सार

देश की आजादी के लिए बलिदान देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों में शहीद भगत सिंह का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। अंग्रेज अधिकारी उनसे खौफ खाते थे। इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु 23 मार्च 1931 को फांसी पर चढ़ गए थे।
 

नई दिल्ली। भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी यूं ही नहीं मिली थी। इसके लिए भारत माता के हजारों वीर सपूतों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। इन वीर सपूतों में शहीद भगत सिंह का नाम प्रमुखता से लिया जाता था। अंग्रेज अधिकारी उनसे खौफ खाते थे। ब्रिटिश पुलिस लगातार उनकी तलाश करती रहती थी। गिरफ्तार होने से बचने के लिए वह भेष बदलकर यात्रा करते थे। 

1928 में उन्होंने इसी तरह लाहौर और लखनऊ रेलवे स्टेशन पर ब्रिटिश पुलिस को चकमा दिया था। लाहौर स्टेशन पर पश्चिमी पोशाक पहने एक युवक, उसकी पत्नी और एक अन्य युवक हावड़ा जाने वाली ट्रेन में सवार हुए। युवक एक बच्चे को गोद लिए हुए था। बच्चा सो रहा था। वहीं, दूसरा युवक सामान ढो रहा था। ट्रेन लखनऊ पहुंची तो सभी उतर गए और अपने-अपने ठिकाने पहुंच गए। लाहौर और लखनऊ स्टेशन पर ब्रिटिश पुलिस के जवान भगत सिंह को पकड़ने का इंतजार करते रह गए। भगत सिंह ने पश्चिमी पोशाक पहना था, उनके साथी सुखदेव सामान ढो रहे थे और उनके साथ दुर्गावती देवी व उनका बच्चा सफर कर रहा था। 

पाकिस्तान के लायलपुर में हुआ था भगत सिंह का जन्म
भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा गांव में हुआ था। यह गांव अब पाकिस्तान में है। राष्ट्रवादी परिवार में जन्मे भगत सिंह बचपन में ही स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति आकर्षित थे। वह तेजतर्रार राष्ट्रवादी नेता लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित लाहौर के नेशनल कॉलेज में पढ़ते थे। पढ़ाई के साथ ही वह राजनीतिक आंदोलन में भी शामिल होते थे। भगत सिंह और उनके युवा मित्र अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष में विश्वास करते थे। भगत सिंह ने 1928 में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन का गठन किया था। 

अक्टूबर 1928 में लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ मार्च का नेतृत्व करते हुए लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए थे। उनपर अंग्रेजों ने लाठीचार्ज किया था। कुछ दिनों बाद राय का निधन हो गया था। इस घटना ने देश को दुख और गुस्से में डुबो दिया था। भगत सिंह और उनके युवा साथियों ने लाला लाजपत राय की मौत के बाद हथियार उठा लिया। उन्होंने अपने हीरो की मौत का बदला लेने का संकल्प लिया। 17 दिसंबर 1928 को सिंह और अन्य ने लाहौर में पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी और साइकिल से भाग निकले। सिंह के साथी चंद्रशेखर आजाद ने उनका पीछा करने की कोशिश कर रहे एक अन्य पुलिस कांस्टेबल की गोली मारकर हत्या कर दी।

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इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए चढ़ गए थे फांसी पर 
चार महीने बाद भगत सिंह और उनके साथियों ने फिर से हमला किया। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली विधानसभा के अंदर बम फेंके। इसके बाद भागने की कोशिश किए बिना दोनों ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। उनपर सैंडर्स की हत्या के मामले में भी केस चला। 24 आरोपियों में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को मौत की सजा सुनाई गई थी। इसने देश को हिलाकर रख दिया। महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू और जिन्ना ने उनकी फांसी के खिलाफ अभियान चलाया। 

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भगत सिंह और उनके साथियों ने 116 दिनों तक जेल के अंदर भेदभाव के खिलाफ भूख हड़ताल की, जिसने उन्हें देश का नायक बना दिया। मामले के आरोपियों में से एक जतिन दास अनशन करते हुए शहीद हो गए। भगत सिंह ने वकील नियुक्त करने से भी इनकार कर दिया। इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु 23 मार्च 1931 को फांसी पर चढ़ गए। उनके शव उनके रिश्तेदारों को नहीं सौंपे गए, बल्कि गुप्त रूप से उनका अंतिम संस्कार किया गया और उनकी राख को सतलुज नदी में फेंक दिया गया।