सार
लॉकडाउन ने कइयों के घरों की खुशियां छीन ली हैं। यह दु:खद कहानी औरंगाबाद की रहने वाली बिंदिया की भी है। 9 महीने की गर्भवती बिंदिया को मजबूरी में लुधियाना से अपने घर के लिए पैदल निकलना पड़ा। यह दूरी कोई मामूली नहीं थी। उसे पूरे 1350 किमी चलना था। लेकिन अंबाला पहुंचने पर उसे लेबर पैन हुआ। कुछ लोगों की मदद से हॉस्पिटल ले जाया गया। उसने एक बेटी को जन्म दिया, लेकिन वो मर चुकी थी। बिंदिया के आंसू नहीं रुक रहे। यह उसका पहला बच्चा था।
अंबाला, हरियाणा. लॉकडाउन के दौरान मजबूरी के मारे गरीबों की कई दु:खद कहानियां सामने आ रही हैं। हजारों लोगों को पैदल अपने घरों की ओर निकलना पड़ा। इनमें बच्चे-बूढ़े और गर्भवती महिलाएं भी हैं। कह सकते हैं कि लॉकडाउन ने कइयों के घरों की खुशियां छीन ली हैं। यह दु:खद कहानी औरंगाबाद की रहने वाली बिंदिया की भी है। 9 महीने की गर्भवती बिंदिया को मजबूरी में लुधियाना से अपने घर के लिए पैदल निकलना पड़ा। यह दूरी कोई मामूली नहीं थी। उसे पूरे 1350 किमी चलना था। लेकिन अंबाला पहुंचने पर उसे लेबर पैन हुआ। कुछ लोगों की मदद से हॉस्पिटल ले जाया गया। उसने एक बेटी को जन्म दिया, लेकिन वो मर चुकी थी। बिंदिया के आंसू नहीं रुक रहे। यह उसका पहला बच्चा था।
बेटी को मौत से सदमे में है बिंदिया
बिंदिया अपने पति के साथ घर को निकली थी। अंबाला पहुंचने पर जब उसे लेबर पैन हुआ, तो पुलिस की मदद से उसे अम्बाला सिटी के सिविल अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। बेटी की मौत का बिंदिया को गहरा सदमा लगा है। उसने कहा कि यह उसका पहला बच्चा था। वो तो इसलिए अपने घर पहुंचना चाहती थी, ताकि बच्चा ठीक से हो सके। उसे क्या मालूम था कि रास्ता इतना मुश्किल भरा होगा। बच्ची को अस्पताल के खाली प्लाट में जब दफनाया जा रहा था, तब बिंदिया फूट-फूटकर रो रही थी। उसने बताया कि रास्ते पर वो दर्द से परेशान थी। कभी उसकी ननद, तो कभी पति उसे संभाल रहे थे। बिंदिया की 2 साल पहले शादी हुई थी। सालभर पहले वो पति के साथ लुधियान आई थी। उसने कभी नहीं सोचा था कि वापसी इतनी दु:खद होगी।
गुजरात से पैदल चलकर यूपी पहुंची 8 महीने की गर्भवती
भरतपुर, राजस्थान. कोरोना संक्रमण के चलते देशव्यापी लॉकडाउन ने लोगों की जिंदगी जैसे तहस-नहस कर दी है। रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। हजारों लोगों को नौकरी गंवानी पड़ी है। लॉकडाउन ने जैसे लोगों की कमर तोड़कर रख दी है। खासकर प्रवासी मजदूरों के लिए तो कोरोना काल जिंदगी के सबसे बड़े संकट से कम नहीं है। हजारों प्रवासी मजदूरों को पैदल अपने घर जाना पड़ रहा है। यह सिलसिला अभी भी जारी है। यह महिला 8 महीने की गर्भवती है। वो गुजरात से पैदल चलकर यूपी के लिए निकली थी।
किसी ने नहीं की मदद..
यह हैं यूपी के कासगंज की रहने वाली सोनेंद्री। इनका परिवार गुजरात में मजदूर करता था। लॉकडाउन में कामकाज बंद हुआ, तो भूखों मरने की नौबत आ गई। घर लौटना मजबूरी थी, लेकिन कोई साधन भी नहीं था। लिहाजा, इनका परिवार दूसरे मजदूरों के साथ पैदल ही घर को निकल पड़ा। करीब 1000 किमी का यह सफर था। 10 दिन पैदल चलकर जब सोनेंद्री राजस्थान के भरतपुर पहुंचीं, तो वहां खड़ीं बसों को देखकर उन्हें उम्मीद जागी। बताया गया कि ये बसें यूपी के लिए खड़ी हैं। इनसे मजदूरों को यूपी ले जाया जाएगा। लेकिन उनकी यह उम्मीद भी टूट गई, जब मालूम चला कि यूपी सरकार ने बसों को मंजूरी नहीं दी। लिहाजा, सोनेंद्री फिर से पैदल ही अपने घर को निकल पड़ीं। 8 महीने की गर्भवती होने के बाद भी इतना लंबा सफर? इस सवाल वे इतना ही बोलीं,'जो भगवान का मंजूर होगा, वही होगा।'
किसी ने लिफ्ट नहीं दी..
सोनेंद्री ने बताया कि रास्ते में इक्का-दुक्का वाहन दिखे, लेकिन किसी ने मदद नहीं की। हालांकि उन्होंने कहा कि यह समस्या सबके साथ थी। गाड़ियां भरी हुई थीं या लोग डरके मारे मदद नहीं कर रहे थे।