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कभी इस मंदिर से गांधी-नेहरू ने जगाई थी आजादी की अलख, 90 के बाद पसर गया था मौत का खौफ
श्रीनगर के हब्बा कदल इलाके में स्थित शीतलनाथ मंदिर का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। लेकिन 1990 के दशक में घाटी में तेजी से पसरे आतंकवाद और हिंदूओं के पलायन के बाद से मानों यह मंदिर किसी वीरान जगह की तरह खौफनाक दिखने लगा था। बसंत पंचमी पर जब इस मंदिर के फिर से कपाट खुले, तो सारी दुनिया को संदेश गया कि घाटी में आतंकवाद अब खात्मे की ओर है। मंदिर में पूजा करने पहुंचे लोगों ने माना कि इस मंदिर को खुलवाने में स्थानीय मुस्लिम समुदाय का बड़ा योगदान रहा। बता दें कि शीतलनाथ श्रीनगर का प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर में कभी हिंदू हाईस्कूल भी होता था। कश्मीरी पंडितों की आवाज का प्रतीक 'मार्तण्ड' अखबार भी शीतलनाथ से ही निकलता था। आजादी की लड़ाई के दौरान महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, बलराज माधोक आदि ने यहां से कश्मीरियों को एकजुट करने की मुहिम छेड़ी थी। जानते हैं इस मंदिर के बारे में...
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1987 में हुए विवादित चुनाव के बाद कश्मीर घाटी सुलग पड़ी थी। पाकिस्तान पहले से ही कश्मीर को हथियाने की फिराक में था। लिहाजा आतंकियों को पाकिस्तान से समर्थन मिला और घाटी में बड़े पैमाने पर आतंकवाद पसर गया। इस माहौल में हिंदूओं को कश्मीर से पलायन करना पड़ा। माना जाता है कि कश्मीर में 50 हजार से ज्यादा मंदिरों को बंद करना पड़ा। शीतलनाथ मंदिर भी उनमें से एक था। 2019 में केंद्र सरकार ने मंदिरों को खोलने का ऐलान किया था।
2014 में कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति ने इस मंदिर को अस्थायी तौर पर खोला था। तब से मंदिर में नियमित पूजा-अर्चना होती आई है, लेकिन अब यह आम लोगों के लिए भी खोल दिया गया है। 2014 में आई बाढ़ के चलते मंदिर प्रभावित हुआ था।
श्रीनगर के मेयर अजीम मट्टू खुद शीतलनाथ के मंदिर में दर्शन करने पहुंचे। उनके मुताबिक, श्रीनगर में 30 मंदिर चिह्नित किए गए हैं, जिनका जीर्णोद्धार कराया जाएगा।
हालांकि 5 अगस्त 2019 में आर्टिकल-370 खत्म किए जाने के बाद से जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद दम तोड़ने लगा है। पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी आई है। 8 फरवरी को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने राज्यसभा में बताया था ककि 2019 में 157 आतंकवादी मारे गए थे, जबकि 2020 में 221। 2019 में आतंकवादी हिंसा के 594 मामले हुए थे, जो 2020 में सिर्फ 244 हो गए।
बता दें कि 1990 में घाटी में पसरे आतंकवाद के चलते करीब 4 लाख से ज्यादा कश्मीरी पंडितों को पलायन करना पड़ा था। लेकिन अब हालात सुधर रहे हैं।