सार
जानकारी के मुताबिक प्रदेश में 32 हजार 541 ऐसे सरकारी स्कूल हैं, जहां बच्चों के खेलने तक की व्यवस्था नहीं है। इन स्कूलों में न तो खेल का मैदान है और कहीं-कहीं तो खेल-कूद का सामान ही नहीं। ऐसे में सवाल है कि जब मैदान ही नहीं तो बच्चे खेलेंगे कहां?
करियर डेस्क : मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में पढ़ाई से बेटियों का मोह भंग होता जा रहा है। सरकारी स्कूलों में अव्यवस्था के चलते बड़ी संख्या में लड़कियां पढ़ाई बीच में ही छोड़ दे रही हैं। 22 जुलाई, 2022 को लोकसभा में दी गई एक जानकारी के मुताबिक राज्य के सरकारी स्कूलों में न तो टॉयलेट की व्यवस्था है और ना ही पीने के पानी की। लाइब्रेरी, लैब जैसी बेसिक फैसिलिटी तो दूर की ही बात है। संसद में जो जानकारी दी गई, उसके अनुसार, राज्य में 10 हजार 630 लड़कियों ने स्कूल छोड़ दिया है। इसका सबसे बड़ा कारण है सरकारी स्कूलों में साफ टॉयलेट और लड़कियों की सेफ्टी। इस रिपोर्ट के बाद सरकार के उस दावे पर सवाल उठने लगा है, जिसमें साउथ कोरिया और दिल्ली जैसे एजुकेशन मॉडल की चर्चा होती है।
रिपोर्ट बता रहे हाल
मध्यप्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग की तरफ से स्कलों को लेकर एक रिपोर्ट भी जारी की गई है। यह रिपोर्ट प्रदेश के 98,663 प्राइमरी और मिडिल स्कूलों का हाल बता रहे हैं। रिपोर्ट में जो जानकारी दी गई है, उसके मुताबिक 2,762 कन्या विद्यालय ऐसे हैं, जहां टॉयलेट ही इस्तेमाल के लायक नहीं है, इससे लड़कियों को काफी परेशानी होती है और उन्हें बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। इसके अलावा लड़कियों के स्सूल छोड़ने की जो वजहें सामने आई हैं, उनमें साफ टॉयलेट न होने से पीरियड्स के वक्त लड़कियां बीमार हो जाती हैं। स्कूलों में असामाजिक तत्वों से सुरक्षा का भी खतरा है।
कहीं क्लास रूम नहीं, कहीं पीने का पानी
रिपोर्ट के मुताबक प्रदेश के 1500 स्कूलों में पीने के पानी की ही व्यवस्था नहीं है। वहीं, इतने ही स्कूल ऐसे हैं, जहां क्लास रूम तक नहीं। 22 हजार विद्यालयों की तो यह कंडीशन है कि वहां क्लास रूम इतना जर्जर है कि कब गिर जाए, पता नहीं, वहीं 19 हजार में ज्यादा स्कूलों को मरम्मत की दरकार है। 36 हजार स्कूल ऐसे हैं, जहां बिजली ही नहीं और 32 हजार 541 सरकारी स्कूलों में खेल का मैदान ही नहीं है। जबकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत ऑनलाइन शिक्षा के लिए स्मार्ट क्लास रूम और कम्प्यूटर एजुकेशन अनिवार्य है। बच्चों की हाइजिन को लेकर भी स्कूलों में किसी तरह की व्यवस्था नहीं है। कोरोना के बाद बच्चों की सुरक्षा के लिहाज से हाथों को साफ रखने के लिए 20 हजार ऐसे स्कूल हैं, जहां हैंड वॉशिंग यूनिट नहीं है और 34 हजार स्कूलों में इसकी व्यवस्था ही नहीं।
स्कूलों में बदहाली की रिपोर्ट (कहां क्या नहीं है)
खराब टॉयलेट- 11,409 स्कूलों में
लड़कियों के लिए अगल टॉयलेट- 2022 स्कूलों में
दिव्यांग लड़को के लिए टॉयलेट- 93,166 स्कूलों में
दिव्यांग लड़कियों के लिए टॉयेलट- 94,238 स्कूलों में
पीने का पानी- 1,520 स्कूलों में
बिजली- 36,498 स्कूलों में
क्लासरूम- 1,498 स्कूलों में
क्षतिग्रस्त क्लासरूम- 41,826 स्कूलों में (कम या ज्यादा क्षतिग्रस्त)
खेल का मैदान- 32,541 स्कूलों में
नोट- आंकड़े एमपी स्कूल शिक्षा विभाग की तरफ से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक हैं।
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