सार

हिंदू पंचांग के अनुसार, साल का दसवां महीना पौष 20 दिसंबर, सोमवार को शुरू हो चुका है, जो 17 जनवरी तक रहेगा। धर्म ग्रंथों में इस महीने का विशेष महत्व बताया गया है। इस महीने से जुड़ी कई परंपराएं और मान्यताएं धर्म ग्रंथों में बताई गई हैं।

उज्जैन.  खर मास की शुरूआत 20 दिसंबर, सोमवार से हो चुकी है। इस महीने से जुड़ी कई परंपराएं हैं। ऐसी ही एक परंपरा है भगवान सूर्य की उपासना। वैसे तो सूर्यदेव की पूजा रोज करनी चाहिए, लेकिन पुराणों में इस महीने सूर्य को अर्घ्य देने का खास महत्व बताया है। मान्यता है कि पौष महीने में सूर्य पूजा से सेहत अच्छी रहती है और उम्र भी बढ़ती है।

सूर्य के भग स्वरूप की पूजा
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र के अनुसार, वेदों से पुराणों और कलियुग तक सूर्य को प्रधान देवता माना गया है। ये ही प्रत्यक्ष देवता हैं। ग्रंथों में सूर्य के 12 रूप बताए गए हैं। हर स्वरूप की पूजा का अलग-अलग फल मिलता है। इसलिए पुराणों में हर महीने सूर्य के खास रूप की पूजा करने का विधान बताया गया है। जिससे हर मनोकामना पूरी होती है। ग्रंथों के मुताबिक, पौष मास में सूर्य देव के भग स्वरूप की पूजा करनी चाहिए।

वेद और उपनिषद में सूर्य
अथर्ववेद और सूर्योपनिषद के अनुसार सूर्य परब्रह्म है। ग्रंथों में बताया गया है कि पौष मास मंप भगवान भास्कर ग्यारह हजार किरणों के साथ तपकर सर्दी से राहत देते हैं। इनका वर्ण रक्त के समान है। शास्त्रों में ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य को ही भग कहा गया है और इनसे युक्त को ही भगवान माना गया है। यही कारण है कि पौष मास का भग नामक सूर्य साक्षात परब्रह्म का ही स्वरूप माना गया है। पौष मास में सूर्य को अर्घ्य देने तथा उसके निमित्त व्रत करने का भी विशेष महत्व धर्म शास्त्रों में लिखा है।

ग्रंथों के मुताबिक क्या करें
1.
आदित्य पुराण के अनुसार, पौष माह के हर रविवार को तांबे के बर्तन में शुद्ध जल, लाल चंदन और लाल रंग के फूल डालकर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए और विष्णवे नम: मंत्र का जाप करना चाहिए।
2. दिनभर व्रत रखना चाहिए और खाने में नमक का उपयोग नहीं करना चाहिए। संभव हो तो सिर्फ फलाहार ही करें।
3. रविवार को व्रत रखकर सूर्य को तिल-चावल की खिचड़ी का भोग लगाने से मनुष्य तेजस्वी बनता है। पुराणों के अनुसार पौष माह में किए गए तीर्थ स्नान और दान से उम्र लंबी होती है और बीमारियां दूर हो जाती हैं।