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कबाड़ का कमाल: एक लेडी IAS ने बेकार प्लास्टिक की बोतलों से बनवा दिया ये पब्लिक टॉयलेट
इस समय असम में चुनावी माहौल गर्म है। हर चुनाव में विकास एक अहम मुद्दा होता है। नेतालोग अपने-अपने चुनावी भाषणों में विकास के वादें करते हैं। लेकिन इन्हें अमल में लाने की जिम्मेदारी प्रशासन की होती है। प्रशासनिक व्यवस्था में बैठे अच्छे अधिकारी जनहित से जुड़े मुद्दों को बखूब निभाते हैं। आइए आपको मिलवाते हैं ऐसी ही आईएएस डॉ. लक्ष्मी प्रिया से। इनके नेतृत्व में असम के बोंगाईगांव जिले में पर्यावरण के अनुकूल कई योजनाओं पर काम हो रहा है। इनमें हैं-सौर स्ट्रीट लाइट लगाना, कचरे का प्रबंधन आदि। लेकिन सबसे अधिक चर्चा इनके बेकार प्लास्टिक बोतलों से बने पब्लिक टॉयलेट की हो रही है। इन्होंने करीब 8000 बेकार प्लास्टिक की बोतलों से इस टॉयलेट का निर्माण कराया है। इनका मानना है कि इन बोतलों के इस्तेमाल से न सिर्फ कचरे का सही प्रबंधन किया जा सकता है, बल्कि जरूरी चीजें भी बनाई जा सकती हैं।
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बोंगाईगांव जिले की उपायुक्त डॉ. लक्ष्मी प्रिया एमएस 2014 बैच की IAS ऑफिसर हैं। बेकार की प्लास्टिक बोतलों से पब्लिक टॉयलेट बनाने की इस योजना को ‘पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट’ (PHED) के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर शांतनु सूत्रधार के मार्गदर्शन में पूरा किया गया। डॉ. प्रिया बताती हैं कि यह कोई मुश्किल काम नहीं है। सबसे पहले बेकार प्लास्टिक बोतलों को इकट्ठा करके उन्हें साफ कर लिया जाता है। फिर उनमें रेत-सीमेंट, पुट्टी और चूरा भर दिया जाता है। यानी यह ईंट की तरह हो जाती हैं। इसके बाद उनसे दीवार खड़ी कर दी जाती हैं।
डॉ. प्रिया की इस अनूठी पहल से 17 फीट लंबा और 9 फीट चौड़ा पब्लिक टॉयलेट बनाया गया है। इसे दो भागों में बांटा गया है, ताकि महिला और पुरुष अलग-अलग इस्तेमाल कर सकें।
शांतनु सूत्रधार बताते हैं कि इस पब्लिक टॉयलेट को पूरा करने में 2 महीने का समय लगा। वे कहते हैं कि हमने आराम से काम किया, ताकि क्वालिटी प्रभावित न हो। टॉयलेट में बुजुर्गों और दिव्यांगों के लिए रैंप और रैलिंग भी लगाई गई है।
डॉ. प्रिया कहती हैं कि यह टॉयलेट एक मॉडल बनकर सामने आया है। अब वे इस प्रोजेक्ट को दूसरी जगह लागू करेंगी।
डॉ. प्रिया बताती हैं कि बोंगाईगांव असम का एक प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र है। इसलिए यहां बड़ी मात्रा में प्लास्टिक का कचरा निकलता है। यह प्रयोग इस कचरे से छुटकार दिलाएगा।