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पढ़ाई के दौरान इस लड़की को आया ऐसा गजब का आइडिया..खड़ी की खुद की कंपनी और बन गई करोड़पति
रांची, झारखंड. यह हैं डाल्टनगंज की रहने वालीं शिल्पी सिन्हा। इनकी उम्र महज 27 साल है। लेकिन इस लड़की के दिमाग में 8-9 साल पहले एक गजब का आइडिया आया था। इसके बाद उसने खड़ी कर दी खुद की कंपनी। आमतौर पर 21 साल की उम्र मौजमस्ती वाला समय माना जाता है, लेकिन इस लड़की ने जिंदगी को एंजॉय करते हुए अपना बिजनेस प्लान किया था। फिर 25 साल की उम्र में शिल्पी ने 'द मिल्क इंडिया कंपनी' की स्थापना की। दो साल में ही शिल्पी की कंपनी का सालाना टर्न ओवर करीब 2 करोड़ रुपए पहुंच गया है। यह कंपनी गाय का शुद्ध दूध लोगों तक पहुंचाती है। फिलहाल, उनका स्टार्टअप बेंगलुरु में स्थित सरजापुर के 10 किमी के एरिया में 62 रुपए प्रति लीटर की कीमत पर गाय का दूध मुहैया कराती है। शिल्पी 2012 में हायर एजुकेशन के लिए बेंगलुरु पहुंची थीं। अब वे वहीं रहती हैं। वे बताती हैं कि वहां गाय का शुद्ध दूध नहीं मिलता था। जैसा कि फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया(FSSAI) के सर्वे में बात सामने आई थी कि हमारे देश में हर तीन में दो लोग मिलावटी दूध पीते हैं। उन्हें भी इसी समस्या का सामना करना पड़ा। इसके बाद उन्होंने लोगों को शुद्ध दूध मुहैया कराने का बीड़ा उठाया। जानिए शिल्पी की सक्सेस कहानी...
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विभिन्न मीडिया को दिए अपने इंटरव्यू में शिल्पी मानती रही हैं कि वे झारखंड के डाल्टनगंज की रहने वाली हैं। यह शहर बेंगलुरु से करीब 20 गुना छोटा है। शिल्पी अपने घर में दिन की शुरुआत एक कप दूध से करती थीं। लेकिन बेंगलुरु में उन्हें शुद्ध दूध के लिए दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
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शुद्ध दूध की समस्या से जूझते हुए शिल्पी ने खुद का स्टार्टअप शुरू करने की प्लानिंग की। इस तरह 2018 में 'द मिल्क इंडिया कंपनी' की नींव डाली। इस कंपनी का फोकस 1-8 साल तक के बच्चों को गाय का दूध मुहैया कराना है। दरसअल, गाय के दूध को बच्चों के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है।
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अपना स्टार्टअप शुरू करने से पहले शिल्पी ने कर्नाटक और तमिलनाडु के 21 गांवों का दौरा किया। वहां के किसानों से बात की। उन्हें अपने स्टार्टअप के बारे में बताया। इस तरह उन्हें अपने साथ जोड़ा। हालांकि सबकुछ इतना आसान नहीं था। शिल्पी ने बताया कि उन्हें स्थानीय किसानों से बात करने में दिक्कत आती थी। क्योंकि उन्हें कन्नड़ या तमिल नहीं आती थी। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। वे जब भी गांव में जातीं, एकदम देहाती वेश-भूषा अपनातीं।
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शिल्पी ने बताया कि गांवों में विजिट के दौरान उन्होंने देखा कि किसान अपनी गायों को चारा खिलाने के बजाय रेस्टारेंट की जूठन खिला रहे थे। उन्होंने किसानों को गायों की देखभाल का तौर-तरीका सिखाया।
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शिल्पी ने बताया कि शुरुआत में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। उनको काम करने वाले नहीं मिल रहे थे। इसलिए वे खुद रात 3 बजे डेयरी पर जाती थीं। अपनी सुरक्षा के लिए चाकू और मिर्ची स्प्रे साथ रखती थीं।
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पिछले 3 साल से अपने परिवार से दूर शिल्पी कहती हैं कि अपनों से दूर रहना भावुक करता है, लेकिन उन्हें खुशी है कि उनका स्टार्टअप सक्सेस हो गया। आज शिल्पी 50 किसानों और 14 मजदूरों के नेटवर्क को संभाल रही हैं। अपने कर्मचारियों को शिल्पी मिनी फाउंडर्स बुलाती हैं।
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शिल्पी बताती हैं कि सिर्फ माउथ पब्लिसिटी के दम पर उनके स्टार्टअप से 500 से ज्यादा ग्राहक जुड़ गए हैं। शिल्पी खुश हैं कि वे ऐसी मांओं क दुआएं ले रही हैं, जिनके बच्चों को शुद्ध दूध नहीं मिल पाता था।
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