
Protests That Changed Governments: नेपाल में 8 सितंबर को भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया पर लगाए गए बैन के चलते युवाओं का गुस्सा फूट पड़ा। इसके बाद भीड़ ने संसद भवन में घुसकर तोड़फोड़ और आगजनी की। पुलिसिया कार्रवाई में 20 लोगों की जान चली गई, जबकि 250 से ज्यादा घायल हुए हैं। बढ़ते जनविरोध के चलते नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा। बता दें कि दुनिया भर में विरोध-प्रदर्शन और आंदोलनों के चलते कई बार राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और दूसरे बड़े नेताओं को जनता के गुस्से का शिकार होना पड़ा है। ये आंदोलन उस देश में फैले भ्रष्टाचार, अराजकता, इकोनॉमिक मिसमैनेजमेंट या सत्ता के दुरुपयोग के चलते हुए हैं। जानते हैं दुनिया के ऐसे ही 10 सबसे बड़े आंदोलनों के बारे में, जिन्होंने राष्ट्राध्यक्षों की कुर्सी तक हिला दी।
क्यों हुआ विरोध: सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लेकर भेदभाव बरते जाने के खिलाफ छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया, जो धीरे-धीरे एक आंदोलन में बदल गया। इसके चलते देशभर में हिंसा हुई। प्रदर्शनकारियों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना के सरकारी आवास पर धावा बोल दिया। इसके बाद उन्हें देश छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी।
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क्यों हुआ विरोध: आर्थिक पतन, अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार को लेकर लोगों में गुस्सा पनपा, जो धीरे-धीरे बढ़ता गया। महीनों तक चली अशांति के बाद आंदोलन का रूप ले चुकी भीड़ ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के सरकारी आवासों पर धावा बोल दिया। इसके चलते तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा। वहीं, प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को भी इस्तीफा देना पड़ा, जिसके बाद सत्ता का हस्तांतरण हुआ।
क्यों हुआ विरोध: 2021 के सैन्य तख्तापलट के बाद नागरिक शासन की वापसी की मांग को लेकर हजारों लोगों ने विरोध-प्रदर्शन करते हुए मार्च निकाला। लोगों का लक्ष्य एक नागरिक-लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना करना था, जो सूडानी लोगों की सेवा करे। इसके जवाब में उन्हें सेना के घातक बलप्रयोग का सामना करना पड़ा, जिसमें 53 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। बाद में सूडान के 15वें प्रधानमंत्री अब्दुल्ला हमदोक ने एक खतरनाक राजनीतिक संकट की चेतावनी देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
क्यों हुआ विरोध: इस आंदोलन को हिराक नाम से भी जाना जाता है। फरवरी 2019 में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर शुरू हुए इस आंदोलन का मकसद तत्कालीन राष्ट्रपति अब्देलअजीज बुउटफ्लिका को पांचवें कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ने से रोकना था, जो हेल्थ इश्यू के बावजूद पद पर बने रहना चाहते थे। लाखों अल्जीरियाई लोगों ने विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया और अप्रैल 2019 में बुउटफ्लिका को इस्तीफा देना पड़ा।
क्यों हुआ विरोध: 2020 के किर्गिस्तान आंदोलन मुख्य रूप से संसद चुनावों में धांधली के विरोध में हुआ था। चुनाव में धोखाधड़ी के आरोपों के बाद कई दिनों तक अशांति रही और भीड़ ने सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया। इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति जीनबेकोव ने इस्तीफा दे दिया और सदिर जापारोव ने कार्यवाहक राष्ट्रपति का पद संभाला था।
क्यों हुआ विरोध: सरकारी भ्रष्टाचार को निशाना बनाकर लेबनान की जनता ने 13 दिनों तक लगातार प्रदर्शन किया। विरोध के चलते लेबनान के तत्कालीन प्रधान मंत्री साद हरीरी ने 29 अक्टूबर 2019 को इस्तीफा दे दिया। ये आंदोलन देश की आर्थिक गिरावट, भारी भ्रष्टाचार और सांप्रदायिक राजनीतिक व्यवस्था के खिलाफ शुरू हुए थे।
क्यों हुआ विरोध: बोलीविया में समाजवादी राष्ट्रपति इवो मोरालेस को प्रदर्शनकारियों और सेना के दबाव में झुकना पड़ा। करीब 14 साल तक सत्ता में रहने के बाद 10 नवंबर 2019 को उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। प्रदर्शनकारियों ने मोरालेस पर चुनावों में धांधली करने का आरोप लगाया था।
क्यों हुआ विरोध: नेपाल में भ्रष्टाचार और 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन को लेकर हजारों की संख्या में युवाओं ने संसद भवन पर हमला कर दिया। इस पर पुलिस ने लोगों पर गोलियां चलाई, जिसमें 20 लोगों की जान चली गई और 200 से ज्यादा लोग घायल हुए। जनता के गुस्से को देखते हुए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया। इतना ही नहीं, डिप्टी पीएम विष्णु प्रसाद को भीड़ ने दौड़ा-दौड़ाकर पीटा।
क्यों हुआ विरोध: कंबोडिया के साथ लीक हुई बातचीत और सैन्य कुप्रबंधन के आरोपों को लेकर हजारों लोगों ने जुलाई 2025 में पैतोंगटार्न शिनावात्रा के इस्तीफे की मांग की। ये उनकी पार्टी के सत्ता में आने के बाद से सबसे बड़ी रैली थी। बाद में अगस्त 2025 में उन्हें प्रधानमंत्री के पद से हटा दिया गया। बता दें कि 1 जुलाई 2025 को, थाईलैंड की कोर्ट ने शिनावात्रा को निलंबित करने का आदेश दिया था।
क्यों हुआ विरोध: ये आंदोलन मुख्य रूप से भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शन था, जो जनवरी 2025 में एक स्टेशन की छत ढहने के चलते शुरू हुआ था। इस आंदोलन के चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री मिलोस वुसेविक को 28 जनवरी 2025 को इस्तीफा देना पड़ा था। प्रदर्शनकारियों ने सत्ता में बैठे लोगों पर भ्रष्टाचार और शासन की विफलता का आरोप लगाते हुए इस्तीफे की मांग की।
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