए जूझ रहे हैं।

2020 में हार गए थे चुनाव

विक्रमसिंघे के पास राजपक्षे का शेष कार्यकाल पूरा करने का जनादेश है, जो नवंबर 2024 में समाप्त होगा। लगभग पांच दशकों तक संसद में रहे विक्रमसिंघे को उनकी यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के लगभग दो साल बाद मई 2022 में प्रधान मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था जबकि 2020 में हुए आम चुनाव में एक भी सीट जीतने में विफल रहे।

राजनीतिक हलकों में व्यापक रूप से एक ऐसे व्यक्ति के रूप में पहचान है जो दूरदर्शी नीतियों के साथ अर्थव्यवस्था का प्रबंधन कर सकता है। भारत और उसके नेताओं के करीबी माने जाने वाले विक्रमसिंघे ने अपने करियर के दौरान कई अहम पदों पर काम किया है। विक्रमसिंघे ने 1977 से अगस्त 2020 तक लगातार संसद का प्रतिनिधित्व किया। लेकिन 2020 में वह कोलंबो जिले से संसद में प्रवेश करने में विफल रहे। लेकिन उन्होंने जून 2021 में संसद में वापसी की। 

राष्ट्रपति का चुनाव हारे लेकिन किस्मत से बने

विक्रमसिंघे राष्ट्रपति पद पर अपने प्रयासों के साथ बदकिस्मत थे। 1999 में, वह एक करीबी मुकाबले में चंद्रिका कुमारतुंगा से हार गए। कुमारतुंगा पर लिट्टे के अलगाववादियों द्वारा किए गए आत्मघाती बम विस्फोट के प्रयास ने उनके प्रति सहानुभूति की लहर पैदा कर दी, जिससे विक्रमसिंघे की संभावना नष्ट हो गई। 2005 में, तमिलों के बीच लिट्टे के नेतृत्व वाले वोट बहिष्कार के कारण वह महिंदा राजपक्षे से हार गए। विक्रमसिंघे ने मंदी के कारण होने वाली आर्थिक कठिनाइयों से निपटने के लिए अपने तत्काल कार्य में द्विदलीयता विकसित करने का संकल्प लिया है। उन्होंने हमेशा भारत के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे हैं। 2015-19 से विक्रमसिंघे के प्रीमियर के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने दो बार श्रीलंका का दौरा किया।

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