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इस देश ने बनाई कोरोना वायरस की वैक्सीन, बंदरों पर हुआ सफल ट्रायल, अब इंसानों पर चल रहा परीक्षण
बीजिंग. कोरोना वायरस का कहर दुनियाभर में जारी है। अब तक इस महामारी की कोई वैक्सीन नहीं बन पाई है। लेकिन अब कोरोना को लेकर राहत भरी खबर आ रही है। बताया जा रहा है कि चीन की एक कंपनी ने कोरोना की वैक्सीन बना ली है। इस वैक्सीन के जरिए बंदर को कोरोना के संक्रमण से बचाया गया है। कोरोना वायरस से दुनियाभर में अब तक 1.91 लाख लोगों की मौत हो चुकी है।
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चीन की जिस कंपनी ने ने वैक्सीन बनाने का दावा किया है, उसका कहना है कि वैक्सीन का सबसे पहले रीसस मकाउ यानी लाल मुंह वाले बंदरों पर ट्रायल हुआ है। ट्रायल के बाद यह पता चला है कि इन बंदरों को कोरोना वायरस नहीं हो सकता। कंपनी ने 16 अप्रैल से इंसानों पर वैक्सीन का ट्रायल शुरू कर दिया है।
चीन के बीजिंग में मौजूद साइनोवैक बायोटेक कंपनी ने कोरोना की वैक्सीन को पिछले दिनों 8 बंदरों को दी थी। तीन हफ्ते बाद बंदरों की दोबारा जांच की गई। इसमें चौंकाने वाले नतीजे सामने आए।
बंदरों के फेफड़ों में ट्यूब के जरिए वैक्सीन के रूप में कोरोना वायरस भी डाला गया था। तीन हफ्ते बाद पता चला कि 8 बंदरों में से किसी को कोरोना संक्रमण नहीं हुआ।
साइनोवैक कंपनी के डायरेक्टर मेंग विनिंग ने बताया, जिस बंदर को सबसे ज्यादा डोज दी गई। उसमें कोरोना वायरस के कोई भी लक्षण नहीं दिखाई दे रहे हैं। वहीं, जिन बंदरों को कम डोज दी गई, उनमें हल्के लक्षण दिखे, हालांकि, बाद में उन्हें भी कंट्रोल कर लिया गया।
साइनोवैक ने इस रिपोर्ट को अपनी वेबसाइट पर भी सार्वजनिक किया है। डायरेक्टर का कहना है कि उन्हें पूरा भरोसा है कि यह वैक्सीन इंसानों पर भी अच्छा असर डालेगी।
विनिंग ने कहा, हमने वैक्सीन को बनाने में पुराने तरीके को अपनाया है। पहले बंदर को कोरोना संक्रमित किया गया। फिर उसके खून से वैक्सीन बना लिया। उसे दूसरे बंदर में डाला गया। इस तरीके से गरीब देशों को भी महंगी वैक्सीन बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
वहीं, विशेषज्ञों को भी इस वैक्सीन से उम्मीद जगी है। माउंट सिनाई इकान स्कूल ऑफ मेडिसिन के वायरोलॉजिस्ट फ्लोरिन क्रेमर ने कहा, मुझे वैक्सीन बनाने का तरीका अच्छा लगा। ये पुराना और बेहद कारगार है।
उधर, पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी के डगलस रीड ने कहा, ये तरीका अच्छा है। लेकिन यह काफी कम बंदरों पर टेस्ट किया गया। जब बड़े पैमाने पर जांच की जाएगी, तो नतीजों पर ज्यादा भरोसा किया जा सकेगा।
साइनोवैक के वैज्ञानिकों का दावा है कि हमने कुछ ऐसे बंदरों को भी संक्रमित किया, जिन्हें वैक्सीन नहीं दी गई। उनमें ये लक्षण साफ दिख रहे हैं।
साइनोवैक का दावा है कि इस वैक्सीन में बंदर और चूहे के शरीर से ली गई एंटीबॉडीज को मिलाया गया है। इसके बाद इस वैक्सीन का ट्रायल चीन, इटली, स्विट्जरलैंड, स्पेन और ब्रिटेन के मरीजों पर किया गया है। इसमें मौजूद एंटीबॉडीज कोरोना संक्रमण को निष्क्रिय करने में सफल होते दिख रहे हैं।