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3000 फीट पर खतरनाक जंगलों के बीच बैठे हैं यहां गणेश, यहीं परशुराम से युद्ध में टूटा था एक दांत
दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़. ये दुनिया कई रहस्य और रोमांचों से भरी पड़ी है। किवदंतियां कोई भी हों, उनके पीछे कुछ न कुछ सच्चाई भी छुपी होती है। ऐसी ही एक रहस्यमयी गणेश प्रतिमा दंतेवाड़ा से करीब 13 किमी दूर ढोलकला की पहाड़ियों पर विराजी है। करीब 3000 फीट की ऊचाई पर एक खतरनाक पहाड़ पर बैठी यह विशाल प्रतिमा कई किमी दूर से नजर आती है। इसके चारों ओर घना जंगल है। यानी यहां तक पहुंचना जोखिम से कम नहीं है। इसलिए यहां कम लोग ही जाते हैं। खासकर वे लोग जो एडवेंचर के शौकीन हैं। गणेशजी की यह मूर्ति दुर्लभ मानी जाती है। कहते हैं कि यही गणेशजी दंतेवाड़ा की रक्षा करते हैं। पुरातत्वविदों की रिसर्च में सामने आया था कि इस प्रतिमा की स्थापना नागवंशी राजाओं ने 10 वीं या 11वीं शताब्दी में थी। नागवंशी राजा गणेशजी को अपना रक्षक मानते थे। प्रतिमा करीब 4 फीट ऊंचे ग्रेनाइट पत्थर को तराशकर बनाई गई है। प्रतिमा के ऊपरी सीधे हाथ में फरसा है। वहीं, ऊपरी उल्टे हाथ में टूटा हुआ दांत रखा हुआ है। जबकि नीचे उल्टे हाथ में मोदक और सीधे हाथ में अभय मुद्रा में माला है। बता दें कि 22 अगस्त को गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी..आइए जानते हैं इसी मौके पर इस दुर्लभ प्रतिमा के बारे में...
| Published : Aug 20 2020, 11:35 AM IST
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दंतेवाड़ा का नामकरण भी गणेश पर है। गणेशजी को दंतेश भी कहते हैं। यानी दंतेश का वाड़ा अपभ्रंश होकर दंतेवाड़ा कहलाने लगा। माना जाता है कि यहीं घने जंगलों में कहीं कैलाश गुफा भी है।
किवंदतियां हैं कि यहीं पर भगवान परशुराम और गणेशजी के बीच युद्ध हुआ था। परशुरामजी ने गणेशजी का दांत तोड़ दिया था। यह टूट दांत इस मूर्ति के हाथ में है। इसी के बाद गणेशजी का एक नाम एकदंत पड़ा।
जिला मुख्यालय यानी दंतेवाड़ा से ढोलकल पहुंचने के लिए परसपाल नामक गांव से गुजरना पड़ता है। किवंदती है कि इस गांव का नाम परशुरामजी पर पड़ा। इसके बाद कोतवाल पारा गांव आता है। यह कोतवाल के नाम पर पड़ा। यहां के कोतवाल गणेशजी हैं।
मूर्ति की स्थापना नागवंशी राजाओं को काल में होने के सबूत मिलते हैं। मूर्ति पर नागवंशी राजाओं का प्रतीक नाग का चिह्न बना हुआ है।
इतने सालों के बावजूद यह प्रतिमा हवा और बारिश से सुरक्षित है। माना जाता है कि इसे इतनी ऊंचाई पर बैठाने का मकसद यह था कि गणेशजी हर ओर नजर रख सकें। उनकी रक्षा कर सकें।
आमतौर पर यहां इक्के-दुक्के लोग ही पहुंचते हैं। गणेश चतुर्थी पर बेशक यह संख्या थोड़ी बढ़ जाती है। दूसरा यह इलाका नक्सल प्रभावित है, इसलिए भी लोग यहां कम आते हैं।