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कवि सम्मेलन के बाद ट्रक में बैठकर घर आते थे कुमार विश्वास, स्कूल से बंक मारकर देखी खूब फिल्में
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खुद से भी मिल न सको, इतने पास मत होना
इश्क़ तो करना, मगर देवदास मत होना
कुमार विश्वास की शुरुआती शिक्षा पिलखुआ के लाला गंगा सहाय स्कूल से हुई। इनके पिता डॉ. चंद्रपाल शर्मा चाहते थे कि वे इंजीनियर बनें। लेकिन कुमार ने बीच में इंजीनियरिंग छोड़ दी। फिर हिंदी साहित्य में गोल्ड मैडल के साथ ग्रेजुएशन किया।
कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
कुमार विश्वास ने जब कवि सम्मेलनों में जाना शुरू किया, तब उनके पास इतने पैसे नहीं होते थे कि आने-जाने पर खर्च कर सकें। ऐसे में किसी से भी लिफ्ट मांग लेते थे। कई बार ट्रकों में भी लिफ्ट ली।
दिल के तमाम ज़ख़्म तिरी हां से भर गए
जितने कठिन थे रास्ते वो सब गुज़र गए
कुमार विश्वास ने अगस्त, 2011 में जनलोकपाल आंदोलन के लिए गठित टीम अन्ना के एक सक्रिय सदस्य थे। इसके बाद 26 नवंबर, 2012 में गठित आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य थे।
ऐ मोहब्बत तिरी अदालत में
एक शिकवा हूँ इक गिला हूं मैं
मिलते रहिए कि मिलते रहने से
मिलते रहने का सिलसिला हूं मैं
कुमार विश्वास मूलत: श्रृंगार रस के कवि हैं। इनकी दो पुस्तकें 'इक पगली लड़की के बिन' (1996) और 'कोई दीवाना कहता है' (2007 और 2010 दो संस्करण) काफी लोकप्रिय रहे।
जिस्म चादर सा बिछ गया होगा
रूह सिलवट हटा रही होगी
फिर से इक रात कट गई होगी
फिर से इक रात आ रही होगी
प्रख्यात लेखक स्वर्गीय धर्मवीर भारती ने कुमार विश्वास को नई पीढ़ी में सबसे अधिक संभावनाओं वाला कवि माना था। कुमार विश्वास ने आदित्य दत्ता की फिल्म चाय गरम में एक्टिंग भी की थी। इन्होंने कुछ फिल्मों में गाने भी लिखे।
तुम्हें जीने में आसानी बहुत है
तुम्हारे ख़ून में पानी बहुत है
कबूतर इश्क़ का उतरे तो कैसे
तुम्हारी छत पे निगरानी बहुत है
कुमार विश्वास को 1994 में काव्य कुमार, 2004 में डॉ. सुमन अलंकरण अवार्ड, 2006 में श्री साहित्य अवार्ड और 2010 में गीत श्री अवार्ड से सम्मानित किया गया।
मैं तो झोंका हूं हवाओं का उड़ा ले जाऊंगा
जागती रहना, तुझे तुझसे चुरा ले जाऊंगा
कुमार विश्वास जब पढ़ते थे, तब शरारती रहे। कई बार स्कूल से भागकर फिल्म देखने चले जाते थे।
उनकी ख़ैरो-ख़बर नहीं मिलती
हमको ही ख़ासकर नहीं मिलती
शायरी को नज़र नहीं मिलती
मुझको तू ही अगर नहीं मिलती
1980 के दशक में अपने भाई विकास शर्मा के कहने पर वे पहली बार मंच पर कविता पढ़ने गए। इसका संचालक ख्यात कवि हरिओम पंवार कर रहे थे। तब कुमार को 101 रुपए मिले थे।
पगली सी एक लड़की से शहर ये ख़फ़ा है
वो चाहती है पलकों पे आसमान रखना
केवल फ़क़ीरों को है ये कामयाबी हासिल
मस्ती से जीना और ख़ुश सारा जहान रखना
कुमार विश्वास ने 2014 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से चुनाव लड़ा था, लेकिन वे हार गए थे।
रूह में दिल में जिस्म में दुनिया
ढूंढता हूं मगर नहीं मिलती
लोग कहते हैं रूह बिकती है
मैं जिधर हूं उधर नहीं मिलती
ख्यात हास्य कवि डॉ. सुरेंद्र शर्मा ने तो कुमार विश्वास को एकलौता आईएसओ: 2006 की उपमा दी थी।