1905 का वो खूनी संडे, जब सैनिकों ने 500 निहत्थे मजदूरों को गोलियों से भून दिया था
22 जनवरी, 1905 रविवार का दिन इतिहास में 'रूसी क्रांति' की शुरुआत माना जाता है। इस दिन अपने मेहनताने और काम के घंटों जैसे मुद्दे पर मजदूर प्रदर्शन कर रहे थे। सैकड़ों मजदूर आंदोलन करते हुए पीटर्सबर्ग के विंटर पैलेस की ओर कूच कर चुके थे। ये लोग शासक जार निकोलस से मिलने रवाना हुए थे। लेकिन इससे पहले ही महल में सैनिकों ने उन पर गोलियां बरसा दीं। इसमें 500 से ज्यादा मजदूर मारे गए। इस दिन को रूस के इतिहास में खूनी संडे कहा जाता है। इसी घटना के बाद 1917 में व्लादिमिर लेनिन के नेतृत्व में रूसी क्रांति की शुरुआत हुई। यानी रूसी क्रांति दो चरणों में हुई।
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1905 में रूसी साम्राज्य में एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन हुआ था। इसे ही रूसी क्रांति के नाम से जाना जाता है। जापान से हुए युद्ध में हारने के बाद रूस निराशा और असंतोष में था। जनता शासन से इतनी नाराज हो उठी कि विद्रोह कर दिया। जापान ने इसमें आग में घी डालने का काम किया।
जार एक तरह से तानाशाह था। वे अपनी मनमर्जी करता था। जार के मंत्री पोवीडोनोस्नेव, टाल्सटाय और प्लेहवे ने आंदोलन को दबाने जनता पर घोर अत्याचार किए। इससे आतंकवाद बढ़ता चला गया।
रूसी क्रांति 1905 से 1917 तक चली। 1917 में हुई क्रांति को बोल्शेविक क्रांति कहते हैं। बोल्शेविक एक राजनीतिक ग्रुप था। इसने रूस की क्रांति में खास भूमिका निभाई थी।
रूसी क्रांति के बाद जार के राज्य का अंत हो गया और रूस सोवियत समाजवादी गणराज्य में बदल गया। इस क्रांति के बाद रूस विश्व में एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरा।
रूसी क्रांति का नेतृत्व व्लादिमिर इलीइच उल्यानोव ने किया था। उन्हें लेनिन के नाम से जाना जाता था। उनका जन्म 22 अप्रैल, 1870 को हुआ था। मृत्यु 21 जनवरी, 1924 को। वे 1917 से 24 तक सोवियत रूस और 1922 से 24 तक सोवियत संघ के भी हेड ऑफ गवर्नमेंट रहे।