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मां ने घंटों पढ़कर सुनाई किताबें तो पिता ने सिखाई लिपि, कड़े संघर्ष से नेत्रहीन बेटी बनी अफसर
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साल 2015 में देश को पहली नेत्रहीन महिला आईएफएस अफसर मिली। बेनो का चयन सिविल सर्विस में आईएएस अफसरों में हुआ फिर उन्हें फॉरेन मिनिस्ट्री में पद सौंपा गया। बेनो इस सफलता का पूरा श्रेय अपने माता-पिता को देती रही हैं। मां ने उन्हें घंटों किताबें और अखबार पढ़कर सुनाए तो पिता ने वो सॉफ्टवेयर उनके कंप्यूटर में अपलोड कराया, जिसकी मदद से वे किताबों को स्कैन कर ब्रेललिपि में पढ़ सकीं। बेनो ने अफसर बनने का सपना पूरा होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता से मिलकर इस अवसर के लिए उन्हें धन्यवाद कहने की बात कही थी।
बेनो के लिए आईएफएस अफसर बनना कठिन था। राह में नेत्रहीनता सबसे बड़ी बाधा थी। हालांकि अफसर बनने से पहले बेनो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में प्रोविजनरी ऑफिसर थीं। पूर्व राजनयिक टीपी श्रीनिवासन ने कहा, यह फैसला क्रांतिकारी से कम नहीं है, क्योंकि कई होनहार अभ्यर्थी अंतिम समय में 20:20 की दृष्टि नहीं होने के कारण आईएफएस ज्वाइन नहीं कर पाते। आयकर विभाग और राजस्व सेवा में कुछ मामले ऐसे हैं, जिनमें आंखों की रोशनी चले जाने के बावजूद उन अभ्यर्थियों को सेवा में रखा गया। केंद्र सरकार का यह उदार फैसला है।
साल 2015 में बनी अफसर
चेन्नई की रहने वाली 25 साल की बेनो जेफिन ने साल 2015 में देश की पहली दृष्टिहीन आईएफएस ऑफिसर बनकर इतिहास रच दिया था। वे मिनिस्ट्री ऑफ इंडियन एक्सटर्नल अफेयर्स में कार्यरत हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवा में नियुक्ति के लिए जहां आंशिक दृष्टिहीन व्यक्ति को भी सुपात्र नहीं माना जाता है, वहां सौ प्रतिशत दृष्टिहीन महिला की नियुक्ति मिसाल पेश करती है। बेनो बचपन से ही जुझारू किस्म की लड़की हैं और जिंदगी को नई तरह से जीना चाहती हैं।
मीडिया से बात करते हुए बेनो ने अपनी सफलता को लेकर जिंदगी में आए बदलावों पर बात की थी। उन्होंने कहा, अपने देश के लिए इतने महत्वपूर्ण पद पर काम करना मेरे लिए बहुत गौरव की बात है। मेरा यहां तक पहुंच पाना सरल नहीं था। पर ये सोचकर ही कि मैं अपने देश के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण काम कर रही हूं,मेरे लिए सब अपने आप आसान हो जाता है।
बेहद चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को कैसे हासिल किया?
बेनो बताती हैं, मैंने दृष्टिहीनता को कभी भी अपने लिए सहानुभूति का कारण नहीं बनने दिया। डिसेबिलिटी को अपनी ताकत बना लिया और खुद पर पूरी तरह से फोकस किया। अपनी क्षमताओं को बढ़ाने में समय दिया। अपने स्कूल के दिनों से ही मैं बहुत एक्टिव स्टूडेंट थी। मेरी पढ़ाई चेन्नई में हुई। मैं स्कूल कॉलेज की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती थी। मैंने उसे एक चैलेंज की तरह लिया। मेरे परिवार दोस्तों ने हमेशा मेरा उत्साह बढ़ाया और मेरा साथ दिया।
इस कठिन परीक्षा के लिए आपने पढ़ाई किस तरह की?
मैंने स्कूल के दिनों में ही सोच लिया था कि मुझे भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाना है। मैंने इसके लिए ब्रेल में लिखी गई किताबों को ढूंढा। चेन्नई में रहकर आईएएस की तौयारी की। कंप्यूटर में ऐसे सॉफ्टवेयर डलवाए जो आवाज़ पर काम करते हैं, जिनको सुनकर मैं इंटरनेट से अपनी तैयारी के लिए सामग्री को ढूंढ पाई। मेरी मां पद्मजा प्रेरणा का सबसे बड़ा स्त्रोत रही हैं।
उन्होंने मुझे संघर्ष करते रहना सिखाया। वे हर दिन मुझे अखबार पढ़कर सुनाती थीं। वो घंटों मुझे सामान्यज्ञान की किताबों को पढ़कर सुनाया करती थीं। मेरे पिता मेरे लिए ब्रेल में उपलब्ध सामग्री की व्यवस्था करते थे। मैं टीवी पर न्यूज़ सुनती थी। इससे मेरे लिए बातें को याद रख पाना आसान होता गया। मैंने ब्रेल लिपि में लिखी गई तमिल अंग्रेजी की किताबों से पढ़ाई की।
एक अफसर की नियुक्ति ने बंधाई आस
मैंने सुना था की एक रेवेन्यू ऑफिसर की नियुक्ति की गई थी, जिसने एक्सीडेंट में अपनी एक आंख खो दी थी। इस घटना ने मेरी आस बंधे रखी थी। जब मैंने आईएफएस एग्जाम क्लीयर कर लिया और साक्षात्कार के दौरान पूछे गए सभी सवालों के सही जवाब दिए। तब मिनिस्ट्री ने भी अपनी पॉलिसियों में लचीलापन लाकर मेरा सपोर्ट किया और मैं विदेश मंत्रालय में नियुक्त की गई। इंटरव्यू में मुझसे ज़्यादातर सवाल विदेश नीति भौगोलिक परिस्थितियों के बारे में पूछे गए थे।
कोशिश सभी को करनी चाहिए
मैं पूरी तन्मयता के साथ एक बार में एक ही काम करना पसंद करती हूं। लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं मैं नहीं सोचती मैं बस अपना काम पूरी ज़िम्मेदारी और ईमानदारी से करते रहना चाहती हूं। मैं अपने निर्णयों पर टिकी रहती हूं। आंशिक या पूर्ण रूप से डिसेबिल होना ही संघर्ष की पहली सीढ़ी है। एक तरफ लोगों की सहानुभूति आपको विचलित करती है। वहीं दूसरी ओर लोगो के और परिवार की उम्मीदें आपसे बढ़ जाती हैं। ऐसे में फोकस करते हुए आगे बढ़ते रहना कठिन हो जाता है। पर कोशिश सभी को करनी चाहिए।