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भैया! सामने से हट जाओ, बापू को जाने दो, लेकिन गोडसे नहीं रुका, उसने गांधी को क्यों मारा, नहीं खुला ये राज़
30 जनवरी, 1948, नई दिल्ली का बिड़ला भवन। शाम के करीब 5.20 मिनट। बिड़ला भवन में रोज शाम को पांच बजे प्रार्थना होती थी। लेकिन इस दिन गांधीजी सरदार पटेल के साथ किसी मीटिंग में व्यस्त थे। वे विलंब से प्रार्थना के लिए निकले। बापू आभा और मनु के कंधों पर हाथ रखकर मंच की तरफ बढ़े, तभी गोडसे वहां पहुंचा। पहले उसने हाथ जोड़कर नमस्ते कहा। इस बीच मनु ने गोडसे से कहा कि भैया! सामने से हट जाओ..बापू को जाने दो, उन्हें पहले से ही देर हो चुकी है। अचानक गोडसे ने मनु को धक्का दिया। अपने हाथों में छुपाकर रखी सबसे छोटी बैरेटा पिस्टल निकाली और गांधीजी के सीने में तीन फायर झोंक दिए। दो गोलियां आर-पार निकल गईं, जबकि एक धंसी रह गई। इस तरह 78 साल के महात्मा गांधी का दु:खद अंत हो गया। गोडसे ने गांधी को क्यों मारा, इसकी असली वजह कभी सामने नहीं आई। हालांकि माना जा रहा है कि वो देश के बंटवारे से नाराज था।
/ Updated: Jan 29 2021, 11:58 PM IST
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नाथूराम गोडसे(19 मई, 1910-15 नवंबर, 1949) का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था। हाईस्कूल की पढ़ाई बीच में छोड़कर वो आजादी की लड़ाई में शामिल हो गया। दावा किया जाता है कि वो अपने भाइयों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(RSS) से जुड़ गया। बाद में उसने हिंदू राष्ट्रीय दल भी बनाया। गोडसे हिंदू राष्ट्र नाम से एक पत्र भी निकालता था।
(गांधीजी की अंतिम यात्रा की तस्वीर)
गोडसे ने न कोर्ट में और न बाहर इसकी सही वजह बताई कि उसने गांधीजी को क्यों मारा? हालांकि सबके अपने-अपने तर्क हैं।
-कोई कहता है कि कश्मीर समस्या के बावजूद जिन्ना ने गांधीजी के पाकिस्तान दौरे को सहमति दे दी थी। गोडसे को लगने लगा था कि गांधीजी के मन में मुस्लिमों के प्रति ज्यादा दयाभाव है। गोडसे ने एक बार कहा था कि गांधीजी साधु हो सकते हैं, लेकिन राजनीतिज्ञ नहीं।
-एक कारण यह भी माना जाता है कि पाकिस्तान को 55 करोड़ देने के मामले में जब कांग्रेस पीछे हटी, तब गांधीजी ने आमरण अनशन की चेतावनी दी थी। गोडसे गांधीजी के इस बर्ताव से गुस्से में था।
(गांधीजी की हत्या के दौरान की तस्वीर)
गोडसे कभी गांधी का चेला था। गांधीजी के नागरिक अवज्ञा आंदोलन में उसने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। लेकिन बाद में जब गांधीजी ने बंटवारे का समर्थन किया, तब गोडसे के दिल में उनके प्रति नफरत भर गई। लेकिन उसने गांधीजी को क्यों मारा, इसकी असली वजह कभी सामने नहीं आ सकी।
(खड़े हुए : शंकर किस्तैया, गोपाल गोडसे, मदनलाल पाहवा, दिगम्बर बड़गे
बैठे हुए: नारायण आप्टे, विनायक दामोदर सावरकर, नाथूराम गोडसे और विष्णु रामकृष्ण करकरे)
बता दें कि गांधीजी की हत्या के इल्जाम में गोडसे को गिरफ्तार किया गया और पंजाब हाईकोर्ट में 8 नवंबर, 1949 को उसका ट्रायल हुआ। 15 नवंबर को उसे अंबाला जेल में फांसी दी गई।
(कोर्ट में गोडसे)
19 मई, 2019 को अरवाकुरिची विधानसभा के उपचुनाव में कमल हासन ने यह कहकर राजनीति को हवा दे दी थी कि आजाद भारत में पहला आतंकवादी एक हिंदू था। उसका नाम था-नाथूराम गोडसे। कमल हासन के इस बयान पर काफी बवाल हुआ था। दरअसल, यह विधानसभा क्षेत्र मुस्लिम बाहुल्य है।
गांधीजी के साथ चल रहे लोग भाग निकले। उसे लगा था कि जब वो गांधीजी को मारेगा, लोग उस पर टूट पड़ेंगे और उसकी भी हत्या कर देंगे। लेकिन कोई उसके पास आने की हिम्मत नहीं कर रहा था। बाद में लोग उस पर टूट पड़े। डीएसपी जसवंत सिंह के आदेश पर दसवंत सिंह और कुछ पुलिस वाले नाथूराम को तुगलक रोड थाने ले गए।
इसी सबसे छोटी बैरेटा पिस्टल से गोडसे ने गांधीजी की हत्या की थी।
गांधीजी की हत्या में गोडसे सहित 8 लोगों को आरोपी बनाया गया था। इनमें तीन आरोपियों शंकर किस्तैया, दिगंबर बड़गे और विनायक दमोदरराव सावरकर में से बड़गे सरकारी गवाह बन गया। उसे बरी कर दिया गया। शंकर किस्तैया उच्च न्यायालय से बरी हो गया। सावरकर के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले। इसलिए उन्हें भी बरी कर दिया गया।
(गांधीजी का एक दुर्लभ चित्र, जिसमें वे आभा और मनु के साथ जा रहे हैं)
गांधीजी की हत्या में पांच आरोपियों गोडसे, मदनलाल पाहवा और विष्णु करकरे को आजीवन कारावास हुआ। नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी दी गई। बता दें कि बिड़ला भवन में ही प्रार्थना सभा के दौरान गांधीजी पर 10 दिन पहले हमला हुआ था। मतब मदनलाल पाहवा नामक एक पंजाबी शरणार्थी ने गांधी पर बम फेंका था। गोडसे भी इससे पहले गांधीजी को मारने की कोशिश कर चुका था।
नई दिल्ली स्थित बिड़ला भवन की वो जगह (गांधी स्मृति) जहां 30 जनवरी 1948 को गांधीजी को गोली मार दी गई थी