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गजब आइडिया: फसलों को कीटों और रोगों से बचाने किसान ने देसी जुगाड़ से निकाली यह तरकीब
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मनीष बताते हैं कि एक बीघा में मिर्च लगाने पर जुताई पर 25 हजार रुपए का खर्च आता है। इसमें पुरानी साड़ियां लेने पर 8 हजार रुपए खर्च शामिल है। अगर किसान बाजार से रेडिमेड क्रॉप कवर खरीदेगा, तो खर्चा डबल हो जाएगा। इस प्रयोग से फसल की पैदावार बढ़ी है। उद्यानिकी विभाग के एसडीओ सुरेश इनवाती ने बताया कि इस प्रयोग से फसल में कोई बीमारी नहीं लगती। वहीं, गर्मी, ठंड और बारिश में एक-सा तापमान बना रहता है।
आगे पढ़िए कबाड़ की जुगाड़ से 22 साल के किसान ने बना दीं कई गजब मशीनें, जानिए इनकी खूबियां
चित्तौड़गढ़, राजस्थान. दिमाग शॉर्प हो, तो कबाड़े का भी सदुपयोग किया जा सकता है। हर बेकार चीज असेंबल करके काम में लाई जा सकती है, कैसे? इस 22 साल के इस किसान से सीखिए। यह हैं नारायण लाल धाकड़। ये जिले के एक छोटे से गांव जयसिंहपुरा में रहते हैं। ये जुगाड़ तकनीक से कई ऐसी मशीनें बना चुके हैं, जो खेती-किसानी में बड़े काम आ रही हैं। ये अपने सारे आविष्कार यूट्यूब चैनल 'आदर्श किसान सेंटर' के जरिये डेमो देते हैं। इनके चैनल को लाखों लोग फॉलो करते हैं। नारायण ने एक मीडिया को बताया था कि जब वे 12 साल के थे, तब से खेतों पर जाने लगे थे। 12वीं की पढ़ाई के बाद वे खेती-किसानी के लिए उपकरण बनाने लगे। नील गायें किसानों के लिए बड़ी समस्या होती हैं। उन्हें मारकर भगाने का दिल नहीं करता। इसे ध्यान में रखकर नारायण ने यह उपकरण बनाया। आगे देखिए इन्हीं के देसी जुगाड़ वाले उपकरण...
देसी जुगाड़ से बनाया गया यह उपकरण ऐसी आवाज करता है कि नील गायें खेतों से भाग खड़ी होती हैं। नारायण का यह उपकरण काफी सुर्खियों में है। आगे देखिए इन्हीं के देसी जुगाड़ वाले उपकरण...
नारायण के देसी जुगाड़ की यह छोटी सी चीज खरपतवार उखाड़ने के काम आती है। आगे देखिए इन्हीं के देसी जुगाड़ वाले उपकरण...
फसल को साफ करने वाली यह छलनी नारायण ने घर पर ही घी के कनस्तर को काटकर तैयार कर ली।
कपास की फसल को उखाड़ना कठिन होता है। नारायण का यह उपकरण पौधे को पकड़कर आसानी से जमीन से उखाड़ देता है।
नारायण की देसी जुगाड़ से बनी यह मशीन भारी वजन उठाकर ले जाने में काम आती है।
कीड़े-मकोड़े भगाने के लिए नारायण ने लैंपनुमा यह मशीन तैयार की है।
नारायण के पिता का इनके जन्म से पहले ही हार्ट अटैक से निधन हो गया था। इनकी परवरिश मां सीतादेवी ने अकेले की। इनकी दो जुड़वां बहने हैं।
नारायण बचपन से ही अपनी मां के साथ खेतों पर जाते थे। तब से उन्हें मिट्टी से प्रेम हो गया।