खुशियों की अंतिम तैयारी, चंद दूरी पर है दिवाली
| Published : Oct 23 2019, 11:18 AM IST / Updated: Oct 23 2019, 11:23 AM IST
खुशियों की अंतिम तैयारी, चंद दूरी पर है दिवाली
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यह तस्वीर राजस्थान की है। एक कुम्हार अपने काम में किस तरह डूबा हुआ है, साफ देखा जा सकता है। एक समय था, जब दीये जलाकर ही घर रोशन किया जाता था, लेकिन जब से इलेक्ट्रिक लाइट्स का प्रचलन बढ़ा है, कुम्हारों की आजीविका पर संकट खड़ा हो गया है।
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दिवाली पर दीयों के अलावा अन्य मिट्टी के बर्तनों आदि का भी इस्तेमाल होता रहा है। कुम्हार जाति को सिर्फ मजदूर नहीं माना जाता। वे माटी के कलाकार होते हैं। माटी को अपने हुनर से किस्म-किस्म का रूप दे देते हैं।
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दीयों को अंतिम रूप देती एक कुम्हार महिला। असली दिवाली दीये जलाने पर ही मनती है। कोशिश करें कि फिर से असली दिवाली पर लौटें। घरों में दीये रोशन करें। दीये खरीदकर कुम्हारों के घरों में भी खुशियां आने दें।
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दीयों को कलर करता एक कुम्हार। यह तस्वीर पंजाब के जालंधर की है। धार्मिक मान्यता है कि जब भगवान राम वनवास से वापस अयोध्या लौटे थे, तब दीये जलाकर ही रोशनी की गई थी। जश्न मनाया गया था। सारी परंपराएं सामाजिक उद्देश्य से जोड़कर बनाई गई हैं। ये लोगों की आर्थिक और सामाजिक हैसियत में वृद्धि करती हैं।
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दीयों की रोशनी प्राकृतिक रूप से भी अच्छी होती है। यह प्रदूषण नहीं फैलाती। यानी मिट्टी के दीये नष्ट होने पर फिर से मिट्टी बन जाते हैं।
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यह तस्वीर तमिलनाडु की है। एक महिला पटाखे तैयार करते हुए। दिवाली हो और पटाखे न फोड़े जाएं, ऐसा हो ही नहीं सकता। पटाखों का कारोबार भी कई परिवारों के पेट पालता है।