चीन के सामने दीवार बनकर भारत की सुरक्षा करता है म्यांमार, जानिए कुछ पुराने किस्से
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म्यांमार को ब्रह्मदेश भी कहते हैं। यह दक्षिण एशिया का एक देश है। इसका पुराना अंग्रेजी नाम बर्मा था। यहां सबसे अधिक बर्मी नस्ल के लोग निवासरत हैं, इसलिए इसे बर्मा कहते थे। इस समय म्यांमार की नई राजधानी नैप्यीदा (Naypyitaw) है। बर्मी भाषा में म्यांमार को म्यन्मा या बमा कहते हैं। 1989 में यहां की सैन्य सरकार ने इसका नाम बर्मी कर दिया था। यानी तब म्यांमार को म्यन्मा और रंगून को यांगून कहने लगे थे। इस समय यहां तख्तापलट के चलते अफरा-तफरी मची हुई है।
भारत और म्यांमार के संबंध बहुत पुराने हैं। 1937 तक बर्मा भी भारत का ही हिस्सा था। यह वही बर्मा है, जहां भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली संगठित लड़ाई के लीडर बहादुरशाह जफर को कैद करके रखा गया था। मौत के बाद वहीं उन्हें दफनाया गया था। बाल गंगाधर तिलक को भी बर्मा में ही अंग्रेजों ने कैद करके रखा था।
भारत और म्यांमार की सीमाएं 1600 किमी तक एक-दूसरे से जुड़ी हैं। बंगाल की खाड़ी में समुद्री सीमा से भी दोनों देश जुड़े हुए हैं। अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर और नागालैंड की सीमाएं म्यांमार से सटी हैं।
एक आकलन के अनुसार म्यांमार में 25 लाख भारतीय प्रवासी रहते हैं। म्यांमार की नेता आंग सू की का भी भारत से गहरा नाता है। उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से पढ़ाई की थी। तब उनकी मां भारत में राजदूत थीं।
(यह तस्वीर 2016 में लाओस की राजधानी वियनतियाने में आयोजित 11वें पूर्वी एशिया शिख सम्मेलन के दौरान की है, जब आंग सू की ने मोदी से मुलाकात की थी)
म्यांमार रोहिंग्या मुसलमानों को देश से खदेड़ने की वजह से दुनियाभर में चर्चित है। यहां की करीब 10 लाख मुस्लिम आबादी को जनगणना में जगह नहीं दी गई है। हिंसा के चलते रोहिंग्या भागकर बांग्लादेश में आ रहे हैं।
(फोटो साभार-रायटर्स)
म्यांमार का इतिहास
जनवरी, 1948-म्यांमार को आजादी मिली
सितंबर, 1987-नोटबंदी के चलते लोग बर्बाद हुए और सरकार विरोधी दंगे भड़के
जुलाई, 1989- सत्ताधारी जुंटा ने मार्शल ला की घोषणा की। नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की नेता आंग सान सू की घर में नजरबंद
मई, 1990-आम चुनावों में एनएलडी की भारी जीत, जुंटा ने चुनाव के नतीजों को मानने से इन्कार किया।
अक्टूबर, 1991-सू की को नोबेल शांति पुरस्कार
जुलाई, 1995-सू की की नजरबंदी से रिहाई
मई, 2003-जुंटा व एनएलडी समर्थकों के बीच झड़प के बाद सू की को फिर हिरासत में ले लिया गया
सितंबर, 2007-बौद्ध भिक्षुओं द्वारा सत्ता विरोधी प्रदर्शन
अप्रैल, 2008-सरकार ने प्रस्तावित संविधान छपवाया, जिसके मुताबिक एक तिहाई संसदीय सीटें सेना के हिस्से जाएंगी। सू की के किसी भी प्रकार के पद ग्रहण करने पर प्रतिबंध
और अब 1 फरवरी, 2021 को फिर तख्तापलट, आंग सान सू हिरासत में
(1882 में कोलकाता में बर्मा के दूत)