सार
ज़्यादा बोलने से परेशान हैं? जानिए चुप रहने की कला और इसके फ़ायदे। कब चुप रहना चाहिए और कैसे खुद पर कंट्रोल रखें, जानें यहां।
रिलेशनशिप डेस्क। कई बार लोगों को शिकायत होती हैं। वह अक्सर बोलते रहते हैं, चाहे कितना भी कोशिश कर लें उनसे चुप नहीं रह जाता है। कई बार ज्यादा बोलना इमेज को खराब करता है। साथ ही बहुत लोग बातों को गंभीरता से नहीं लेते। वैसे तो चुप रहना एक आर्ट है। जो सबको नहीं हटाती लेकिन आपको भी गलत मौके पर बोलने की आदत है तो ये कुछ टिप्स बेहद काम आ सकते हैं। जिन अपनाकर आप खुद की मदद कर सकते हैं।
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किन मौकों पर चुप रहना चाहिए ?
- कहावत है जब दो लोग बात करें बीच में कभी नहीं बोलना चाहिए। ये चीजें बच्चे हो या फिर बड़े सभी पर लागू होती है। अगर आपको बीच में दूसरों की बात काटने की आदत हैं तो इसे बदल दीजिए। इससे लोगों पर गलत इंपेक्ट पड़ता है और वह आपसे बात करने में कतराते हैं।
- कई बार लोग उकसाने की कोशिश करते हैं, ताकि आप उसने बहस करें और बात खराब हो जाए। ऐसे मौकों पर अक्सर चुप रहना चाहिए। ऐसा करने से आपके अंदर सेल्फ कंट्रोल की फीलिंग आएगी, साथ ही आप बेवजह बहस करने से भी बचेंगे।
- अक्सर लोगों की पसंद और पर्सनालिटी बिल्कुल अलग-अळग होती हैं। इस विषय पर भी बहस करने से बचना चाहिए, अक्सर इन छोटी-छोटी बातों पर आपा खो देते हैं। आप स्माइल के साथ बिना कुछ कहे इस तरह के डिस्कशन टाल कर सकते हैं।
- अगर चुप रहने पर कोई आपको घमंडी कहता हैं तो इसे दिल से बिल्कुल मत लीजिए। चुप रहना गुरूर नहीं बल्कि सब्र है। जितना आप चुप रहेंगे। खुद से उतना सवाल करेंगे और इसके जवाब भी जरूर मिलेंगे। ऐसे में बोलना तभी चाहिए जहां जरूरत है। चाहे घरवालों की बात क्यों न हो। आपको लगता है अगर प्वाइंट ऑफ व्यू रखना जरूरी है तभी बोले वरना आप चुर रहकर भी सिचुएशन हैंडल कर सकते हैं।
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