दिल्ली दंगा: आठ आरोपी बरी, न सीसीटीवी फुटेज मिला न शिकायतकर्ता कर पाए पहचान
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दिल्ली दंगे में आगजनी के शिकार दुकानदारों द्वारा दायर 12 शिकायतों के आधार पर आठ लोगों को अरेस्ट किया गया था। आरोप था कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा के दौरान दंगाइयों द्वारा उनकी दुकानों को कथित रूप से लूट लिया गया था और तोड़फोड़ की गई थी।
कोर्ट से आठ आरोपियों को बरी इसलिए किया गया क्योंकि आरोपियों के खिलाफ किसी ने गवाही नहीं दी। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि केवल पुलिस कॉन्स्टेबलों द्वारा दिए गए बयानों के आधार पर आईपीसी की धारा 436 लागू नहीं की जा सकती।
सत्र न्यायाधीश ने 10 सितंबर को एक आदेश में कहा कि लिखित शिकायतों के विश्लेषण से पता चलता है कि किसी भी शिकायतकर्ता ने आरोपी व्यक्तियों को दंगाइयों की भीड़ में शामिल होने के लिए नहीं पहचाना है, जिन्होंने उनकी दुकानों में तोड़फोड़ की थी।
शिकायतकर्ताओं द्वारा उनकी दुकानों में आगजनी के संबंध में कोई आरोप नहीं लगाया गया है और आईपीसी की धारा 436 ऐसी सामग्री, शिकायतों या बयानों से बिल्कुल भी मेल नहीं खाती है।
कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड पर दर्ज तस्वीरों से भी आग या विस्फोटक पदार्थ द्वारा शरारत करने की कोई घटना सामने नहीं आई है, उन्होंने कहा कि घटना का कोई सीसीटीवी फुटेज या वीडियो क्लिप भी रिकॉर्ड में नहीं है।
शिकायतकर्ता भी खुद अलग-अलग बयान दे रहे थे
स्वतंत्र चश्मदीदों के बयान के रूप में रिकॉर्ड पर कोई कनेक्टिंग सबूत नहीं है जिन्होंने घटना के समय आरोपी व्यक्तियों को देखा था। न्यायाधीश ने कहा कि एक शिकायतकर्ता ने कहा कि कथित अपराध 25 फरवरी को हुआ था, जबकि अन्य ने दावा किया कि यह 24 फरवरी को हुआ था।
फरवरी 2020 में सांप्रदायिकता की आग में जल रही थी दिल्ली
फरवरी 2020 में नागरिकता संशोधन कानून के समर्थकों और उसके प्रदर्शनकारियों के बीच उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक झड़पें हुईं थी। इस हिंसा के बाद कम से कम 53 लोग मारे गए और 700 से अधिक घायल हो गए थे।
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