असद शासन के पतन के बाद सीरिया पर बमबारी क्यों कर रहे इजरायल, अमेरिका और तुर्की?

सीरिया में विद्रोहियों ने असद सरकार को गिरा दिया है, लेकिन अब नए खतरे मंडरा रहे हैं। पश्चिमी देशों को चिंता है कि सीरियाई सेना के हथियार आतंकी संगठनों के हाथ लग सकते हैं। इजरायल, अमेरिका और तुर्की ने इसी डर से सीरिया में हवाई हमले किए हैं।

वर्ल्ड डेस्क। सीरिया में विद्रोहियों ने राजधानी दमिश्क पर कब्जा कर पूर्व राष्ट्रपति बशर अल-असद की सरकार गिरा दी। इसके साथ ही 13 साल से चल रहे गृह युद्ध का समापन हो गया। इसके बाद भी इजरायल, अमेरिका और तुर्की द्वारा सीरिया के सैन्य ठिकानों पर बमबारी की जा रही है। आइए जानते हैं ऐसा किस डर की वजह से किया जा रहा है।

सीरिया के जिन विद्रोहियों ने सत्ता पर कब्जा किया है उनके संबंध IS (Islamic State) और अल कायदा जैसे आतंकी संगठनों से रहे हैं। यही वजह है कि पश्चिमी देशों को डर है कि सीरिया की सेना के हथियारों के भंडार विद्रोहियों के हाथ लग जाएंगे। इससे आने वाले दिनों में बड़ा खतरा पैदा हो सकता है।

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अमेरिका ने ISIS के 75 से अधिक ठिकानों पर बमबारी की

पिछले कुछ दिनों में सीरिया में प्रमुख ठिकानों पर दर्जनों हवाई हमले किए गए हैं। यूएस सेंट्रल कमांड (CENTCOM) ने कहा कि उसने ISIS के 75 से अधिक ठिकानों पर हमला किया है। इसका लक्ष्य असद के शासन के अंत के बाद अराजक स्थिति का फायदा उठाने से आईएस को रोकना है।

इजराइल के विदेश मंत्री गिदोन सा’र ने सोमवार को कहा कि हमारी वायु सेना ने सीरिया में संदिग्ध रासायनिक हथियार स्थलों को निशाना बनाया है। इन हमलों का उद्देश्य ऐसे हथियारों को विद्रोहियों के हाथों में पड़ने से रोकना है। असद के शासन के समय सीरिया की सरकारी सेना के पास 2720 टैंक, 47 लड़ाई करने वाले पानी के जहाज, 295 सेल्फ प्रोपेल्ड आर्टिलरी, 614 मल्टीपल रॉकेट लॉन्चर और 459 विमान थे।

इजरायल ने सीरिया के सैन्य ठिकानों पर गिराए बम

इजरायल, अमेरिका और तुर्की ने सीरिया में प्रमुख सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले किए हैं। इन देशों को डर है कि ISIS सीरिया की सरकारी सेना के हथियारों पर कब्जा कर सकता है। ऐसा नहीं हो इसके लिए सैन्य ठिकानों को तबाह किया जा रहा है। असद को ईरान और रूस के साथ-साथ लेबनानी आतंकवादी समूह हिजबुल्लाह से भी मदद मिली थी। वहीं, अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश विद्रोही गठबंधन के प्रमुख समूह हयात तहरीर अल-शाम (HTS) को आतंकवादी संगठन मानते हैं।

सीरिया में अमेरिका के करीब 900 सैनिक तैनात हैं। ये सीरिया के उत्तर-पूर्व में कुर्द-नियंत्रित तेल ड्रिलिंग क्षेत्रों और दक्षिण-पूर्व में एक गैरीसन में हैं। सीरिया के गृहयुद्ध में अमेरिका की भूमिका कई बार बदली है। अमेरिका ने हमेशा इस्लामिक स्टेट के बचे हुए लोगों से लड़ने पर ध्यान केंद्रित किया है।

2 सप्ताह में कैसे बदला सीरिया का नक्शा

रूस और ईरान की मदद से बशर अल-असद एक दशक से ज्यादा समय तक सत्ता में रहे। पिछले दो सप्ताह पहले विद्रोही बलों ने हमला तेज किया। विद्रोहियों ने पिछले सप्ताह सीरिया के उत्तर-पश्चिम के ज्यादातर हिस्से पर कब्जा कर लिया। विद्रोहियों ने पहले अलेप्पो, फिर हामा और होम्स पर कब्जा किया। रविवार को वे सीरिया की राजधानी दमिश्क में घुस गए। सरकारी सेनाएं बिना लड़े पीछे हट गई।

सीरिया में गृह युद्ध की शुरुआत 2011 में हुई थी। लोगों ने असद की सरकार के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध किया था, लेकिन सरकार ने इसे क्रूर तरीके से दबाने की कोशिश की। इसके चलते गृह युद्ध शुरू हो गया। अपने शुरुआती वर्षों में इस्लामी चरमपंथियों और उदारवादी समूहों सहित विद्रोहियों ने देश के अधिकांश हिस्से पर कंट्रोल कर लिया था। 2014 तक उन्होंने उत्तर-पश्चिम, हामा, दमिश्क, इजरायल के साथ दक्षिण-पूर्वी सीमा और उत्तर-पूर्व में फरात और अल-हसाका प्रांतों के कुछ हिस्सों में गढ़ बनाए थे।

2014 में इस्लामिक स्टेट के उदय और असद के लिए रूस के सैन्य समर्थन ने स्थिति बदली। इस्लामिक स्टेट ने अपने क्षेत्र का विस्तार उत्तरपूर्वी सीरिया में किया। वहीं, रूस ने हवाई हमले कर विद्रोही समूहों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। ईरान और हिजबुल्लाह के लड़ाकों ने असद की सेना की मदद की। इससे असद की सेना ने 2016 में अलेप्पो और 2017 में यूफ्रेट्स के साथ कई शहरों पर फिर से कब्जा कर लिया। 2019-2020 तक सरकारी सेना ने विद्रोहियों को इदलिब प्रांत में धकेल दिया था। रूस के यूक्रेन के साथ लड़ाई में व्यस्त होने और ईरान के इजरायल के साथ उलझने से विद्रोही बलों को 2024 में बड़ा मौका मिला। विद्रोही संगठन एकजुट हुए और HTS के नेतृत्व में सरकार द्वारा कंट्रोल किए गए क्षेत्रों पर हमला शुरू कर दिया। असद की सेना लड़ने की जगह पीछे हट गई। हजारों सैनिकों ने वर्दी उतार दिया। बहुत से सैनिक इराक भाग गए।

यह भी पढ़ें- सीरिया में सत्ता पलट: भारत पर क्या होगा असर, जानें विदेश मंत्रालय ने क्या कहा?

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