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World Disability Day 2021:जन्म से पहले ही कई बच्चे हो जाते हैं Down syndrome का शिकार, जानें क्या है ये बीमारी
हेल्थ डेस्क : हर साल 3 दिसंबर को दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस (World Disability Day) मनाया जाता है। इसे अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस या विकलांग व्यक्तियों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस (IDPD) भी कहा जाता है। इसकी शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा की सिफारिश पर 1992 में की गई थी। 1992 से हर साल इसे पूरी दुनिया में मनाया जाती है। इस दिन को मनाने के लिए हर साल एक थीम भी रखी जाती है। विश्व स्तर पर 1 बिलियन से अधिक लोग किसी न किसी रूप से दिव्यांगता का शिकार है। उन्हीं में से एक बीमारी है डाउन सिंड्रोम (Down syndrome), जो जन्म से पहले ही बच्चे को हो जाती है। आइए आज आपको बताते हैं, इस बीमारी, इसके लक्षण और इलाज के बारे में...
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दिव्यांगता एक ऐसी शारीरिक या मानसिक कमी है, जिस वजह से कोई व्यक्ति किसी काम को कर पाने में अक्षम होता है। ऐसे व्यक्ति को विकलांगता की श्रेणी में लिया जाता है। शारीरिक विकलांगता में इंसान के शरीर कोई भी हिस्सा काम करना बंद कर दे या फिर शरीर का एक या उससे अधिक भाग सामान्य से अलग होता है। वहीं, मानसिक विकलांगता में किसी इंसान का शरीर तो आम इंसान की तरह होता है। लेकिन उसका दिमाग कम काम करता है।
विकलांगता का एक प्रकार है डाउन सिंड्रोम, यह एक आनुवंशिक विकार या जेनेटिक डिसॉर्डर है जो असामान्य कोशिका विभाजन के परिणामस्वरूप होता है। यह आमतौर पर हृदय और जठरांत्र संबंधी विकारों सहित अन्य चिकित्सा असामान्यताओं का कारण होता है। इसे ट्राइसॉमी-2 भी कहा जाता है।
इस बीमारी में बच्चे को मानसिक और शारिरिक तकलीफ हो सकती है। डाउन सिंड्रोम में बच्चा अपने 21वें गुणसूत्र की एक्स्ट्रा कॉपी के साथ पैदा होता है। जिसके कारण बच्चे के शारीरिक विकास में देरी, चेहरे में फर्क और दिमाग विकास में देरी होती है।
इस बीमारी से पीड़ित बच्चे सामान्य बच्चों से अलग व्यवहार करते हैं। इन बच्चों का मानसिक विकास दूसरे बच्चों की तुलना में धीरे होता है। एकाग्रता की कमी होने के कारण डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे में सीखने की क्षमता भी कम होती है। सामान्य भाषा में समझा जाए, तो इस बीमारी में 10 साल का बच्चा 5 साल के बच्चे जैसा बर्ताव करता है।
डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों और वयस्कों में चेहरे की अलग-अलग विशेषताएं होती हैं। हालांकि, डाउन सिंड्रोम वाले सभी एक समान दिखते हैं। जिसमें चपटा चेहरा, छोटा सिर, छोटी गर्दन, उभरी हुई जीभ, ऊपर की ओर तिरछी पलकें,असामान्य रूप से आकार या छोटे कान, हथेली में एक ही क्रीज के साथ चौड़े, छोटे हाथ, अपेक्षाकृत छोटी उंगलियां और छोटे हाथ और पैर, अत्यधिक लचीलापन, छोटा कद आदि शामिल है।
डाउन सिंड्रोम 3 प्रकार का होता है। ट्राईसॉमी, मोजेक डाउन सिंड्रोम और ट्रांसलोकेशन। लगभग 95 प्रतिशत मामलों में डाउन सिंड्रोम ट्राइसॉमी 21 के कारण होता है। प्रत्येक कोशिका में गुणसूत्र 21 की एक एक्स्ट्रा कॉपी ही ट्राइसॉमी 21 कहलाती है।
मोजेक डाउन सिंड्रोम, इस दुर्लभ रूप में एक व्यक्ति के शरीर में कोशिकाओं के 2 या इससे अधिक आनुवंशिक रूप से भिन्न सेट होते हैं। वहीं, ट्रांसलोकेशन डाउन सिंड्रोम में 46 कुल क्रोमोसोम में से बच्चों के पास क्रोमोसोम 21 का केवल एक अतिरिक्त हिस्सा होता है।
डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों को जन्मजात हृदय दोष, बहरापन, कमजोर आंखें, मोतियाबिंद, ल्यूकीमिया, कब्ज, स्लीप, नींद के दौरान सांस लेने में दिक्कत, दिमागी समस्याएं, हाइपोथायरायडिज्म, मोटापा, दांतों के विकास में देरी आदि हो सकती है।
एक्सपर्ट्स की मानें तो डाउन सिंड्रोम का कोई इलाज नहीं है। लेकिन कई प्रकार की संस्था और स्कूल है, जो इससे पीड़ित लोगों को समझने में और उनके परिवार की मदद करने में मदद करते हैं। एनडीएसएस (राष्ट्रीय डाउन सिंड्रोम समाज) में 300 से अधिक स्थानीय डाउन सिंड्रोम संगठन हैं, जो अपने स्थानीय क्षेत्र में डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोगों की मदद करते हैं।
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