एक किला ऐसा भी, जिसके दीवारों से टपकता था खून, रात को सुनाई देती थी रोने की आवाज
रोहतास (Bihar) । वैसे तो प्राचीन किला जगह-जगह है। लेकिन, बिहार के रोहतास जिले में एक प्राचीन किला है। जिसकी कहानी काफी पुरानी और रोंचक है। इस किले के बारे में यहां तक कहा जाता है कि इस किले की दीवारों से खून निकलता था। वहीं, आस-पास रहने वाले लोग भी इस बात से सहमत है। इतना ही नहीं स्थानीय लोगों की मानें तो कुछ समय तक किले से रोने की आवाज भी आती थी। जिसका जिक्र फ्रांसीसी इतिहासकार बुकानन ने भी एक दस्तावेज में किया था। जिसके बारे में हम आज आपको बता रहे हैं।
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इस किले का निर्माण त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा त्रिशंकु के पौत्र और राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने कराया था। कहते हैं कि ये बाकी किलों की तरह साहस, शक्ति और सोन घाटी की सर्वोच्चता के प्रतीक के रूप में खड़ा है।
किले का घेरा 45 किमी तक फैला हुआ है। 83 दरवाजे हैं और 1500मीटर महल की ऊंचाई है।, जिनमें मुख्य चार-घोड़ाघाट, राजघाट, कठौतियाघाट व मेढ़ाघाट हैं। प्रवेश द्वार पर निर्मित हाथी, दरवाजों के बुर्ज, दीवारों पर पेंटिंग अद्भुत है। रंगमहल, शीश महल, पंचमहल, खूंटा महल, रानी का झरोखा, मानसिंह की कचहरी आज भी मौजूद हैं।
मान्यता है कि त्रेता युग में बने किले पर मुगलों ने भी राज किया। यह किला कई सालों तक हिंदुओं के अधीन रहा। लेकिन, 16वीं सदी के दौरान मुगलों ने इस पर अपना अधिकार जमा लिया और अनेक वर्षों तक उन्होंने इस किले पर राज किया।
इतिहासकारों की मानें तो, स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई (1857) के समय अमर सिंह ने यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का संचालन किया था। ऐसा माना जाता है कि दो हजार फिट ऊंचाई पर स्थित इस किले की दीवारों से खून टपकता था।
बताया जाता है कि, करीब 200 साल पहले फ्रांसीसी इतिहासकार बुकानन ने रोहतास की यात्रा की थी। तब, उन्होंने पत्थर से निकलने वाले खून की चर्चा एक दस्तावेज में की थी।
फ्रांसीसी इतिहासकार बुकानन ने कहा था कि इस किले की दीवारों से खून निकलता है। वहीं, आस-पास रहने वाले लोग भी इस बात से सहमत है। इतना ही नहीं स्थानीय लोगों की मानें तो कुछ समय तक किले से रोने की आवाज भी आती थी।