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वो आंदोलन जिसमें 940 लोगों ने गवाईं थी जान, गांधी समेत इन प्रमुख नेताओं को भी जाना पड़ा था जेल
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अंग्रेजों को भारत में हुकुमत करते हुए करीब दो सौ साल से अधिक का वक्त गुजर चुका था। 8 अगस्त 1942 को एक खास रणनीति बनाई गई, जिसमें उन्हें देश से भगाने की रूप रेखा तैयार हुई।
इस दिन कांग्रेस का अधिवेशन था। इस अधिवेशन में तब के बंबई, जिसे आज मुंबई कहते हैं, के गोवालिया टैंक मैदान पर प्रस्ताव पारित हुआ और आंदोलन की देशभर में बड़े पैमाने पर शुरुआत कर दी गई।
अगले दिन यानी 9 अगस्त को यह आंदोलन पूरे देश में बड़े पैमाने पर फैल चुका था। इस आंदोलन और लोगों के उत्साह तथा जुनून को देखकर अंग्रेजों की हालत खराब होने लगी।
वे किसी तरह इस आंदोलन को रोकना चाहते थे। चूंकि, इस आंदोलन का नेतृत्व खुद महात्मा गांधी कर रहे थे, इसलिए अंग्रेजों के सामने चुनौती और बढ़ गई थी।
महात्मा गांधी ने खुद गोवालिया टैंक मैदान पर देशवासियों को संबोधित किया, जिसका तीखा असर हुआ और अंग्रेजी सरकार में खौफ बढ़ गया। उन्होंने इसे दबाने के लिए लोगों को जेल में डालना शुरू कर दिया।
तब महात्मा गांधी ने कहा था कि मैं देशवासियों को यह मंत्र देना चाहता हूं कि वे इसके लिए जी जान लगा दें और यह मंत्र था करो या मरो। बाद में इस मैदान को गोवालिया टैंक मैदान की जगह अगस्त क्रांति मैदान नाम दिया गया।
लोग शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे थे, मगर अंग्रेजी हुकुमत इसे भड़काकर हिंसक बनाना चाहती थी, जिससे जल्द से जल्द इसे दबा दिया जाए।
अंग्रेजी हुकुमत ने महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, अरुणा आसफ अली, मौलाना आजाद समेत कई बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। अंग्रेजों को लगा कि ऐसा करने से लोग डर जाएंगे और आंदोलन ठंडा पड़ जाएगा, मगर लोग दोगुने उत्साह से आंदोलन में भाग लेने लगे।
गांधी जी के गिरफ्तार होते ही लोगों ने आंदोलन की कमान अपने हाथ में ले ली। अंग्रेजों ने इसे हिंसक बनाने के लिए पैंतरे शुरू कर दिए।
इसके बाद लो उग्र हो गए। रेलवे स्टेशन, सरकारी भवन पर हिंसक भीड़ ने हमला बोल दिया। अंग्रेज सरकार यही चाहती थी। उसने भी अपनी कार्रवाई शुरू कर दी, जिसमें बहुत से लोग मारे गए, जबकि कई घायल हुए।