जब बंदरों से डरकर भागे विवेकानंदजी, जानिए फिर क्या हुआ, पढ़िए 10 प्रेरक किस्से और सबक
- FB
- TW
- Linkdin
एक बार स्वामीजी के आश्रम में एक व्यक्ति पहुंचा। उसने कहा कि मन लगाकर मेहनत करने के बावजूद उसे सफलता नहीं मिलती। स्वामीजी ने कहा वो इसका समाधान खोजते हैं, तब तक वो पालतू कुत्ते को घुमाकर लाए। कुछ देर बाद आदमी लौटा, तो कुत्ते के हांफने की वजह पूछी। आदमी ने कहा कि कुत्ता आड़ा-टेड़ा भाग रहा था। स्वामीजी ने कहा कि यह तुम्हारी समस्या है। मंजिल सामने होकर भी हम इधर-उधर भागते हैं।
एक बार स्वामीजी बनारस गए थे। वहां मंदिर से लौटते समय बंदरों का झुंड उनके पीछे पड़ गया। वो प्रसाद छीनना चाहता था। स्वामीजी डरके मारे भागने लगे। तभी एक बुजुर्ग ने उनसे हंसकर कहा कि डरो मत, सामना करो। स्वामीजी रुक गए। इसके बाद बंदर वहां से भाग गए। इससे स्वामीजी ने सीखा कि समस्या का मुकाबला करना चाहिए।
एक विदेश महिला ने स्वामीजी से शादी करने का प्रस्ताव रखा। स्वामीजी ने कहा कि वो तो संन्यासी हैं। महिला बोली कि वो उनके जैसा बेटा चाहती है। यह सुनकर स्वामीजी ने महिला से कहा कि ठीक है, आज से वे उसके बेटे हुए। महिला ने यह सुना, तो वो गदगद हो उठी।
(अपने अनुयायियों के साथ बीच में बैठे स्वामीजी)
यह किस्सा तब का है, जब वे उतने प्रसिद्ध नहीं हुए थे। वे जयपुर में थे। वहां के राजा उनके बड़े भक्त थे, इसलिए स्वामीजी को अपने महल बुलवाया। राजा-महाराजा जब किसी मेहमान को अपने महल बुलवाते हैं, तो वहां नाच-गाने का प्रबंध होता है। इसी रस्म को निभाते हुए राजा ने स्वामीजी के स्वागत में एक सुंदर वेश्या को भेजा। लेकिन फिर राजा को गलती का एहसास हुआ कि स्वामीजी तो संन्यासी हैं। वेश्या को देखकर स्वामीजी डर गए कि कहीं उनकी वासना न जाग जाए, इसलिए उन्होंने खुद को एक कमरे में बंद कर दिया। यह देखकर वेश्या को दु:ख हुआ। उसने अपने नाच-गाने में अपनी व्यथा पेश की। यह सुनकर स्वामीजी का डर दूर हुआ। उन्होंने उस वेश्या को पवित्र आत्मा कहा। जिसके कारण उनके मन के अंदर की वासना दूर हुई।
(स्वामीजी और उनकी मां)
स्वामीजी को बचपन में उनके परिवारवाले वीरेश्वर कहकर पुकारते थे। इनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे। वहीं, दादा दुर्गाचरण दत्त संस्कृत और फारसी के बड़े विद्वान।
स्वामीजी ने 25 साल की उम्र में घर छोड़कर संन्यास ले लिया था। इनकी मां भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। उनका ज्यादातर समय शिवजी की पूजा-अर्चना में जाता था। स्वामीजी पर इसका गहरा असर पड़ा।
1871 में जब विवेकानंद 8 साल के थे, तब उन्होंने ईश्वरचंद विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में एडमिशन लिया। 1877 में उनका परिवार रायपुर चला गया। 1879 में फिर कलकत्ता लौटा। विवेकानंद ऐसे इकलौते छात्र थे, जिन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में फर्स्ट डिविजन हासिल की थी।
विवेकानंद जी फिटनेस को लेकर हमेशा सजग रहते थे। वे नियमित रूप से व्यायाम करते थे और खेलों में शामिल होते थे। दूसरों को भी वे यही सीख देते थे।
25 वर्ष की आयु में स्वामीजी ने गेरुआ कपड़े पहन लिए थे। इसके बाद पैदल ही पूरे देश की यात्रा की। विवेकानंद ने 31 मई, 1893 से अपनी यात्रा शुरू की। वे जापान, चीन और कनाडा होते हुए अमेरिका के शिकागो पहुंचे थे।
स्वामीजी सिर्फ 39 साल में वो काम कर गए, वो कई शताब्दियों तक लोगों को प्रेरणा देता रहेगा। गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर ने उनके बारे में कहा था कि यदि आप भारत को जानना चाहते हैं, तो विवेकानंद को पढ़िए।