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देश की इकोनॉमी ने पकड़ी रफ्तार, FICCI ने GDP 9.1 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद जताई
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भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) इस संबंध में अच्छे संकेत दिए हैं। फिक्की के आर्थिक परिदृश्य सर्वेक्षण में ये कहा गया है कि मौजूदा त्यौहारी सत्र में व्यापार में भारी बढ़त दर्ज की जा सकती है। इसका फायदा व्यापारी समेत पूरे देश को होगा। सरकार की इनकम बढ़ने से विकास कार्य गति पकड़ेंगे। वहीं प्रोडक्शन बढ़ने से रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। पीएम नरेंद्र मोदी के ऑफिशियल नमो ऐप के ट्विटर अकाउंट पर फिक्की के इस सर्वे रिपोर्ट को लेकर ट्वीट किया गया है। (फाइल फोटो)
फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) ने गुरुवार को कहा कि वित्त वर्ष 2021-22 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 9.1 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद जताई है। फिक्की के बयान के मुताबिक कोरोना की दूसरी लहर के बाद अब आर्थिक सुधार देखने को मिल रहा है। पीएम नरेंद्र मोदी के ऑफिशियल नमो ऐप पर फिक्की के इस सर्वे रिपोर्ट को रेखांकित किया गया है। (फाइल फोटो)
बता दें कि फिक्की के आर्थिक सर्वे (जुलाई 2021) में 9 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान जताया गया था।’’ फिक्की ने कहा कि दूसरे हिस्से में मानसूनी बारिश में तेजी और खरीफ के रकबे में बढ़ोतरी से कृषि क्षेत्र की वृद्धि की उम्मीदें बरकरार हैं।( डिजाइन फोटो)
इस बीच फिच रेटिंग्स (Fitch Ratings) ने मौजूदा वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए जीडीपी ग्रोथ (GDP growth) का संभावना 10 फीसदी से घटाकर 8.7 फीसदी कर दी है। हालांकि, फिच रेटिंग्स (Fitch Ratings) ने वित्तीय वर्ष 2023 के लिए विकास दर का अनुमान 10 फीसदी किया है। रेटिंग एजेंसी के बयान के मुताबिक कोरोना की दूसरी लहर के चलते इकोनॉमी की रिकवरी की रफ्तार घटी है। फिच ने ये माना है कि इकोनॉमी पटरी पर लौट रही है।(फाइल फोटो)
क्या होती है GDP
एक वित्त वर्ष या उसके किसी कालखंड में देश में हुए उत्पादन और उपलब्ध सेवा बाजार मूल्य ही सकल घरेलू उत्पाद है। देश के प्रत्येक व्यक्ति और उद्योगों का उत्पादन भी इसमें शामिल है। प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद किसी देश के जीवन-स्तर और अर्थव्यवस्था की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। (डिजाइन फोटो)
GDP मापने का तरीका
जीडीपी का दो तरह से आंकलन किया जाता है। उत्पादन की कीमतें महंगाई दर के साथ घटती-बढ़ती रहती हैं। इसे आंकने के दो तरीके हैं. पहला पैमाना है कांस्टैंट प्राइस, इसके तहत जीडीपी की दर व उत्पादन का मूल्य एक आधार वर्ष में उत्पादन की कीमत पर तय किया जाता है। दूसरा पैमाना करेंट प्राइस है जिसमें उत्पादन वर्ष की महंगाई दर इसमें शामिल होती है। (डिजाइन फोटो)
देश इस तरह तय होती है जीडीपी
देश में कृषि, उद्योग और सेवा जीडीपी के तीन प्रमुख अंग हैं। इन सेक्टरों में प्रोडक्शन की गणना के आधार पर GDP दर तय होती है। देश की GDP में एक वित्त वर्ष में 3 फीसदी की बढ़ोतरी का मतलब यह है कि अर्थव्यवस्था 3 फीसदी की दर से बढ़ रही है। इसमें महंगाई दर को शामिल नहीं किया जाता। देश में GDP का आंकलन हर तिमाही किया जाता है।(डिजाइन फोटो)
जीडीपी का आम नागरिकों पर होता है असर
देश की इकानॉमी से संबंधित हर व्यक्ति पर यह प्रभाव डालती है। जीडीपी घटे या बढ़े इसका असर शेयर मार्केट पर पड़ता है। निगेटिवक जीडीपी होने पर देश में घोर आर्थिक मंदी आ जाती है। इससे प्रोडक्शन घटने से महंगाई चरम पर पहुंच जाती है। उत्पादन घटने से बेरोजगारी बढ़ती है। लोगों की क्रय शक्ति कम हो जाती है। इससे पूरा बाजार प्रभावित होता है। देश की अर्थव्यवस्था भी इससे प्रभावित होती है। वहीं जीडीी बढ़ने का लाभ आम आदमी को मिलता है । प्रोडक्शन बढ़ने से रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं, इससे आम आदमी की इनकम बढ़ती है जिसका फायदा देश के साथ हर सेक्टर को होता है । (फाइल फोटो)