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- 3000 फीट पर खतरनाक जंगलों के बीच बैठे हैं यहां गणेश, यहीं परशुराम से युद्ध में टूटा था एक दांत
3000 फीट पर खतरनाक जंगलों के बीच बैठे हैं यहां गणेश, यहीं परशुराम से युद्ध में टूटा था एक दांत
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दंतेवाड़ा का नामकरण भी गणेश पर है। गणेशजी को दंतेश भी कहते हैं। यानी दंतेश का वाड़ा अपभ्रंश होकर दंतेवाड़ा कहलाने लगा। माना जाता है कि यहीं घने जंगलों में कहीं कैलाश गुफा भी है।
किवंदतियां हैं कि यहीं पर भगवान परशुराम और गणेशजी के बीच युद्ध हुआ था। परशुरामजी ने गणेशजी का दांत तोड़ दिया था। यह टूट दांत इस मूर्ति के हाथ में है। इसी के बाद गणेशजी का एक नाम एकदंत पड़ा।
जिला मुख्यालय यानी दंतेवाड़ा से ढोलकल पहुंचने के लिए परसपाल नामक गांव से गुजरना पड़ता है। किवंदती है कि इस गांव का नाम परशुरामजी पर पड़ा। इसके बाद कोतवाल पारा गांव आता है। यह कोतवाल के नाम पर पड़ा। यहां के कोतवाल गणेशजी हैं।
मूर्ति की स्थापना नागवंशी राजाओं को काल में होने के सबूत मिलते हैं। मूर्ति पर नागवंशी राजाओं का प्रतीक नाग का चिह्न बना हुआ है।
इतने सालों के बावजूद यह प्रतिमा हवा और बारिश से सुरक्षित है। माना जाता है कि इसे इतनी ऊंचाई पर बैठाने का मकसद यह था कि गणेशजी हर ओर नजर रख सकें। उनकी रक्षा कर सकें।
आमतौर पर यहां इक्के-दुक्के लोग ही पहुंचते हैं। गणेश चतुर्थी पर बेशक यह संख्या थोड़ी बढ़ जाती है। दूसरा यह इलाका नक्सल प्रभावित है, इसलिए भी लोग यहां कम आते हैं।