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रियासत को पाकिस्तान में शामिल करवाना चाहता था नवाब, विरोध में सड़क पर उतर गए थे धीरूभाई अंबानी
बिजनेस डेस्क। धीरूभाई अंबानी भारत के कारोबारी जगत के लिए वो नाम हैं जिन्होंने अपने जीवन में असाधारण उपलब्धि हासिल की। उपलब्धि भी ऐसी-वैसी नहीं। मात्र कुछ रुपये से शुरू कारोबार को उन्होंने 75 हजार करोड़ से ज्यादा टर्नओवर वाली कंपनी बना दिया। धीरूभाई के बाद उनके बड़े बेटे मुकेश अंबानी विरासत में मिले कारोबार को और आगे लेकर जा चुके हैं। हालांकि धीरूभाई के दूसरे बेटे अनिल अंबानी इस वक्त कारोबारी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।
| Published : Jul 06 2020, 05:08 PM IST / Updated: Jul 06 2020, 07:59 PM IST
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2002 में आज ही के दिन धीरूभाई का निधन हुआ था। उनके बारे में मशहूर है कि उनका विजन ही ऐसा था कि जिस भी चीज में वो हाथ लगाते थे सोना बन जाता। वो चाहे एक्सपोर्ट, पेट्रो केमिकल का बिजनेस हो या टेक्सटाइल का। जो भी कारोबार शुरू किया उसे शीर्ष तक लेकर गए।
ब्रिटिश भारत में 28 दिसंबर 1932 के दिन पैदा हुए धीरूभाई ने अपनी जवानी में आंदोलन भी किया। गुजरात जूनागढ़ जिले में एक मामूली स्कूल टीचर के यहां जन्म लेने वाले धीरूभाई ने बेहद कम उम्र में बंटवारे के दौरान जूनागढ़ के नवाब की खिलाफत की।
दरअसल, जूनागढ़ का नवाब आजादी के बाद पाकिस्तान में शामिल होना चाहता था। जब ये बात जूनागढ़ के लोगों को पता चली तो उसका विरोध होने लगा। तब जूनागढ़ के नवाब ने जुलूस और प्रदर्शन पर पाबंदी लगा दी थी। लोग सड़कों पर उतर गए। इसमें कॉलेज के छात्र-छात्राओं की संख्या भी अच्छी ख़ासी थी।
जूनागढ़ के नवाब के विरोध में शुरू आंदोलन का प्रभाव युवा धीरूभाई पर भी पड़ा। फर्स्टपोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक धीरूभाई भी सड़क पर उतर गए। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक न सिर्फ उन्होंने आंदोलन का नेतृत्व किया बल्कि भाषण देकर जूनागढ़ के पाकिस्तान में शामिल होने का विरोध भी किया। इस आंदोलन में धीरूभाई को खूब लोकप्रियता मिली।
तमाम लोगों की तरह धीरूभाई भी नहीं चाहते थे कि जूनागढ़ आजादी के बाद पाकिस्तान का हिस्सा बने। उस वक्त नवाब की खिलाफत का आंदोलन देशभर की सुर्खियों में था। सिर्फ जूनागढ़ ही नहीं बल्कि हैदराबाद और कई दूसरी छोटी-बड़ी रियासतों के राजा और नवाब पाकिस्तान में शामिल होना चाहते थे। हालांकि सरदार पटेल की चतुराई से ऐसा संभव नहीं हो पाया।
लेकिन धीरूभाई का मन राजनीति या पढ़ाई-लिखाई की बजाय कारोबार में ज्यादा लगता था। घर की खराब हालत की वजह से धीरूभाई को बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। वो चार भाई-बहन थे। धीरूभाई युवावस्था में ही पकौड़े की दुकान चलाते थे जिससे घर के खर्च में मदद करते थे।
बाद में उन्होंने यमन के पोर्ट एडेन में क्लर्क की नौकरी भी की। यहीं धीरूभाई ने ट्रेडिंग, इंपोर्ट-एक्सपोर्ट, थोक कारोबार, मार्केटिंग, सेल्स और डिस्ट्रीब्यूशन की बारीकियों के साथ अलग-अलग देशों के लोगों से करेंसी ट्रेडिंग सीखी। 1954 में उनका कोकिला बेन से विवाह हुआ।
अब धीरूभाई रिफाइनरी कंपनी का सपना देखने लगे। एडेन से वापस लौटकर धीरूभाई ने अरब के कुछ कारोबारियों से संपर्क किया। इसके बाद वो मसाले, चीनी और दूसरी चीजें अरब निर्यात करने लगे। यहीं रिलायंस कमर्शियल कॉरपोरेशन की नींव पड़ी। कुछ ही समय में धीरूभाई ने अपना सिक्का जमा लिया।
मसालों के कारोबार के बाद धीरूभाई ने धागों के कारोबार में उतरने का फैसला किया। अहमदाबाद के नरोदा में पहली टेक्सटाइल कंपनी शुरू करने में उन्हें बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। बाद में विमल ब्रांड के कपड़ों ने तस्वीर ही बादल दी।
1970 के दशक तक धीरूभाई की कंपनी का कुल टर्नओवर 70 करोड़ रुपये तक हो गया। धीरे-धीरे धीरूभाई अपना कारोबार बढ़ाते गए और देश के जाने माने उद्योगपतियों में शामिल हो गए। 2002 में रिलायंस का टर्नओवर 75 हजार करोड़ तक पहुंच गया। हालांकि उनके निधन के कुछ साल बाद बेटों ने कारोबार का बंटवारा कर लिया। लेकिन धीरूभाई ने कारोबारी साम्राज्य का जो सिलसिला शुरू किया था वो आज यार्न से टेलिकॉम, रिटेल और डिजिटल तक फैला हुआ है।