सार
इस खदान की मंजूरी के लिए राजस्थान की तरफ से लंबे समय से कवायद चल रही थी। पिछले महीने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत छत्तीसगढ़ आए थे और उन्होंने भूपेश बघेल से मुलाकात भी की थी। जिसके बाद दोनों के बीच सहमति बनने की भी बात कही जा रही थी।
रायपुर : राजस्थान (Rajasthan) को रोशन करने छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के जंगल पर संकट आ गया है। दोनों राज्यों के बीच लंबे समय से चल रही बैठक के बाद आखिरकार वन विभाग ने परसा ओपन कास्ट कोयला खदान (Parsa Open Coal Mine) के लिए वन भूमि के उपयोग की मंजूरी दे दी है। इससे राजस्थान में बिजली संकट दूर होने का रास्ता तो साफ हो जाएगा लेकिन सरगुजा और सूरजपुर जिलों में पड़ने वाले इस क्षेत्र के जंगल साफ हो जाएंगे। परसा परियोजना 841.538 हेक्टेयर वन भूमि पर शुरू होगी। यही कारण है कि इस क्षेत्र में आने वाले जंगलों के पेड़ काट दिए जाएंगे। इतना ही नहीं बड़ी संख्या में लोगों को गांव भी खाली करना पड़ेगा।
15 शर्तों के साथ मंजूरी
- परसा कोयला खनन परियोजना की क्षमता हर साल पांच लाख मीट्रिक टन की होगी। वन विभाग ने 15 शर्तों के साथ इसे मंजूरी दी है।
- डायवर्ट किए गए क्षेत्र, प्रतिपूरक वनीकरण के तहत क्षेत्र, मिट्टी और नमी संरक्षण कार्यों, वन्यजीवों के संबंध में ई-ग्रीन वॉच पोर्टल पर डिजिटल मैप फाइल अपलोड करना होगा।
- वन भूमि की कानूनी प्रक्रिया में किसी तरह का बदलाव नहीं होगा
- जंगल को जो भी नुकसान होगा, उसके लिए तीन साल के अंदर नए क्षेत्र में एक हजार प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पौधारोपण
- नोडल एजेंसी और खदान संचालक को भारतीय वन्य जीव संस्था, देहरादून की बायो डायवर्सिटी रिपोर्ट में दिए सुझावों का पालन करना होगा
- सेफ्टी जोन की सीमा निर्धारित रहेगी। खनन की वजह से बाहर का क्षेत्र प्रभावित होने पर उसे रिस्टोर करना होगा।
न पेड़ बचेंगे, न जंगल
इस परियोजना के तहत ही हसदेव अरण्य आता है। यही कारण है कि इस पर भी खतरा मंडराने लगा है। लंबे समय से छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के तहत इस परियोजना का विरोध किया जा रहा है। इस ग्रुप की माने तो सरकार ने जो मंजूरी दी है, उसके कारण एक लाख 70 हजार हेक्टेयर का जंगल खत्म हो जाएगा। यहां से गुजरने वाली नदियों पर भी इसका असर होगा कई गांव भी उजड़ जाएंगे।
लंबे समय से विरोध में हैं ग्रामीण
इधर, इस परियोजना का कई ग्रामीण भी लंबे समय से विरोध कर रहे हैं। जो गांव इस परियोजना से प्रभावित होंगे, उनमें फतेहपुर, साल्ही, हरिहरपुर, घाटबर्रा समेत कई अन्य गांव हैं। ग्रामीण लगातार इसके विरोध में हैं। उन्होंने इसके लिए पिछले साल 300 किलोमीटर की पदयात्रा भी की थी और सीएम और राज्यपाल से इसके समाधान की मांग भी की थी लेकिन उनकी मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। ग्रामीणों की मांग है को दोनों खदानों की अंतिम मंजूरी को तत्काल रूप से वापस लिया जाए। फर्जी ग्राम सभा की शिकायत की जांच कर संबंधित अधिकारियों पर एक्शन हो। लोकतांत्रित आंदोलन और ग्राम सभा के अधिकारों को सम्मानित किया जाए। जो कंपनियां दबाव बनाकर खनन करने की कोशिश कर रही हैं उन पर तुरंत रोक लगे। हसदेव अरण्य क्षेत्र को संरक्षित करने का काम हो।
दो चरण में परियोजना को मंजूरी
बता दें कि राजस्थान की तरफ से जो कहा जा रहा है उसके मुताबिक राज्य में कोयले की कमी से बिजली आपूर्ति नहीं हो पा रही है। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जुलाई 2019 में ही परसा कोयला खदान को मंजूरी दी थी। फरवरी 2020 में केंद्रीय वन मंत्रालय ने इसके पहले चरण को हरी झंडी दिखाई थी जबकि अक्टूबर 2021 में दूसरे चरण की मंजूरी दी गई थी और छह अप्रैल 2022 को छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार ने भी वन भूमि देने पर अपनी मुहर लगा दी।
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