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खेतों में मजदूरी कर पेट पाल रही नाबालिग दोषी की मां, नहीं देखना चाहती दरिंदे बेटे का चेहरा
बदायूं. देश में हुए वीभत्स निर्भया गैंगरेप केस में बड़ी खबर सामने आ रही है कि 1 फरवरी को फांसी पर रोक लगा दी गई है। अनिश्चितकाल के लिए अभी चारों दोषियों की फांसी पर रोक लग गई है। साल 2020 में 1 फरवरी को निर्भया के चारों दरिंदों को फांसी होनी थी। इन चारों दोषियों के अलावा एक और दोषी भी है जिसने निर्भया के साथ सबसे ज्यादा दरिंदगी की थी। दिल्ली गैंगरेप का ये नाबालिग दोषी तीन साल की सजा काटकर छूट चुका है। हम आज आपको उसके परिवार और घर से जुड़ी अनसुनी बातें बताने वाले हैं। इस दोषी की मां कैसे बदलहाली और गुलाम की जिंदगी जीने को मजबूर है। गरीबी में जी रही मां फिर भी अपने दरिंदे बेटे का चेहरा नहीं देखना चाहती है।
| Published : Jan 31 2020, 06:18 PM IST
खेतों में मजदूरी कर पेट पाल रही नाबालिग दोषी की मां, नहीं देखना चाहती दरिंदे बेटे का चेहरा
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इस गांव के लोग किसी भी सूरत में नहीं चाहते कि वो दोषी गांव लौटकर आए। गांव वालों का मानना है कि उसने गांव का नाम मिट्टी में मिला दिया है।निर्भया के नाबालिग दोषी के बारे में गांव वालों से बात करने की कोशिश की तो सभी के चेहरों के भाव बदल जते हैं। कुछ तो बुरा मुंह बनाकर वहां से चले जाते हैं। (फाइल फोटो)
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इस गांव के लोग किसी भी सूरत में नहीं चाहते कि वो दोषी गांव लौटकर आए। गांव वालों का मानना है कि उसने गांव का नाम मिट्टी में मिला दिया है।निर्भया के नाबालिग दोषी के बारे में गांव वालों से बात करने की कोशिश की तो सभी के चेहरों के भाव बदल जते हैं। कुछ तो बुरा मुंह बनाकर वहां से चले जाते हैं।
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गांव के लोग कहते हैं, हम लोगों को समाज में उसके कारण शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है। हम उसका नाम लेना भी पसंद नहीं करते। निर्भया के नाबालिग दोषी के घर का पता पूछने पर भी लोग मुंह बनाकर इधर-उधर खिसक जाते हैं।
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यूं तो निर्भया के नाबालिग दोषी का गांव बदायुं के करीब होने के कारण थोड़ी बेहतर स्थिति में है। पक्की सड़कें और नालियां बनी हुई हैं। पर दोषी की मां एक झोपड़ीनुमा कच्चे घर में रहती है वो अपने बेटे के कर्मों का फल भुगतनों को मजबूर है।
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दोषी की मां बताती है कि, बेटे को इस उम्मीद से दिल्ली भेजा था कि वो चार पैसे कमाएगा तो गरीबी मिटेगी, अच्छी जिंदगी जिएंगे लेकिन वो बुरी संगत में पड़ गया और उसने ऐसा काम किया कि हम किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं बचे।' (दोषी के गांव की तस्वीर)
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दोषी की मां बताती है कि, बेटे को इस उम्मीद से दिल्ली भेजा था कि वो चार पैसे कमाएगा तो गरीबी मिटेगी, अच्छी जिंदगी जिएंगे लेकिन वो बुरी संगत में पड़ गया और उसने ऐसा काम किया कि हम किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं बचे।'
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बेटे को साथ रखने के सवाल पर वो भड़क जाती हैं और कहती है कि 'उसने जो किया है, उसके बाद मेरे घर में उसके लिए कोई जगह नहीं है।'
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दोषी की मां ने कहा- 'जो भी बाहर से आता है, वह सिर्फ बेटे के बारे में पूछता है। बाहरवालों के आने से गांव वाले भी नाराज होते हैं। हमारी और गांव की बेइज्जती होती है। सब लोग हमें नफरत भरी नजरों से देखते हैं। हालांकि, जरूरत पड़ने पर गांव वाले ही मदद के लिए आगे आते हैं। उन्हीं के खेतों पर काम करके परिवार को पाल रही हूं।'
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बता दें कि साल 2015 के बाद से निर्भया केस का नाबालिग दोषी घर नहीं लौटा है। उसके लिए गांव में गुस्सा और नफरत है। हालांकि गांव के सरपंच का कहना है कि, उसमें सुधार देख अगर वो मां की मदद करना चाहे तो उसे गांव में रहने की इजाजात दी जाएगी। हालांकि ये तभी संभव है जब उसका कोई अता-पता हो।