सार
मानसा विधानसभा क्षेत्र से 1954 में जंगीर सिंह जोगा मुजारा आंदोलन के कट्टर नेता रहे हैं। खेत मजदूरों के हक में जोरदार आवाज उठाते रहे। उनका यहां अच्छा खासा होल्ड था। आंदोलन की वजह से उन्हें जेल में डाल दिया गया। इसी बीच, 1954 के विधानसभा चुनाव आ गए।
मनोज ठाकुर, मानसा। मानसा की फिजा में विरोध बसता है। हक के लिए यहां की जमीन लड़ना जानती है। यही जज्बा यहां के निवासियों में अभी भी बरकरार है। सफेद सोने की खान, यानी कपास की खेती के लिए चर्चित मानसा एक वक्त वामदलों का गढ़ रहा है। यहां इनकी सबसे मजबूत पकड़ रही है। उन दिनों कम्युनिस्टों के प्रभाव के कारण मानसा को पंजाब का 'मास्को' भी कहा जाता था। वक्त के साथ साथ वामपंथ यहां कमजोर पड़ गया। अब स्थिति यह है कि इनके नेता गुमनाम से हो गए हैं। हालांकि आज भी यदि सत्ता विरोधी सुर सबसे ज्यादा कहीं सुनाई पड़ते हैं तो वह है 'मानसा'।
मानसा विधानसभा क्षेत्र से 1954 में जंगीर सिंह जोगा मुजारा आंदोलन के कट्टर नेता रहे हैं। खेत मजदूरों के हक में जोरदार आवाज उठाते रहे। उनका यहां अच्छा खासा होल्ड था। आंदोलन की वजह से उन्हें जेल में डाल दिया गया। इसी बीच, 1954 के विधानसभा चुनाव आ गए। कॉमरेड तेजा सिंह सुतंतर के नेतृत्व वाली रेड पार्टी (कम्युनिस्ट) ने उन्हें मानसा निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा। लोगों ने जेल में बंद साथी जोगा को जिता कर विधानसभा भेजा। वह मनसा निर्वाचन क्षेत्र से तीन बार (1962, 1967 और 1972) फिर से चुने गए। यहां वामपंथ की इतनी मजबूत पकड़ रही कि 1980 में कॉमरेड बूटा सिंह ने कांग्रेस के सबसे बड़े नेता और मुख्यमंत्री के चेहरे तरलोचन सिंह रियासती को करीब 7,000 मतों के अंतर से हराया। उनका चुनाव प्रचार करने के लिए तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी विशेष रूप से आई थीं।
डेरा का प्रभाव बढ़ा तो कमजोर हो गए वामपंथी
इसी बीच, यहां डेरा का प्रभाव बढ़ने लगा, जिससे वामपंथी यहां कमजोर होते चले गए। मानसा के स्थानीय पत्रकार मलकीत सिंह बोपाराय ने बताया कि इस इलाके में एससी और ओबीसी वर्ग बहुत ज्यादा है। यहां खेती और कॉटन मिल ही ज्यादा होते थे। मिल में मजदूरों तो खेत में दिहाड़ी करने वालों का शोषण होता था। इसके खिलाफ आवाज उठाते-उठाते यहां धीरे-धीरे वामपंथ मजबूत होता चला गया। एक वक्त तो शेड्यूल वर्ग में वामपंथ की इतनी जबदस्त पकड़ थी कि यहां हर जगह लाल झंडे ही दिखाई देते थे। आतंकवाद के वक्त सबसे ज्यादा मार वामपंथी नेताओं और कार्यकर्ताओं पर पड़ी। इसके बाद डेरा के प्रति यहां के लोगों का रूझान बढ़ गया। इस तरह से यह इलाका जो कम्युनिस्टों का गढ़ माना जाता रहा है, वहां कम्युनिस्ट काफी कमजोर हो गए थे।
आम आदमी पार्टी की ओर बढ़ रहा अब रूझान
1985 में अकाली दल के जसवंत सिंह फाफा भाई और 1992 के चुनाव में कांग्रेस के शेर सिंह गगोवाल ने यह सीट जीत। 1997 में सुखविंदर सिंह औलख और 2002 में कांग्रेस से बगावत करने के बाद शेर सिंह गगोवाल ने 2007 में भी अपनी सीट बरकरार रखी। इसी तरह शेर सिंह गगोवाल ने यह सीट तीन बार जीती। पीपीपी और सीपीआई के कॉमरेड हरदेव सिंह अर्शी ने 2012 के चुनावों में अपना अच्छा प्रदर्शन साबित किया। 31,400 से अधिक मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहे। अकाली दल के प्रेम मित्तल ने गगोवाल परिवार की बहू गुरप्रीत गगोवाल को हराया। आम आदमी पार्टी की आंधी के कारण 2017 के चुनाव में नजर सिंह मनशाहिया ने बड़े अंतर से जीत हासिल की, लेकिन बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए। इस बार कांग्रेस ने रैपर सिद्धू मुसेवाला को टिकट दिया है। आम आदमी पार्टी डॉक्टर विजय सिंगला, कैप्टन की पार्टी ने जीवन दास बावा, अकाली प्रेम कुमार अरोड़ा, संयुक्त किसान मोर्चा ने यहां से गुरनाम सिंह भिक्खी को टिकट दिया है।
संयुक्त किसान मोर्चा में विवाद के बाद उम्मीदवार हटाया
पंजाब किसान यूनियन के नेता गुरनाम सिंह भिक्खी को हटाने का ऐलान किया है। यूनियन के अध्यक्ष रलदू सिंह ने कहा कि क्योंकि उनकी यूनियन में यह मांग उठ रही कि चुनाव नहीं लड़ना। इस वजह से उन्होंने संयुक्त किसान मोर्चा को अपनी यूनियन के निर्णय के बारे में बता दिया है। क्योंकि अब नाम वापस तो लिया नहीं जा सकता, उनके उम्मीदवार गुरनाम सिंह का नाम ईवीएम में तो रहेगा, लेकिन वह चुनाव नहीं लड़ेंगे।
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पिछले 10 विधानसभा चुनावों की स्थिति
वर्ष | विजेता | नेता विरोधी |
1972 | जंगीर सिंह जोगा (भाकपा) | बलदेव सिंह (अकाली दल) |
1977 | बाबू देशराज (जनता पार्टी) | जंगीर सिंह जोगा (सीपीआई) |
1980 | बूटा सिंह (कम्युनिस्ट) | त्रिलोचन सिंह राज्य (कांग्रेस) |
(इन चुनावों में अकाली दल ने कम्युनिस्टों के साथ समझौता किया था)
वर्ष | विजेता | नेता विरोधी |
1985 | जसवंत सिंह फाफा भाई (अकाली दल) | रामपाल ढेपाई (कांग्रेस) |
1992 | शेर सिंह गगोवाल (कांग्रेस) | बूटा सिंह (सीपीआई) |
1997 | सुखविंदर सिंह औलख (अकाली दल) | बूटा सिंह (सीपीआई) |
2002 | शेर सिंह गगोवाल (निर्दलीय) | सुखविंदर सिंह औलख (अकाली दल) |
2007 | शेर सिंह गगोवाल (कांग्रेस) | सुखविंदर सिंह औलख (अकाली दल) |
2012 | प्रेम मित्तल (अकाली दल) | गुरप्रीत कौर गगोवाल (कांग्रेस) |
2017 | नज़र सिंह मनशाहिया (आप) | मनोज बाला (कांग्रेस) |
पिछले दो चुनावों में पार्टियों की स्थिति
2012 के विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवार को 55,714 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार को 54,409 वोट मिले थे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के हरदेव सिंह अर्शी 30,487 मतों के साथ तीसरे स्थान पर आए थे। उन्होंने मनप्रीत बादल की तत्कालीन पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। उस समय मानसा विधानसभा क्षेत्र से त्रिकोणीय मुकाबला था।
2017 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के नजर सिंह मनशाहिया विजयी रहे थे। उन्होंने कांग्रेस के मनोज बाला को 20,000 से अधिक मतों से हराया। मनशाहिया को 70,586 वोट मिले जबकि मनोज बाला को 50,117 वोट मिले। अकाली दल के जगदीप सिंह नकाई 44,232 मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहे। गौरतलब है कि नजर सिंह मनशाहिया बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए थे जबकि अकाली दल के जगदीप सिंह नकई भी अब अकाली दल को अलविदा कहते हुए भाजपा में शामिल हो गए हैं।