सार

यह भारत की पहली और दुनिया की सबसे बड़ी ग्रीन हाइड्रोजन (Green Hydrogen) आधारित ऊर्जा भंडारण प्रोजेक्‍ट होगा। जानकारी के अनुसार यह परियोजना बड़े पैमाने पर हाइड्रोजन ऊर्जा भंडारण प्रोजेक्‍ट्स के लिए एक अग्रदूत साबित होगी और देश के विभिन्न ऑफ-ग्रिड और रणनीतिक स्थानों में कई माइक्रोग्रिड (Micro Grid) की स्‍टडी और तैनाती के लिए उपयोगी होगी।

बिजनेस डेस्‍क। पॉवर सेक्‍टर की दिग्गज कंपनी एनटीपीसी (NTPC) ने बुधवार को कहा कि उसने आंध्र प्रदेश के सिम्हाद्री में एक स्टैंडअलोन फ्यूल-सेल बेस्‍ड ग्रीन हाइड्रोजन माइक्रोग्रिड प्रोजेक्‍ट (Green Hydrogen Microgrid) की शुरू करेगी। जो देश को कार्बनमुक्‍त बनाने में मददगार होगी। यह भारत की पहली और दुनिया की सबसे बड़ी ग्रीन हाइड्रोजन आधारित ऊर्जा भंडारण परियोजना होगी। जानकारी के अनुसार यह परियोजना बड़े पैमाने पर हाइड्रोजन ऊर्जा भंडारण प्रोजेक्‍ट्स के लिए एक अग्रदूत साबित होगी और देश के विभिन्न ऑफ-ग्रिड और रणनीतिक स्थानों में कई माइक्रोग्रिड की स्‍टडी और तैनाती के लिए उपयोगी होगी।

ऐसे तैयार होगा सॉलिड हाइड्रोजन
एनटीपीसी के अनुसार निकटवर्ती फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट से इनपुट पावर लेकर उन्नत 240 किलोवाट (kW) सॉलिड ऑक्साइड इलेक्ट्रोलाइजर का उपयोग करके हाइड्रोजन का उत्पादन होगा। धूप के घंटों के दौरान उत्पादित हाइड्रोजन को उच्च दबाव में स्‍टोर किया जाएगा और 50 किलोवाट ठोस ऑक्साइड ईंधन सेल का उपयोग करके विद्युतीकृत किया जाएगा। यह सिस्टम शाम 5 बजे से सुबह 7 बजे तक स्टैंडअलोन मोड में काम करेगा। "इस प्रोजेक्‍ट का कांफ‍िगरेशन एनटीपीसी द्वारा इन-हाउस डिजाइन किया गया है जो लद्दाख और जम्मू-कश्मीर जैसे डीकार्बोनाइजिंग क्षेत्रों के लिए दरवाजे खोलेगा।

 

 

कहां उपयोग की जा सकती है गैस
यह ग्रीन हाइड्रोजन पूरी तरह से कार्बन फ्री होगी। ग्रीन हाइड्रोजन से रिफाइनिंग सेक्टर, फर्टीलाइजर सेक्टर, एविएशन सेक्टर और यहां तक कि स्टील सेक्टर में भी ऊर्जा की सप्लाई की जा सकेगी। मौजूदा समय में इन सेक्‍टर्स में तेल या गैस आधारित ऊर्जा लगती है जिसमें पॉल्‍यूशन काफी ज्‍यादा होताा है। देश में रिन्यूएबल एनर्जी की कॉस्टिंग काफी कम है। जैसा कि सोलर एनर्जी पर प्रति यूनिट 2 रुपए से कम लागत आती है। इसी तरह से रिन्यूएबल एनर्जी के इस्तेमाल से ग्रीन हाइड्रोजन पैदा करना आसान और सस्ता होगा।

कॉस्‍टिंग पर दिया जा रहा है ध्‍यान
भारत में ग्रीन हाइड्रोजन की टेक्नोलॉजी पहले से है लेकिन इसकी विधि काफी है, जिसके लिए इसकी कॉस्टिंग पर ध्‍यान दिया जा रहा है। इसका उत्‍पादन बढ़ाने के लिए इसी तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार आने वाले समय में भारत प्रति किलो ग्रीन हाइड्रोजन का खर्च 2 डॉलर प्रति किलो तक लाने का विचार कर रहा है। ताकि ऊर्जा के क्षेत्र में इसकी उपयोगिता को बढ़ाया जा सके। अभी यह खर्च 3 से 6.5 डॉलर तक है। इसलिए सरकार सोलर एनर्जी के माध्‍यम से ग्रीन हाइड्रोजन बनाने जा रहा है। भारत में सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएं हैं और यह सस्ती भी है। सौर ऊर्जा से ग्रीन हाइड्रोजन बनेगा और उस ऊर्जा को निर्यात कर भारत अच्छी कमाई करेगा। भारत का पूरा जोर आने वाले समय में ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में ग्लोबल हब बनने पर है।

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50 साल पहले शुरू हुआ था काम
भारत में ग्रीन हाइड्रोजन बनाने का काम देश में 50 साल पहले शुरू हो चुका था। 1970 के दशक में ग्रीन हाइड्रोजन पर अच्छी सफलता मिली थी। भारत में 1970 में फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन बना था जो बाद में एनएफएल के तौर पर परिवर्तित हुआ। एनएफएल के पास उस वक्त एक ग्रीन पॉवर प्लांट था जो भाखड़ा नांगल बांध से जुड़ा था। भाखड़ा के पानी को उपयोग में लेने के लिए एक वाटर इलेक्ट्रोलीसिस प्लांट बनाया गया था। शुरू में इस प्लांट से ग्रीन हाइड्रोजन बनाया जाता था, लेकिन बाद में नाइट्रोजन बनाया जाने लगा जो कि ग्रीन एनर्जी का ही एक हिस्सा था। यह नाइट्रोजन गैस भी पानी से बनती थी, इसलिए इससे पैदा होने वाली बिजली ग्रीन एनर्जी की श्रेणी में दर्ज थी।