
US Iran Airstrikes: अमेरिका ने ईरान के फोर्डो (Fordow), नतांज (Natanz) और इस्फहान (Esfahan) स्थित न्यूक्लियर फैसिलिटीस पर एयरस्ट्राइक कर इजरायल के साथ हाथ मिला लिया है। अमेरिकी हवाई हमले ने ईरान को रणनीतिक रूप से बढ़त दे दी है। ट्रंप ने ईरान को शांति या युद्ध की चुनौती दी। उधर, ईरान भी किसी सूरत में झुकने को तैयार नहीं है। लेकिन अमेरिकी कदम के बाद ईरान कूटनीतिक रूप से बढ़त बनाता दिख रहा है।
अमेरिका (United States) ने शुक्रवार को ईरान के तीन प्रमुख परमाणु स्थलों पर हमला किया है। यह हमला 1979 की ईरानी क्रांति के बाद पहला ऐसा अवसर है जब वॉशिंगटन ने सीधे तौर पर ईरानी धरती पर रणनीतिक ठिकानों को निशाना बनाया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने हमले के बाद धमकी दी है कि ईरान को अब शांति बनानी चाहिए, वरना अगला हमला कहीं ज़्यादा बड़ा और आसान होगा।
ट्रंप शासन के आदेश पर अमेरिकी हमला भले ही सैन्य कार्रवाई के साथ राजनीतिक दांव दिख रहा है लेकिन इसमें अमेरिका को कम ईरान को अधिक फायदा होता दिख रहा है। विश्लेषकों के मुताबिक, ट्रंप ने यह हमला कर ईरान को दोराहे पर खड़ा कर दिया है या तो वह बदला ले और जंग में पूरी तरह कूदे, या फिर संयम रखे और घरेलू समर्थन खोए। ट्रंप की रणनीति साफ है: अगर ईरान पलटवार करता है तो अमेरिका उसे ‘आक्रमणकारी’ बता कर पूर्ण युद्ध छेड़ देगा, और कहेगा, हमने शुरुआत नहीं की थी।
ईरान के विदेश मंत्रालय ने हमले को अंतरराष्ट्रीय कानूनों और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का गंभीर उल्लंघन बताया। उन्होंने कहा कि यह हमला ईरान की सम्प्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ आपराधिक अमेरिकी आक्रामकता है जिसमें इजरायल की मिलीभगत है। ईरान ने यह भी चेतावनी दी है कि वह अपने नागरिकों और क्षेत्र की रक्षा के लिए हर आवश्यक कदम उठाएगा और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) से कार्रवाई की मांग की है। यह अंतरराष्ट्रीय मंच पर ईरान की कूटनीतिक जीत मानी जा रही है।
हालांकि, ईरान के लिए सीधा अमेरिकी ठिकानों पर हमला करना आत्मघाती हो सकता है। सैन्य ताकत के फर्क के अलावा, ऐसा जवाब ट्रंप को वह कारण दे देगा जिसकी उन्हें तलाश है, एक पूर्ण युद्ध की घोषणा। जानकार मानते हैं कि तेहरान इस वक्त अमेरिका को सीधी टक्कर देने के बजाय इजरायल के खिलाफ हमले जारी रख सकता है जिससे वॉशिंगटन पर दबाव बना रहे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इजरायल आक्रमणकारी के रूप में दिखे।
यह हमला ट्रंप के उस बयान से उलट है जिसमें वह "फॉरएवर वॉर्स" (Forever Wars) से अमेरिका को निकालने की बात करते थे। घरेलू राजनीति में डेमोक्रेट्स ने इस कार्रवाई की कड़ी आलोचना की है। वहीं रिपब्लिकन पार्टी के अंदर भी कुछ वर्ग इस हमले से असहज हैं। अगर ईरान झुक जाता है तो ट्रंप इसे अपनी जीत बताएंगे लेकिन अगर युद्ध लंबा खिंचता है तो उन्हें एक और विदेश नीति विफलता का सामना करना पड़ सकता है। खासकर ऐसे वक्त में जब पाकिस्तान ने उन्हें भारत-पाक संघर्ष में मध्यस्थता के लिए नोबेल शांति पुरस्कार का समर्थन किया है।
ईरान ने 1968 में परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर किए थे और 1970 में इसे एक गैर-परमाणु राष्ट्र के रूप में स्वीकृत किया। हालिया तनावों के बीच तेहरान इस संधि से बाहर निकलने पर विचार कर रहा था। लेकिन अब उसे एक और रास्ता मिल गया है, वह कह सकता है कि युद्ध के हालात में उसके संवर्धित यूरेनियम का क्या हुआ, यह पता नहीं। यह रणनीतिक अस्पष्टता अमेरिका और पश्चिमी देशों को असमंजस में रखेगी।
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