सार
पहला कृत्रिम जीन बनाने वाले भारत के महान वैज्ञानिक हर गोबिंद खुराना (Har gobind khurana) को नोबल पुरस्कार (Nobel prize) मिला था। उन्होंने एक छोटे से गांव से पढ़ाई की और भारत के सबसे बड़े वैज्ञानिक बनने तक का सफर तय किया।
Achievements@75. किसी भी जीव के रंग रूप और संरचना को निर्धारित करने में जीन कोड की बड़ी भूमिका होती है। इस अनुवांशिक कोड की भाषा समझने और उसकी प्रोटीन संश्लेषण में भूमिका को रेखांकित करने के लिए भारतीय वैज्ञानिक डॉ. हर गोबिंद खुराना को दुनिया के सबसे बड़े पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। हर गोबिंद खुराना को ऐसे वैज्ञानिक के तौर पर जाना जाता है, जिन्होंने डीएनए रसायन में बड़ा काम किया और जीव रसायन के क्षेत्र में क्रांति ला दी थी। उन्हें अमेरिकी वैज्ञानिकों डॉ. रॉबर्ट होले और मार्शल निरेनबर्ग के साथ नोबल पुरस्कार दिया गया था।
कौन थे डॉ. हरगोबिंद खुराना
डॉ. हर गोबिंद खुराना का जन्म 9 जनवरी 1922 को तब के पंजाब मुल्तान जिले में हुआ था। एक छोटे से गांव में पेड़ के नीचे पढ़ाई करने से लेकर महान वैज्ञानिक बनने तक डॉ. हर गोबिंद खुराना का जीवन संघर्ष प्रेरणादायी है। एक बहन व 4 भाइयों में खुराना सबसे छोटे थे। 1943 में उन्होंने अब के पाकिस्तान के लाहौर की पंजाब यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया था। 1945 में उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन किया। 1948 में उन्होंने पीएचडी पूरी की। इसक बाद उन्हें भारत सरकार से स्कॉलरशिप मिली और वे आगे की पढ़ाई के लिए ब्रिटेन गए। वहां लिवरपुल यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की। 1952 में वे कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ कोलंबिया पहुंचे। यहीं से डॉ. खुराना ने जीव विज्ञान पर काम करना चालू किया।
कब मिला नोबल पुरस्कार
कनाडा के यूनिवर्सिटी ऑफ कोलंबिया में वे 1959 तक रहे और 1960 में वे अमेरिका गए और विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी के साथ जुड़ गए। 1966 में हर गोबिंद खुराना को अमेरिका की नागरिकता मिल गई। इसके दो साल बाद ही उन्हें नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया। यह पुरस्कार उन्हें जेनेटिक कोड और प्रोटीन संश्लेषण में इसकी भूमिका की व्याख्या के लिए प्रदान किया गया। डॉ. हर गोबिंद खुराना ने बाद में कृत्रिम जीन का भी निर्माण किया। 4 साल बाद ही उन्होंने बताया कि उन्होंने इस कृत्रिम जीन को एक कोशिशा के भीतर रखने में कामयाबी हासिल की है। डॉ. हर गोबिंद खुराना ने बायो टेक्नोलॉजी की बुनियाद रखने में बड़ी भूमिका निभाई।
2011 में हुआ निधन
डॉ. हर गोबिंद खुराना ने 1970 में अनुवांशिकी में बड़ा योगदान दिया। उनकी रिसर्च टीम ने एक खमीर जीन की पहली कृत्रिम प्रतिलिपि संश्लेषित करने में सफल रही। डॉ. हर गोबिंद खुराना अंतिम समय तक अध्ययन और अनुसंधान से जुड़े रहे। भारत के प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. हर गोबिंद खुराना ने 9 नवंबर 2011 को अमेरिका के मैसाचुसेट्स में अंतिम सांस ली।
यह भी पढ़ें