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पशुओं से जन्में थे ये 5 पौराणिक पात्र, कोई बना राक्षस तो और ऋषि, किसी की आज भी होती है पूजा
उज्जैन. हमारे धर्म ग्रंथों में कई रोचक कथाएं बताई गई हैं। इन कथाओं में कई ऐसे पात्रों के बारे में भी बताया गया है जिनका जन्म किसी मनुष्य से नहीं बल्कि पशुओं से हुआ था। पशुओं से जन्म लेने के बाद भी इनमें से कुछ पात्र बहुत पूजनीय माने गए हैं। कुछ के बारे में तो आमजन को पता है, लेकिन कुछ के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। आज हम आपको धर्म ग्रंथों में कुछ ऐसे ही पौराणिक पात्रों के बारे में बता रहे हैं, जिनका जन्म पशुओं से हुआ था। आगे जानिए इन पात्रों के बारे में…
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धर्म ग्रंथों में हनुमानजी (Son Of Lord Hanuman) के पुत्र मकर ध्वज के बारे में बताया गया है। उसके अनुसार, जब हनुमानजी ने लंका दहन किया तो इसके बाद उन्होंने समुद्र में जाकर अपनी पूंछ में लगी आग बुझाई। इसी दौरान उनके शरीर से पसीने की बूंद समुद्र में जा गिरी, जिसे एक मछली ने निगल लिया। हनुमानजी के पसीने से वह मछली गर्भवती हो गई और उसी से मकर ध्वज का जन्म हुआ। मकर ध्वज अहिरावण को पाताल का राजा था, का सेवक था। जब अहिरावण ने श्रीराम और लक्ष्मण के पाताल लोक में बंदी बना लिया तो हनुमानजी उन्हें छुड़ाने गए, तभी उनका सामना मकर ध्वज से हुआ। मकर ध्वज के कई मंदिर हमारे देश में स्थित हैं।
पुराणों में महिषासुर नाम के एक पराक्रमी दैत्य का वर्णन है, जिसका वध करना देवताओं के लिए भी संभव नहीं था। तब देवताओं ने अपनी सयुंक्त शक्तियों से देवी दुर्गा का आवाहन किया और फिर देवी ने उस राक्षस का वध किया। इसलिए देवी का एक नाम महिषासुरमर्दिनी भी प्रसिद्ध है। इस दैत्य के जन्म की कथा भी बहुत रोचक है। उसके अनुसार, रंभ नाम का एक असुरों का राजा था। एक बार जब पर जल में स्नान कर रहा था, तभी उसे एक भैंस दिखाई दिया। काम के वशीभूत होकर रंभ ने उसके साथ समागम किया, जिससे महापराक्रमी महिषासुर का जन्म हुआ। महिषासुर अपनी इच्छा अनुसार, दैत्य और महिष यानी भैंस का रूप धारण कर सकता था।
महर्षि गोकर्ण का वर्णन श्रीमद्भागवत (Shrimad Bhagwat) में मिलता है। इनका जन्म गाय से हुआ था। कथा के अनुसार, एक ब्राह्मण की कोई संतान नहीं थी, उसकी पत्नी भी बहुत कुटिल थी। एक बार एक महात्मा ने ब्राह्मण को एक फल देकर कहा कि इसे अपनी पत्नी को खिला देना, इससे तुम्हें योग्य संतान की प्राप्ति होगी। ब्राह्मण ने वो फल अपनी पत्नी को दे दिया, लेकिन उसने वो फल स्वयं न खाते हुए अपनी गाय को खिला लिया। पति को शक न हो इसके लिए वह कुछ दिन के लिए अपनी बहन के घर चली गई और उसके पुत्र को अपना बताकर उसका पालन-पोषण करने लगी। फल के प्रभाव से गाय गर्भवती हो गई और उसने एक मनुष्य रूपी पुत्र के जन्म दिया, उसके कान गाय की तरह थे, इसलिए उसका नाम गोकर्ण रखा गया। गोकर्ण महान तपस्वी और धर्मात्मा मुनि थे। उन्होंने ही श्रीमद्भागवत की कथा लोगों को सुनाई थी।
रामायण (Ramayan) के अनुसार विभाण्डक नाम के एक तपस्वी ऋषि थे। एक बार जब में नदी में स्नान कर रहे थे, तभी वहां एक अप्सरा को देखकर उनके मन में विकार आ गया और उनका वीर्य स्खलित हो गया। उस वीर्य को पानी के साथ एक हिरणी ने पी लिया। उसी से मुनि ऋष्यशृंग का जन्म हुआ। हिरणी से जन्म लेने के कारण ऋष्यशृंग के सिर पर एक सिंग था। इनका विवाह भगवान श्रीराम की बहन शांता से हुआ था। इन्होंने ही राजा दशरथ का पुत्रकामेष्ठि यज्ञ संपन्न करवाया था, जिससे श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ था।
सत्यवती भीष्म के पिता राजा शांतनु की दूसरी पत्नी थीं। इनका पालन-पोषण एक केवट ने किया था। सभी लोग ये मानते हैं कि ये केवट की ही पुत्री थीं, लेकिन ऐसा नहीं है। महाभारत (Mahabharata) के अनुसार, उपरिचर नाम के एक राजा थे। एक बार जब वे जंगल में शिकार करने गए तो वन की मादकता देखकर उनके मन में विकार आ गया, जिससे उनका वीर्य स्खलित हो गया। उस वीर्य को राजा उपरिचर ने एक पत्ते में एकत्रित कर अभिमंत्रित कर दिया और एक पक्षी के माध्यम से अपनी रानी के पास भेज दिया। रास्ते में दूसरे पक्ष ने उस पर हमला कर दिया, जिससे वह वीर्य नदी में जा गिरा और उसे मछली ने पी लिया। उस मछली को मछुआरों ने जब पकड़ा और काटा तो उसमें से एक लड़का और लड़की निकली। जब ये बात राजा उपरिचर को पता चली तो उन्होंने लड़के को अपने पास रख लिया और लड़की को केवट को दे दिया। यही लड़की आगे जाकर सत्यवती के रूप में प्रसिद्ध हुई और राजा शांतुनु की पत्नी बनी।
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