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हाथों से हजारों सुरंगे खोद-खोद सूखे गांवों में पहुंचाया पानी, योद्धा किसान के जज्बे को आप भी करेंगे सैल्यूट
करियर डेस्क. दोस्तों, हम सभी ने बिहार के 'माउंटेन मैन' दशरथ मांझी की कहानी तो सुनी ही है। उन्होंने कैसे हाथों में हथौड़ा और छेनी लेकर पूरा पहाड़ काट डाला था। ऐसे ही एक और वॉटर मैन की प्रेरणा भरी कहानी सामने आई है। यह कहानी केरल के कासरगोड के रहने वाले 67 वर्षीय कुंजंबु की है जिन्होंने 14 साल की उम्र में सुरंग खोदना शुरू किया था। देश में अब बहुत कम ऐसे लोग हैं जो पानी वाली सुरंग खोदने में माहिर हैं। कुंजंबु का दावा है कि वह अब तक 1000 सुरंगें खोदकर पानी निकाल चुके हैं। जिसके फलस्वरूप आज गांव के लोगों को पानी के लिए बोरवेल पर कोई निर्भरता नहीं है। कुंजंबु के जोश और जुनून की ये कहानी आपको हैरान कर देगी और आप उन्हें सैल्यूट किए बिना नहीं रह पाएंगे-
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कुंजंबु ने 1000 से भी ज्यादा गुफाएं खोदी हैं जिनमें वह गांवों में पानी पहुंचाते हैं। यह सुरंग गुफा कुआं, उत्तर केरल और कर्नाटक के क्षेत्रों में सबसे पुरानी जल संचयन प्रणाली के रूप में प्रचलित है। कन्नड़ में सुरंग और मलयालम में थुरंगम, एक गुफा-संरचना होती है, जिसे पहाड़ियों को खोदकर बनाई जाती है। यह गुफा 2.5 फीट चौड़ी होती है, जिसे इसकी लंबाई 300 मीटर तक होती है, जब तक कि पानी का स्त्रोत न मिल जाए। इन्हें इन क्षेत्रों में सबसे स्थायी वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम माना जाता है।
इसके तहत, सुरंग में बहने वाली पानी को जमा करने के लिए इसके पास में ही एक जलाशय बनाया जाता है, जहां पानी गिरता है। एक बार जब झरनों से पानी निर्बाध रूप से बहने लगता है, तो इससे सालों भर पानी की उपलब्धता सुनिश्चित होती है। इसके लिए वॉटरपंप या मोटर की जरूरत भी नहीं होती है।
कुंजंबु बताते हैं, “इस कार्य के लिए काफी ताकत और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है। मैं हमेशा एक कुदाल और मोमबत्ती के साथ एक बार में पूरी खुदाई करने के उद्देश्य से जाता हूं।”
वह बताते हैं, “जब आप 300 मीटर लंबी गुफा की खुदाई कर रहे होते हैं, तो इसमें ऑक्सीजन का स्तर काफी कम हो जाता है। ऐसी स्थिति में, दम घुटने वाली स्थिति से बचाव के लिए हम एक माचिस और मोमबत्ती अपने साथ ले जाते हैं। यदि मुझे माचिस को जलाने में कोई दिक्कत होती है, तो इसका मतलब है कि उस जगह पर ऑक्सीजन के स्तर काफी कम है और मैं यहां से तुरंत बाहर निकल जाता हूं।”
खुदाई करने के लिए सही जगह खोदने से लेकर, यह सुनिश्चित करने तक कि गुफा ढहती नहीं है, कुजुंबु प्रकृति के नियमों के अनुकूल ही सुरंग खुदाई करते हैं।
“वो बताते हैं कि, मैं खुदाई करने के लिए सही जगह को ढूंढ़ रहा हूँ, तो मैं उसके आस-पास के पौधों को देखता हूँ। यदि वहाँ पौधे में फल-फूल लगे हैं, तो इसका अर्थ है कि वहाँ मिट्टी में गीलापन है और यह हमारे लिए एक उपयुक्त स्थान है। इस ज्ञान को सिर्फ वर्षों के अनुभव के आधार पर प्राप्त किया जा सकता है।
कुंजंबु कहते हैं, “जब मैंने सुरंग प्रणाली को विकसित करना शुरू किया था, तो यह उस वक्त हमारे जीवन का एक जरूरी हिस्सा था, खासकर कृषि उद्देश्यों के लिए। लेकिन, समय के साथ, बोरवेल पंप का चलन बढ़ गया और सुरंग खोदने का काम कम हो गया।”
कुंजंबु कहते हैं, “बोरवेल संस्कृति, हमारी प्रकृति के लिए काफी हानिकारक है। जब आप बोरवेल की खुदाई करते हैं, तो आप धरती के दिल पर प्रहार करते हैं। इससे आज भूजल संकट का खतरा बढ़ गया है। साथ ही, इससे भूकंप का खतरा भी बढ़ा है, क्योंकि इससे प्राकृतिक नियमों में बाधा हो रही है।”
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आज कासरगोड जिले में ऐसे 5,000 से अधिक सुरंग हैं, लेकिन लोकप्रियता में कमी की वजह से अधिकांश अप्रभावी हो गए हैं। लेकिन, कुंजंबु जैसे लोग अभी तक हार मानने को तैयार नहीं हैं।
कुंजंबु कहते हैं- सुरंग प्रणाली धीरे-धीरे अप्रभावी हो रही है, लेकिन जब तक सामर्थ्य है, मैं अपनी इस यात्रा को जारी रखना चाहता हूँ। मुझे उम्मीद है कि इस प्रणाली को फिर से पुनर्जीवित किया जा सकता है।”
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