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धीरूभाई अंबानी ने पकौड़े बेचे-पेट्रोल पंप पर भी किया काम; एक बेटा शिखर पर दूसरा कर रहा संघर्ष
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सरकार ने पद्मविभूषण अवॉर्ड से नवाजा
धीरूभाई ने शुरुआत में पॉलिस्टर धागे का व्यवसाय शुरू किया। पॉलिस्टर के बिजनेस को उन्होंने इतना बढ़ाया कि मुंबई के यार्न उद्योग पर अपना अधिकार जमा लिया। धीरूभाई अंबानी ने 1966 में वस्त्र निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा और विमल ब्रांड की शुरुआत की। कुछ ही समय में विमल देश का प्रमुख ब्रांड बन गया। बाद में धीरूभाई अंबानी ने पेट्रोकेमिकल के क्षेत्र में भी बिजनेस को आगे बढ़ाया। भारतीय उद्योग जगत में धीरूभाई अंबानी के योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने मरणोपरांत साल 2016 में उन्हें पद्मविभूषण अवॉर्ड से नवाजा।
पकौड़े बेचने से की शुरुआत
धीरूभाई अंबानी ने सिर्फ हाईस्कूल तक की ही पढ़ाई की थी। इसके बाद कम उम्र से ही वे व्यवसाय के क्षेत्र में आ गए। शुरुआत में उन्होंने अपने घर के पास एक धर्मिक स्थल के नजदीक उन्होंने पकौड़े बेचने का कारोबार शुरू किया। इसमें उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। कमाई कम देख कर उन्होंने इस काम को बंद कर दिया।
यमन में पेट्रोल पंप पर की नौकरी
साल 1949 में 17 वर्ष की उम्र में धीरूभाई यमन चले गए। वहां एक भाई रहते थे। यमन पहुंच कर धीरूभाई एक पेट्रोल पंप पर 300 रुपए महीने वेतन पर नौकरी करने लगे। कुछ साल नौकरी करने के बाद धीरूभाई 1954 में भारत वापस लौट आए।
भारत लौटने के बाद मुंबई गए
भारत लौटने के बाद धीरूभाई अंबानी 500 रुपए लेकर मुंबई चले गए। मुंबई में अपने चचेरे भाई के साथ मिल कर उन्होंने पॉलिस्टर धागे का बिजनेस शुरू किया। यमन में काम करने के दौरान उन्होंने वहां के लोगों से जान-पहचान भी कर ली थी। उनके संपर्क से वे भारत से यमन में मसालों का निर्यात भी करने लगे। धीरे-धीरे उनका बिजनेस बढ़ने लगा।
विमल को बनाया टॉप ब्रांड
धीरूभाई अंबानी ने वस्त्र निर्माण के क्षेत्र में विमल ब्रांड की स्थापना की। जल्दी ही यह देश का जाना-माना ब्रांड बन गया। इस क्षेत्र में धीरूभाई को कड़ी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ा। नुस्ली वाडिया की कंपनी बॉम्बे डाइंग उस समय देश की टॉप कंपनी थी। इससे प्रतियोगिता में टिक पाना आसान नहीं था। नुस्ली वाडिया से उनकी जबरदस्त व्यापारिक प्रतिद्वंद्विता चली। इस व्यवसाय में धीरूभाई को अच्छी-खासी सफलता मिली।
पेट्रोकेमिकल बिजनेस में सबसे आगे
साल 1981 में धीरूभाई अंबानी के बड़े बेटे मुकेश अंबानी ने भी पिता के बिजनेस में शामिल हुए। मुकेश अंबानी ने रिलायंस कंपनी के पॉलिस्टर के बिजनेस को पेट्रोकेमिकल और पेट्रोलियम बिजनेस की तरफ शिफ्ट किया। इसके बाद रिलायंस कंपनी ने बहुत तेजी से विकास किया। पेट्रोकेमिकल और पेट्रेलियम के बिजनेस में रिलायंस देश की सबसे बड़ी कंपनी बन गई।
2007 में 100 अरब डॉलर की कंपनी थी रिलायंस
2002 में धीरूभाई अंबानी के निधन के बाद कुछ समय तक मुकेश अंबानी और छोटे भाई अनिल अंबानी ने साथ मिल कर काम किया। 2007 में रिलायंस और अंबानी परिवार की कुल संपत्ति 100 अरब डॉलर हो गई थी, लेकिन 2005 में ही देश के इस सबसे बड़े औद्योगिक घराने में दोनों भाइयों के बीच बंटवारा हो गया।
मुकेश अंबानी की सफलता
2005 में बंटवरे के बाद मुकेश अंबानी के हिस्से में पेट्रोकेमिकल के मुख्य कारोबार रिलायंस इंडस्ट्रीज, इंडियन पेट्रोकेमिकल कॉर्प लिमिटेड, रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड जैसी कंपनियां आईं। अनिल अंबानी ने अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप बना लिया। इसमें रिलायंस कैपिटल, रिलायंस एनर्जी, रिलायंस नैचुरल रिसोर्सेस और आरकॉम प्रमुख थीं। शुरुआती दौर में अनिल अंबानी संपत्ति के मामले में मुकेश अंबानी से आगे थे, लेकिन बाद में उनका कारोबार डूबने लगा। वहीं, मुकेश अंबानी 60.7 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ कारोबार के शीर्ष पर हैं। मुकेश अंबानी की जियो ने टेलिकॉम में क्रांति ला दी। आज जियो प्लेटफॉर्म्स में सबसे ज्यादा निवेश हो चुका है और रिलायंस इंडस्ट्रीज तय समय से पहले ही कर्जमुक्त हो चुकी है।
अनिल अंबानी कर रहे संघर्ष
बंटवारे के समय अनिल अंबानी मुकेश अंबानी से संपत्ति के मामले में आगे थे। 2008 में फोर्ब्स की लिस्ट में दुनिया के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में उनका नाम छठे स्थान पर था। लेकिन आज अनिल अंबानी कर्ज के भारी बोझ से दबे हुए हैं। उन्हें अपने हर बिजनेस में नुकसान उठाना पड़ा है। कर्ज से जुड़े एक मामले में उनके समाने जेल जाने तक की नौबत आ गई थी, लेकिन मुकेश अंबानी ने उनका कर्ज चुका कर उन्हें जेल जाने से बचाया। अनिल अंबानी ने कर्ज से जुड़े एक मामले में लंदन की एक अदालत को अपना नेटवर्थ जीरो बताया था। आज अनिल अंबानी की हालत बहुत ही बुरी है। वे सिर से लेकर पांव तक कर्ज में डूबे हैं।