सार

झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता पर खतरा मंडरा रहा है। राज्यपाल रमेश बैस को इस मामले में अंतिम फैसला लेना है। राज्य में अभी तक 11 सीएम बन चुके हैं जबकि तीन बार राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा है। 

रांची. खनन लीज मामले में फंसे झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश चुनाव आयोग ने गवर्नर से की है। चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित करने का फैसला राज्यपाल रमेश बैस पर छोड़ा गया है। इस मामले में उन्होंने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से राय ली है। संभवत: आज (शुक्रवार) को फैसला इस मामले में आ सकता है। झारखंड की राजनीतिक सफर की बात करें तो राज्य में शुरू से ही राजनीतिक अस्थिरता का माहौल रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के कार्यकाल को छोड़ दिया जाए तो कोई भी मुख्यमंत्री अपने पांच साल के कार्यकाल को पूरा नहीं कर पाया है। यही कारण है कि झारखंड निर्माण के 22 साल के अंदर राज्य में 11 मुख्यमंत्री बन चुके हैं। यहीं नहीं इस दौरान तीन बार राष्ट्रपति शासन भी लग चुका है।

बीजेपी- जेएमएम का रहा दबदबा
झारखंड में बीजेपी और जेएमएम का दबदबा रहा है। पांच बार बीजेपी के मुख्यमंत्री बने तो पांच पार जेएमएम के नेता मुख्यमंत्री बने लेकिन इनमें से एक को छोड़कर किसी ने भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया। बीजेपी से अर्जुन मुंडा और जेएमएम से शिबू सोरेन तीन-तीन बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं। भाजपा नेता रघुवर दास , झारखंड के एक मात्र ऐसे सीएम हैं जिन्होंने अपने 5 साल के कार्यकाल को पूरा किया है। इसके अलावा कोई भी सीएम अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है। 

निर्दलीय भी बना है सीएम
झारखंड ही एक ऐसा राज्य है जहां पर एक निर्दलीय को मुख्यमंत्री बनाया गया। 10 सितंबर 2006 को निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा ने कांग्रेस और जेएमएम के समर्थन से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन वो भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। मधु कोड़ा लगभग दो साल तक झारखंड के मुख्यमंत्री रहे।

राजनीतिक अस्थिरता के कारण नहीं हुआ विकास
15 नवंबर 2000 को बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य की स्थपना हुई। जल-जंगल-जमीन के नाम पर चले लंबे संघर्ष के बाद झारखंड की स्थापना हुई। अलग राज्य के बनने के बाद लोगों को काफी उम्मीद थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। विकास के नाम पर झारखंड देश के अन्य राज्यों की तुलनना में काफी पिछड़ा नजर आता है। इसका मुख्य कारण झारखंड की राजनीति है। झारखंड अलग होने के 22 साल में झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता रही।

2005 से 2009 के बीच चार सीएम बने
साल 2005 के विधानसभा चुनाव के बाद से 2009 विधानसभा चुनाव के बीच 5 सालों में झारखंड में 4 मुख्यमंत्री बने और एक बार राष्ट्रपति शासन भी लगा। इस दौरान शिबू सोरेन दो बार, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा ने एक-एक बार सीएम पद की शपथ ली। वहीं 19 जनवरी 2009 से 29 दिसंबर 2009 तक राष्ट्रपति शासन लगा रहा। 

तीन बार लग चुका है राष्ट्रपति शासन
झारखंड की राजनीतिक इतिहास में राष्ट्रपति शासन का भी जिक्र है। 22 सालों में यहां पर तीन बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया। 19 जनवरी 2009 को झारखंड में पहली बार राष्ट्रपित शासन लागू हुआ उस वक्त केंद्र में यूपीए की सरकार थी और सैय्यद सिब्ते रजी राज्यपाल थे। वहीं, 18 जनवरी 2013 को राज्य में तीसरी बार राष्ट्रपति शासन लागू हुआ था।

2019 में नहीं मिला किसी को स्पष्ट बहुमत
2019 में हुए विधानसभा चुनाव में भी झारखंड की जनता ने अस्पष्ट जनादेश दिया। जिसके बाद जेएमए की सरकार कांग्रेस की मदद से बनी। कयास लागया जाने लगा की यह सरकार भी सुरक्षित है और बिना किसी विवाद के पांच सालों तक चलेगी, लेकिन 2 साल बाद ही झारखंड की राजनीति एक बार फिर अस्थिरता की ओर जाती दिख रही है।

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