सार
लगभग सौ साल पहले जब लोग सार्वजनिक स्थलों पर एक साथ इकट्ठा होकर अपना मनोरंजन करते थे, तब 'नुक्कड़ नाटक' का चलन था। उसके बाद स्वतंत्रता संग्राम में भी इनका बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया। वही 'नुक्कड़ नाटकों' का एक आधुनिक और उन्नत रूप ही आज का सिनेमा है।
सिनेमा की अगर बात करें तो यह तकनीकी रूप से लगातार नई ऊँचाइयों को छू रहा है। और उस ऊँचाई को छूने वाली तकनीक की शुरुआत ही इन क्लैप बोर्ड से होती है। किसी भी फिल्म के सीन की शूटिंग शुरू करने से पहले, उस फिल्म का नाम, उस सीन का नंबर, और यह कितने नंबर का टेक है, ये सब बताकर एक व्यक्ति क्लैप बोर्ड को ज़ोर से बजाता है और हट जाता है।
उसके बाद ही अभिनेता, अभिनेत्रियाँ अपना अभिनय शुरू करते हैं। यह हमने कई फिल्मों में देखा होगा। लेकिन ऐसा क्यों किया जाता है, यह हम में से बहुत कम लोग जानते हैं। दरअसल, यह क्लैप बोर्ड सिर्फ़ एक औपचारिकता नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई महत्वपूर्ण बातें छिपी होती हैं।
क्लैप बोर्ड पर लिखी जाने वाली बातें
क्लैप बोर्ड पर फिल्म का नाम लिखा होता है, उसके बाद उस दिन शूट होने वाले सीन का नंबर लिखा होता है। इतना ही नहीं, उस सीन के कितने रीटेक लिए गए, और निर्देशक ने किस टेक को ओके किया, यह सब भी उस पर लिखा होता है। पहले यह क्लैप बोर्ड की जानकारियाँ मैन्युअल रूप से लिखी जाती थीं, लेकिन अब डिजिटल तरीके आ गए हैं।
फिल्म संपादक के लिए मददगार क्लैप बोर्ड
ऊपर बताई गई बातों के अलावा, जब एक क्लैप बोर्ड बजता है तो उसकी आवाज़ पास में रखे माइक्रोफ़ोन में रिकॉर्ड हो जाती है। अब इस क्लैप बोर्ड में दो महत्वपूर्ण जानकारियाँ दर्ज हो जाती हैं। पहला, ओके हुए टेक का विवरण और दूसरा, उस समय रिकॉर्ड की गई क्लैप की आवाज़। जब फिल्म संपादक फिल्म का संपादन करता है तो ये दोनों जानकारियाँ उसके लिए बहुत उपयोगी होती हैं।
कौन सा टेक ओके हुआ, और उसमें क्लैप कब बजाया गया, यह जानकर वह अपना काम आसानी से कर लेता है। देखने में भले ही यह छोटा सा लगता हो, लेकिन क्लैप बोर्ड फिल्म की धड़कन की तरह काम करता है।