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जानें क्यों डूब रहा जोशीमठ? बचाने के क्या हैं उपाय, 1976 से ही इस पहाड़ी शहर में बज रही खतरे की घंटी

जोशीमठ। उत्तराखंड का पहाड़ी शहर जोशीमठ (Joshimath) डूबने की कगार पर है। सड़क से लेकर घरों तक में पड़ी दरारें और उनसे रिसता पानी लोगों के दिलों में खौफ भर रहा है। डर है कि कहीं यह शहर अचानक ताश के पत्तों की तरह ढह न जाए। इसके डूबने का सबसे बड़ा कारण यहां की जियोग्राफी से जुड़ा है। 1976 से ही इस शहर में खतरे की घंटी बज रही है। यह शहर पर्यटन के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है। बद्रीनाथ, औली, फूलों की घाटी और हेमकुंड साहिब जाने वाले पर्यटक यहां रात में विश्राम करते हैं। इसके साथ ही जोशीमठ भारतीय सशस्त्र बलों के लिए भी बहुत अधिक सामरिक महत्व का है। यहां सेना की सबसे महत्वपूर्ण छावनियों में से एक स्थित है। आगे पढ़ें पूरी खबर...  

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Asianet News Hindi
Published : Jan 07 2023, 01:07 PM IST
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हिमालय की तलहटी में बसे जोशीमठ शहर में पिछले कुछ दशकों में तेजी से जनसंख्या बढ़ी है। बहुत अधिक निर्माणकार्य हुए हैं। इसके चलते शहर पर ढह जाने का खतरा मंडरा रहा है। इस क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिक और भूवैज्ञानिक दशकों से खतरे की घंटी बजा रहे हैं। 2022 की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि जोशीमठ के आसपास का क्षेत्र बहुत अधिक बोझ वाली सामग्री की मोटी परतों से ढका हुआ है। 1976 में आई पहली रिपोर्ट में बताया गया था कि जोशीमठ खतरे में है। सरकार द्वारा नियुक्त मिश्रा आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि जोशीमठ प्राचीन भूस्खलन स्थल पर स्थित है।
 

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जोशीमठ के डूबने का सबसे बड़ा कारण यहां की जियोग्राफी है। यह शहर भूस्खलन के मलबे पर बसा है। यहां की जमीन की बोझ उठाने की क्षमता कम है। विशेषज्ञों ने लंबे समय से चेतावनी दी है कि जोशीमठ में बहुत अधिक निर्माणकार्य हो रहे हैं। यहां की जमीन इतना बोझ नहीं उठा पाएगी। बहुत अधिक घरों के निर्माण, पनबिजली परियोजनाओं और राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण ने पिछले कुछ दशकों में ढलानों को बहुत अधिक अस्थिर बना दिया है।
 

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विष्णुप्रयाग नदी की धाराओं और दूसरी प्राकृतिक धाराओं के साथ कटाव बढ़ने से भी जोशीमठ पर खतरा बढ़ा है। क्षेत्र में बिखरी हुई चट्टानें पुराने भूस्खलन के मलबे से ढकी हुई हैं। इस मलबे में बोल्डर, गनीस चट्टानें और ढीली मिट्टी शामिल हैं। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के शोधकर्ताओं द्वारा किए 2022 में जोशीमठ में सर्वे किया गया था। सर्वे के रिपोर्ट में बताया गया था कि गनीस चट्टानें पानी के चलते तेजी से टूटतीं हैं। इन चट्टानों में बहुत अधिक छिद्र होते हैं। इनमें पानी जाने से चट्टान कमजोर होती है और टूट जाती है। विशेष रूप से मानसून के दौरान अधिक नुकसान होता है। 
 

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वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की वैज्ञानिक डॉ. स्वप्नमिता वैदेश्वरन ने 2006 की एक रिपोर्ट में बताया था कि ऊपर की ओर की धाराओं से रिसाव हुआ है, जिसने जोशीमठ की मिट्टी ढीली हो गई है। शहर की जल निकासी प्रणाली ठीक नहीं है। नाले का पानी जमीन के नीचे पहुंच जाता है। बाद में यह नीचे की ओर बहकर धौलीगंगा या अलकनंदा नदी में मिल जाता है। जोशीमठ शहर का रख-रखाव अच्छी तरह से नहीं किया जाता है। 2013 की हिमालयी सूनामी से आए कीचड़ से नालों के बहाब को बाधित किया है। इससे इस क्षेत्र में कटाव हुआ है। ऋषिगंगा बाढ़ की आपदा ने भी स्थिति को और खराब कर दिया है। 
 

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विशेषज्ञों के अनुसार जोशीमठ को बचाना है तो इस इलाके में निर्माणकार्य और पनबिजली परियोजनाओं को पूरी तरह से बंद करना होगा। बदलते भौगोलिक कारकों को ध्यान में रखते हुए शहर को व्यवस्थित करना होगा। शहर के ड्रेनेज सिस्टम को ठीक करना होगा। यह पक्का करना होगा कि नाले से पानी का रिसाव नहीं हो। शहर खराब जल निकासी और सीवर मैनेजमेंट सिस्टम से पीड़ित है। कचरा मिट्टी में रिस रहा है। इसे भीतर से ढीला कर रहा है। राज्य सरकार ने सिंचाई विभाग को इस मुद्दे पर गौर करने और जल निकासी व्यवस्था के लिए नई योजना बनाने के लिए कहा है। मिट्टी की वजन उठाने की क्षमता को बनाए रखने और उसे ढहने से रोकने के लिए पौधारोपण करना होगा। 
 

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