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लड़कियों को कॉपी देते थे बदले में मिलता था ईनाम, कुछ ऐसी थी जीतनराम मांझी की कॉलेज Life
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जीतनराम मांझी का जन्म 6 अक्तूबर 1944 को गया जिले के खिजरसराय प्रखंड के महकार गांव में हुआ। उनके पिता रामजीत राम मांझी खेत मजदूर थे। वह बचपन में सुकरी देवी और पिता के साथ गांव के ही एक जमींदार के घर में चाकरी भी किया करते थे।
(फाइल फोटो)
एक इंटरव्यू में मांझी ने कहा था कि एक गुरुजी जब जमींदार के बच्चे को पढ़ाने आते थे तो वह भी उत्सुकतावश उन चीजों को ध्यान से सुनते थे, जो बच्चों को बताया जाता था। पढ़ाई में रुचि देखकर उन्हें जमींदार के बच्चों ने फूटी स्लैट दे दी, ताकि वह लिख पढ़ सकें। इसी तरह उन्होंने सातवीं तक की पढ़ाई की।(फाइल फोटो)
मांझी गणित में जीरो थे, जबकि अन्य विषयों में हीरो। वह सातवीं क्लास में फेल भी हो गए थे। लेकिन, सरपंच की मेहरबानी पर उन्हें पास का सर्टिफेकेट मिल गया था। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने पास के गांव के स्कूल में दाखिला लिया। जहां 10वीं की पढ़ाई पूरी की। 1962 में सेकेंड डिवीजन से मैट्रिक पास किया।
(फाइल फोटो)
साल 1967 में परिवार से छुपकर गया कालेज से इतिहास विषय में स्नातक की डिग्री हासिल की। कालेज के दिनों में उनके पास एक हॉफ शर्ट, एक बनियान और एक लुंगी थी। यही उनका पहनावा था।
(फाइल फोटो)
मांझी पैरों में टायर की बनी चप्पल पहना करते थे, जो उन्होंने 12 आने में खरीदी थी। पढ़ाई के दौरान उन्हें 25 रुपए महीने का वजीफा भी मिला करता था। लेकिन इसे वो अपने पिता को गांव भेज दिया करते थे, जबकि अपना खर्च चलाने के लिए ट्यूशन पढ़ाते थे।
(फाइल फोटो)
मांझी को कॉलेज के दिनों की एक लड़की आशा का नाम आज भी याद है। आशा, मांझी पर फिदा थीं। एक दिन उसने कहा कि हमारे पिता जी आपसे मिलना चाहते हैं, जिसके बाद वो उनसे मिलने गए। लड़की के पिता ने मांझी से कहा कि तुम अपने नोट्स आशा को दे दिया करो, इसके बदले हम तुम्हें 25-50 दे दिया करेंगे। अब इसे लड़की के प्रति आकर्षण कहिए या पैसा का। मांझी ने पढ़ाई में बहुत मेहनत की और जो पहली कापी होती थी उसे लड़की को दे दिया करते थे।
(फाइल फोटो)
आशा के अच्छे नंबर आए। इसके बाद उसने ये बात अपनी सहेली को भी बता दिया। फिर, क्या दो-तीन लड़कियों के पिता और आ गए। कहने लगे हम आपसे ट्यूशन पढ़वाना चाहते हैं। इसपर मांझी ने उन सबसे कहा- ये सब हमारी क्लासमेंट हैं। हम भला इन्हें ट्यूशन कैसे पढ़ाएंगे? माझी से कहा गया कि आप पढ़ाइए हम आपको 75 रुपए और खाना-पीना सब देंगे। फिर मांझी लोगों को मना नहीं कर पाए।
मांझी लालू और नीतीश के साथ राजनीति करते रहे। नीतीश की वजह से बिहार के मुख्यमंत्री भी बने। मगर बाद में अनबन के बाद अलग होकर अपनी हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा का गठन कर लिया। मांझी नीतीश के खिलाफ बीजेपी के साथ एनडीए में भी रहे। लेकिन फिर महागठबंधन में चले गए। हाल ही में नीतीश ने उन्हें फिर अपने साथ जोड़ लिया है।
(फाइल फोटो)