सार
Talent Vs Money: जिंदगी के सफर में टैलेंट्स पर गरीबी भारी पड़ रही है। महज 17500 रुपये नहीं जुटा पाने की वजह से यूपी का दलित अतुल कुमार आईआईटी धनबाद में एडमिशन से वंचित कर दिया गया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मेधावी अतुल की मेधा को परखा और डेडलाइन बीतने के बाद भी एडमिशन के लिए अनुमति दे दी। गरीबी से हारने के बाद अतुल कुमार को तो न्याय मंदिर में सफलता मिल गई लेकिन ओडिशा के शंकरसन मंडल को अभी भी न्याय की उम्मीद लगाए बैठे हैं। शंकरसन को तमिलनाडु के सरकारी मेडिकल कॉलेज में सीट तो मिल गई है लेकिन महज 93 हजार नहीं जुटा पाने की वजह से एडमिशन से वंचित हैं।
पहले जानते हैं अतुल कुमार की कहानी?
यूपी के मुजफ्फरनगर के टिटोडा गांव के रहने वाले अतुल कुमार ने आईआईटी प्रवेश परीक्षा क्रैक किया था। अतुल को आईआईटी धनबाद में इलेक्ट्रानिक्स में सीट पहले राउंड में अलॉट हुआ। लेकिन खराब आर्थिक स्थिति की वजह से वह कॉलेज की डेडलाइन तक अपनी फीस नहीं जमा कर सके। 24 जून तक फीस जमा करने की तारीख थी। दलित परिवार से ताल्लुक रखने वाले अतुल के पिता एक फैक्ट्री में मजदूरी करते हैं जबकि मां गृहणी हैं। गांव में चंदा एकत्र कर परिवारवाले पैसा जबतक जमा कर पाते तबतक कॉलेज में फीस जमा कर एडमिशन लेने की समय-सीमा समाप्त हो गई। अतुल कुमार बताते हैं कि ऑनलाइन वेबसाइट पर वह सिर्फ डॉक्यूमेंट ही सबमिट कर पाए थे। इसके बाद उन्होंने झारखंड हाईकोर्ट, मद्रास हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। नाउम्मीद होने के बाद वह सुप्रीम कोर्ट की शरण में पहुंचे। 30 सितंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने सुनवाई की।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने स्टूडेंट का हौसला आफजाई करते हुए यह कहा कि कोर्ट पूरी मदद करेगा। उन्होंने कॉलेज को नोटिस जारी किया। सीजेआई ने कहा कि हम ऐसे ही एक टैलेंटेड लड़के को जाने नहीं दे सकते। वह हर जगह न्याय की गुहार लगा चुका है। हम इसका आईआईटी धनबाद में एडमिशन के लिए आदेश देते हैं। इसका एडमिशन उसी बैच में किया जाएगा जिसमें इसका दाखिला होने वाला था। इसको एडमिशन लेने में सिर्फ एक ही बाधा थी कि वह फीस नहीं भर सका। इसके बाद सीजेआई ने ऑल द बेस्ट कहते हुए कहा कि अच्छा करिए।
लेकिन शंकरसन मंडल को कब मिलेगा न्याय?
अतुल कुमार को एडमिशन तो मिल रहा है लेकिन गरीबी की मार में एक और टैलेंट ओडिशा के शंकरसन मंडल को कब न्याय मिलेगा। शंकरसन मंडल ने नीट परीक्षा पास की है। कंधमाल जिले के एक रिमोट गांव मुनीगुडा के रहने वाले शंकरसन के पिता माणिक मंडल और मां देवकी दिहाड़ी मजदूर हैं। शंकरसन को तमिलनाडु के सरकारी कुड्डालोर मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की सीट मिली है। लेकिन उनके एडमिशन में भी फीस आड़े आ रही है। कॉलेज की फीस 93 हजार रुपये दिहाड़ी मजदूरी करने वाले अभिभावक भरने में असमर्थ हैं। अपने टैलेंट के बल पर शंकरसन ने परीक्षा तो पास कर ली लेकिन फीस कहां से लाए यह समझ नहीं पा रहा है। मां-बाप की आर्थिक स्थिति भी ऐसी नहीं कि वह कोई मदद कर सकें। शंकरसन बताते हैं कि उन्होंने कई बैंकों के अलावा ओडिशा के सीएम से मदद की गुहार लगाई है।
बहरहाल, यह कहानी किसी अतुल कुमार या शंकरसन मंडल तक सीमित नहीं है। देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे तमाम मेधावियों का टैलेंट गरीबी से जूझते हुए दम तोड़ दे रहा है। नीट या आईआईटी जैसे परीक्षाओं को यह आसानी से पास तो कर ले रहे लेकिन पैसों के अभाव में फीस भरने में असफल साबित हो रहे।
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