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Shamshera : ये हैं बॉलीवुड की पहली 5 डकैती फ़िल्में, किसी ने ट्रेंड सेट किया तो कोई ऑस्कर में गई
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1963 में रिलीज हुई 'मुझे जीने दो' ऐसी पहली डकैत फिल्म बताई जाती है, जो असल डाकू की जिंदगी पर आधारित थी। बताया जाता है कि सुनील दत्त ने फिल्म में जो डाकू जरनैल सिंह का रोल निभाया था, वह चंबल के डाकू मान सिंह से प्रेरित था। फिल्म में वहीदा रहमान की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। इस फिल्म की शूटिंग चंबल के बीहड़ों में पूरी पुलिस सुरक्षा के बीच हुई थी।
'जिस देश में गंगा बहती है', 1960 में रिलीज हुई थी और इस फिल्म में प्राण ने राका नाम के डाकू का किरदार निभाया था। माना जाता है कि भारतीय सिनेमा में डकैती फिल्मों का ट्रेंड इसी फिल्म से शुरू हुआ था। फिल्म में राज कपूर और पद्मिनी की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
1957 में आई 'मदर इंडिया' वह पहली डकैती फिल्म थी, जिसे भारत की ओर से बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म की कैटेगरी में ऑस्कर भेजा गया था। फिल्म में सुनील दत्त ने नर्गिस के बेटे बिरजू का रोल निभाया था, जो अपनी मां और परिवार पर हुए अत्याचारों का बदला लेने डाकू बन जाता है। अंत में बिरजू की मां ही उसे गोली मार देती है।
1951 में राज कपूर ने 'आवारा' नाम से फिल्म बनाई थी और यह भारत की वो पहली डकैती फिल्म थी, जिसे दुनियाभर में काफी पॉपुलैरिटी मिली थी। राज कपूर और नर्गिस स्टारर इस फिल्म में के एन सिंह ने जग्गा नाम के डाकू का रोल निभाया था, जो एक जज द्वारा रेप के आरोप में सजा सुनाए जाने के बाद उसके परिवार से बदला लेने के लिए अपराध करता है।
अगर डकैत फिल्मों की हिस्ट्री की बात करें तो ये उस समय से ही बनने लगी थीं, जब इंडियन सिनेमा मूक फिल्मों का निर्माण किया करता था। अगर इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर यकीन करें तो 1931 में 'दिलेर डाकू' और 'फरेबी डाकू',1933 में 'डाकू की लड़की' जैसी फिल्मों का निर्माण हुआ था। लेकिन अगर पॉपुलैरिटी देखें तो 1934 में आई 'डाकू मंसूर' ज्यादा लोकप्रिय हुई थी। के एल सहगल ने इस फिल्म में डकैत का किरदार निभाया था। फिल्म में उमाशशि और पृथ्वीराज कपूर की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी।