
बीजिंग। चीन (China) में सत्तारुढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (Communist Party of China) ने अपने कोर लीडर शी जिनपिंग (Xi Jinping) को राष्ट्रपति (President) का तीसरा कार्यकाल सौंपने पर मुहर लगा दी है। जिनपिंग, माओ के बाद पार्टी के इकलौते कोर लीडर (core leader) हैं। 100 साल पुरानी पार्टी के इतिहास में तीसरा संकल्प पत्र भी चार दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन में पेश किया गया। बंद कमरे में गुप्त तरीके से हो रहे अधिवेशन में शी यहां के सबसे शक्तिशाली लीडर होकर उभरे हैं। एक तानाशाह की भांति शी जिनपिंग के खिलाफ अब चीन में आवाज उठाना गुनाह होगा, ऐसे लब की आजादी पर पहरा बिठा दिया गया है और राष्ट्रपति के खिलाफ एक भी शब्द बोलने पर सलाखों के पीछे धकेल दिया जाएगा।
370 मेंबर शामिल हैं अधिवेशन में
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सौ साल पूरे हो गए हैं। सौ साल के उपलक्ष्य में पार्टी चार दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन कर रही है। इस अधिवेशन में पार्टी के 370 सीनियर मेंबर शामिल हैं जो बडे़ फैसले लेंगे। इसी अधिवेशन में पार्टी की सौ साल की उपलब्धियों पर चर्चा के साथ शी जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल का रास्ता प्रशस्त किया जाएगा।
माओ से भी आगे निकलेंगे शी?
चीन पर राज कर रही कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना की स्थापना जुलाई 1921 में की गई थी। अपने स्थापना के सौ साल पूरे होने पर पार्टी इस बार तीसरा संकल्प पत्र जारी कर रही है। इसके पहले 1945 और दूसरी बार 1981 में संकल्प पत्र पढ़ा गया था। पहले संकल्प पत्र में माओत्से तुंग (Mao Tse Tung) और दूसरे में देंग जियाओपिंग (Deng Jia Oping) की शक्तियों को बढ़ाया गया था। अब तीसरे संकल्प पत्र से शी जिनपिंग को सबसे शक्तिशाली बनाया जा रहा है। वह माओ के बाद पार्टी के कोर लीडर भी चुने जा चुके हैं।
पहले संकल्प-पत्र में पार्टी के संघर्षों पर बात
माओ के संकल्प-पत्र का नाम- ‘रिजॉल्यूशन ऑन सर्टेन क्वेश्चन्स इन द हिस्ट्री ऑफ अवर पार्टी’ था। इसमें शंघाई नरसंहार से लेकर लॉन्ग मार्च तक के पार्टी के बीते दो दशकों के संघर्ष पर बात की गई थी। पार्टी काडर की वफ़ादारी हासिल करने के लिए ऐसा किया गया था। इसके बाद माओ ने सितंबर 1976 में अपने मरने तक चीन पर शासन किया।
दूसरे संकल्प पत्र में माओ की आलोचना
माओ की मौत के बाद डेंग जियाओपिंग चीन के सुप्रीम लीडर बने। 1981 में वो दूसरा संकल्प-पत्र लेकर आए। इसमें पार्टी की स्थापना से लेकर उनके समय तक के इतिहास का ज़िक्र किया गया था। संकल्प-पत्र में जियाओपिंग ने माओ की नीतियों की आलोचना की थी और माओ की नीतियों में भारी फेरबदल किया था। उन्होंने इकोनॉमिक रिफॉर्म्स पर काफी जोर दिया था, जिससे चीन के बाज़ार बाकी दुनिया के लिए खुलने लगे थे।
दूसरी बार राष्ट्रपति बनते ही शी ने कार्यकाल की बाध्यता खत्म की
शी जिनपिंग सबसे पहली बार 2012 में चीन के राष्ट्रपति बने। अपने पहले कार्यकाल में ही वह 2016 में पार्टी के कोर लीडर चुने गए। माओ के बाद वह कोर लीडर बनने वाले पहले नेता थे। इसके बाद दुबारा वह राष्ट्रपति चुने गए। अपने दूसरे कार्यकाल में वह 2018 में तीसरे कार्यकाल की बाध्यता समाप्त करते हुए पार्टी में नया प्रस्ताव लेकर आए और पास करवाया। अगले साल उनका तीसरा कार्यकाल शुरू होने वाला है। राष्ट्रीय अधिवेशन में उनके तीसरे कार्यकाल पर मुहर लग जाएगी। हालांकि, पार्टी के नए प्रस्ताव के बाद वह आजीवन राष्ट्रपति रह सकते हैं।
चीन के तानाशाह बन चुके हैं शी
शी जिनपिंग के कार्यकाल में चीन में मानवाधिकारों का सबसे अधिक हनन हुआ। उइगरों के कत्लेआम पर तो पूरी दुनिया में किरकिरी हुई लेकिन उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा। अपने पड़ोसियों की जमीन को हथियाने के लिए शी प्रशासन ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। भारत-चीन के मध्य एलएसी विवाद इसी का नतीजा है। चीन डिजिटल क्रांति में भी काफी पीछे है। यहां इंटरनेट की आजादी नहीं है। ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में भी यह काफी पीछे होने के साथ मीडिया यहां की स्वतंत्र नहीं है। सबसे अधिक मौत की सजा भी यहीं दी जाती है। दरअसल, शी जिनपिंग माओ से आगे निकलने की होड़ में चल रहे हैं।
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