MalayalamNewsableKannadaKannadaPrabhaTeluguTamilBanglaHindiMarathiMyNation
  • Facebook
  • Twitter
  • whatsapp
  • YT video
  • insta
  • ताज़ा खबर
  • राष्ट्रीय
  • वेब स्टोरी
  • राज्य
  • मनोरंजन
  • लाइफस्टाइल
  • बिज़नेस
  • सरकारी योजनाएं
  • खेल
  • धर्म
  • ज्योतिष
  • फोटो
  • Home
  • States
  • Other State News
  • प. बंगाल का वह गांव, जहां लोग भूख मिटाने खाते थे पत्तियां, महिलाओं ने बदल दी तस्वीर, एक ने और जबरदस्त काम किया

प. बंगाल का वह गांव, जहां लोग भूख मिटाने खाते थे पत्तियां, महिलाओं ने बदल दी तस्वीर, एक ने और जबरदस्त काम किया

कोलकाता। पश्चिम बंगाल (West Bengal) में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके लिए राजनीतिक दलों ने प्रचार शुरू कर दिया है। राज्य में जगह-जगह रैलियां शुरू हो गई हैं। इसी बीच, हम आपको इस राज्य के पुरुलिया जिले के झालदा (Jhalda) नाम के एक पिछड़े कस्बे के पास स्थित गांव की कहानी बताने जा रहे हैं। यह कहानी इस मामले में प्रेरणादाई है कि झालदा सब-डिविजन के अंतर्गत आने वाले पहाड़ों और जंगलों के बीच बसे जिलिंगसेलिंग नाम के आदिवासी गांव में मालती नाम की एक युवती ने शिक्षा और समाज-सेवा के क्षेत्र में जो काम किया, वह किसी भी पार्टी का कोई नेता नहीं कर सका। बता दें कि पुरुलिया पश्चिम बंगाल का बेहद पिछड़ा जिला रहा है और इस पूरे इलाके में जंगल और पहाड़ हैं। यहां जंगलों के बीच आदिवासियों के गांव हैं, जहां किसी तरह की कोई सुविधा नहीं पहुंची है। बेरोजगारी, गरीबी और अशिक्षा यहां की मुख्य समस्या है। यहां के अयोध्या नाम की पहाड़ी पर जिलिंगसेलिंग गांव है। इस पहा़ड़ी पर 30 मिनट तक चढ़ाई करने पर यह गांव मिलता है। झालदा से मुरुगमा तक सड़क पर साइनबोर्ड मिलते हैं, लेकिन जिलिंगसेलिंग गांव तक जाने के लिए कोई रोड नहीं है। अयोध्या पहाड़ी पर चढ़ने के बाद एक समतल जगह पर कुछ आदिवासी बच्चे खेलते नजर आ जा सकते हैं। वहां से गांव करीब 10 किलोमीटर दूर है। समझा जा सकता है कि यह गांव जंगल के काफी अंदर बसा हुआ है। इस गांव में आज तक किसी भी दल के नेता ने किसी तरह की कोई सुविधा पहुंचाने की कभी कोई कोशिश नहीं की। बता दें कि यह इलाका एक समय माओवादियों की गतिविधियों का भी केंद्र रह चुका है। लेकिन यहां मालती नाम की एक आदिवासी युवती ने जो काम किया, वह वाकई किसी के लिए भी प्रेरणादाई हो सकता है। जानें इसके बारे में।

5 Min read
Asianet News Hindi
Published : Mar 13 2021, 06:42 PM IST| Updated : Mar 13 2021, 06:58 PM IST
Share this Photo Gallery
  • FB
  • TW
  • Linkdin
  • Whatsapp
  • GNFollow Us
18
जिलिंगसेलिंग अयोध्या पहाड़ी पर स्थित गांवों में सबसे पिछड़ा है। एक समय यहां के लोग अपनी भूख मिटाने के लिए पेड़ों की पत्तियां तक चबाने पर मजबूर थे। जंगल में काफी अंदर होने की वजह से यह माओवादियों के लिए बेहतर ठिकाना बन गया था। साल 2010 में माओवादियों ने जिलिंगसेलिंग गांव में फॉरवर्ड ब्लॉक के 6 नेताओं की गोली मारकर हत्या कर दी थी। बहरहाल, बाद में भी सरकारी तंत्र ने यहां विकास का कोई काम नहीं किया।
28
इस आदिवासी इलाके में जितने भी गांव हैं, वहां अभी भी मिट्टी के घर ही मिलते हैं। जंगलों के बीच कंक्रीट की सड़कों से विकास की झलक तो मिलती है, लेकिन गांवों की हालत अच्छी नहीं है। वहीं, गांवों में मिट्टी के बने घरों में आदिवासी संस्कृति की झलक मिलती है। सभी घरों की दीवारों पर रंगों से तरह-तरह की आकृतियां बनाई गई हैं, जो आदिवासी कला की खासियत है। जहां तक जिलिंगसेलिंग गांव का सवाल है, दूसरे गांवों से इसकी स्थिति कुछ अच्छी है। यहां मिट्टी के घरों के अलावा ईंटों से बने घर भी दिख जाते हैं। वहीं घरों के निर्माण में बांस और पत्थरों का भी इस्तेमाल किया गया है।
38
जिलिंगसेलिंग गांव ही मालती का कार्यक्षेत्र है। वह इस गांव के विकास में बहुत ही अहम भूमिका निभा रही है। मालती एक घरेलू औरत है, लेकिन गांव के 135 बच्चों के लिए वह प्राइमरी स्कूल चलाती है। इस काम में उसका सहयोग उसके पति बांका मुर्मु और देवर भरत मुर्मु करते हैं। मालती की इस गांव में बांका मुर्मु से शादी तब हुई थी, जब वह हाईस्कूल की स्टूडेंट थी। यहां आने के बाद जब उसने गांव की बदहाली देखी तो उसने कुछ करने का इरादा कर लिया। उस समय गांव में स्कूल के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। गांव में पूरी तरह अक्षिक्षा और निरक्षरता का आलम था। बच्चे तो अपने गांव का नाम बोल तक नहीं पाते थे। इस गांव के लोग बाहरी लोगों से बातचीत करने में डरते तक थे। यह देखकर मालती बेचैन हो गई और उसने कुछ करने का इरादा पक्का कर लिया। इसके बाद मालती ने अपने पति और देवर के सहयोग से पहाड़ी पर स्थित अपने घर के पीछे एक प्राइमरी स्कूल खोला। पिछले साल कोरोना महामारी की वजह से जब लॉकडाउन लगाया गया तो हालात बुरे हो गए, लेकिन मालती ने हिम्मत नहीं हारी। आज मालती का स्कूल सफलतापूर्वक चल रहा है और स्थानीय लोग उन्हें इस अयोध्या पर्वत पर सीता, राम और लक्ष्मण के रूप में देखते हैं। मालती को स्थानीय आदिवासियों ने सीता का दर्जा दे रखा है, क्योंकि मालती ने उनके जीवन में बड़ा बदलाव लाया।
48
मालती के पति बांका मुर्मु और भारत मुर्मु जालदा कॉलेज के ग्रैजुएट हैं। वे अपने इलाके में स्कूल में पढ़ाने के अलावा और भी कई तरह के सामाजिक कामों में लंबे समय से लगे हैं। जब मालती ने इन कामों में रुचि दिखाई तो उनका उत्साह और भी बढ़ गया। उन्होंने बांस काटकर और पुआल से स्कूल का टेंटनुमा भवन तैयार कर दिया। इसके अलावा, वे शहर से ब्लैकबोर्ड खरीदकर लाए। मालती और उसके परिवार ने पूरे गांव में शिक्षा के लिए एक मुहिम की शुरुआत कर दी। उनका कहना था कि शिक्षा से ही अभावों और भूख की समस्या से मुक्ति मिलेगी। उइन लोगों ने घर-घर जाकर संपर्क करना शुरू कर दिया और बच्चों को स्कूल में लाने लगे।
58
गांव में सभी के कपड़े फटे और पुराने थे। महिलाओं के कपड़े तो कई जगह से सिले होते थे। किसी के पांव में चप्पल तक नहीं होती। इसके बावजूद मालती ने पति और दूसरे लोगों के साथ मिलकर गांव में शिक्षा की जो अलख जगाई, उससे गांव में उम्मीद की एक नई किरण फैली। कभी स्कूल में बच्चों की संख्या में कमी भी आती, लेकिन फिर समझाने पर ज्यादा बच्चे आने लगे। मालती, बांका और भरत ने स्थानीय एमएलए नेपाल महतो की सहायता मिली। उन्होंने स्कूल में मिड डे मील दिए जाने की व्यवस्था कराई। फिलहाल मालती के स्कूल में 135 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं।
68
गांव में भुखमरी की समस्या भी है। वहां का मुख्य भोजन चावल और नमक है। गरीबी की वजह से लोग सब्जियां खरीद नहीं पाते हैं। किसी तरह लोग आलू-चावल का जुगाड़ कर लेते हैं। मीट-मछली यहां के लोगों के लिए सपना ही है। आम तौर पर त्योहारों के मौके पर लोग मीट-मछली खाते हैं। वैसे, हर घर में मुर्गे-मुर्गी पाले जाते हैं और अंडा उपलब्ध रहता है। लेकिन त्योहारों के मौके पर ही इनका सेवन आदिवासी करते हैं। यहां सिंचाई की भी समस्या गंभीर है। ज्यादातर लोग मजदूरी करने के लिए पास के शहर में जाते हैं, लेकिन नियमित तौर पर मजदूरी नहीं मिलती है।
78
ऐसी कठिन परिस्थितियों में भी मालती, बांका और भरत संघर्ष कर रहे हैं। उनका मानना है कि अगर बच्चे शिक्षित हो गए तो उन्हें आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता है। वे खुद अपना विकास कर लेंगे। मालती स्कूल का विस्तार करना चाहती है, लेकिन इसके लिए उसे वित्तीय मदद की जरूरत है। मालती चाहती है कि स्कूल में एक सेकंडरी स्कूल भी खोला जाए, ताकि बच्चों की शिक्षा में कोई बाधा नहीं आए।
88
अब विधानसभा चुनावों के बीच यह सवाल है कि राजनीतिक दलों के नेता जंगलों के बीच पहाड़ी पर स्थित ऐसे गांवों के विकास के लिए क्या योजना बनाते हैं। ऐसे आदिवासी गांवों की कोई कमी नहीं है, जहां आज भी लोग भुखमरी के शिकार हैं। शिक्षा और दूसरी सुविधाएं वहां के लोगों के लिए अभी सपना है। फिर हर गांव में मालती और उसके पति व देवर जैसे सामाजिक रूप से जागरूक लोग नहीं हैं। यह राजनीतित दलों के नेताओं के लिए एक बड़ा सवाल है, जो अभी वोट के लिए कैम्पेनिंग कर रहे हैं। अगर वे इस तरफ थोड़ा भी ध्यान देते हैं, तो हर गांव में कार्यकर्ता खड़े हो जाएंगे, जिनकी विकास में अहम भूमिका होगी।

About the Author

AN
Asianet News Hindi
एशियानेट न्यूज़ हिंदी डेस्क भारतीय पत्रकारिता का एक विश्वसनीय नाम है, जो समय पर, सटीक और प्रभावशाली खबरें प्रदान करता है। हमारी टीम क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय घटनाओं पर गहरी पकड़ के साथ हर विषय पर प्रामाणिक जानकारी देने के लिए समर्पित है।

Latest Videos
Recommended Stories
Related Stories
Asianet
Follow us on
  • Facebook
  • Twitter
  • whatsapp
  • YT video
  • insta
  • Download on Android
  • Download on IOS
  • About Website
  • Terms of Use
  • Privacy Policy
  • CSAM Policy
  • Complaint Redressal - Website
  • Compliance Report Digital
  • Investors
© Copyright 2025 Asianxt Digital Technologies Private Limited (Formerly known as Asianet News Media & Entertainment Private Limited) | All Rights Reserved