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गणेश उत्सव: श्रीगणेश को तुलसी क्यों नहीं चढ़ाते, किसके कहने पर लिखी थी उन्होंने महाभारत ?
उज्जैन. भगवान श्रीगणेश को प्रथम पूज्य कहा जाता है यानी किसी भी शुभ काम में सबसे पहले इन्हीं की पूजा की जाती है। भगवान श्रीगणेश से जुड़ी ऐसी अनेक रोचक बातें हैं जिसे आमजन नहीं जानते हैं। गणेश उत्सव के मौके पर हम आपको भगवान श्रीगणेश से जुड़ी कुछ ऐसी हो रोचक बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार है…
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तुलसी ने दिया था श्रीगणेश को श्राप
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार तुलसी देवी गंगा तट से गुजर रही थी, उस समय वहां श्रीगणेश तप कर रहे थे। श्रीगणेश को देखकर तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया। तब तुलसी ने श्रीगणेश से कहा कि आप मेरे स्वामी हो जाइए, लेकिन श्रीगणेश ने तुलसी से विवाह करने से इंकार कर दिया। क्रोधवश तुलसी ने श्रीगणेश को विवाह करने का श्राप दे दिया और श्रीगणेश ने तुलसी को वृक्ष बनने का।
सखियों के कहने पर देवी पार्वती ने की थी श्रीगणेश की रचना
शिवमहापुराण के अनुसार माता पार्वती को श्रीगणेश का निर्माण करने का विचार उनकी सखियां जया और विजया ने दिया था। जया-विजया ने पार्वती से कहा था कि नंदी आदि सभी गण सिर्फ महादेव की आज्ञा का ही पालन करते हैं। अत: आपको भी एक गण की रचना करनी चाहिए जो सिर्फ आपकी आज्ञा का पालन करे। इस प्रकार विचार आने पर माता पार्वती ने श्रीगणेश की रचना अपने शरीर के मैल से की।
कैसा है श्रीगणेश के शरीर का रंग?
शिवमहापुराण के अनुसार श्रीगणेश के शरीर का रंग लाल और हरा है। श्रीगणेश को जो दूर्वा चढ़ाई जाती है वह जडऱहित, बारह अंगुल लंबी और तीन गांठों वाली होना चाहिए। ऐसी 101 या 121 दूर्वा से श्रीगणेश की पूजा करना चाहिए। श्रीगणेश का विवाह प्रजापति विश्वरूप की पुत्रियों सिद्धि और बुद्धि से हुआ है। श्रीगणेश के दो पुत्र हैं इनके नाम क्षेम तथा लाभ हैं।
श्रीगणेश ने लिखी की महाभारत
महाभारत ग्रंथ की रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी, लेकिन इसका लेखन भगवान श्रीगणेश ने किया था। भगवान श्रीगणेश ने इस शर्त पर महाभारत का लेखन किया था कि महर्षि वेदव्यास बिना रुके ही लगातार इस ग्रंथ के श्लोक बोलते रहें। तब महर्षि वेदव्यास ने भी एक शर्त रखी कि मैं भले ही बिना सोचे-समझे बोलूं लेकिन आप किसी भी श्लोक को बिना समझे लिखे नहीं। बीच-बीच में महर्षि वेदव्यास ने कुछ ऐसे श्लोक बोले जिन्हें समझने में श्रीगणेश को थोड़ा समय लगा और इस दौरान महर्षि वेदव्यास अन्य श्लोकों की रचना कर लेते थे।