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किसने की थी धरती पर पहली शादी, विवाह के नियम के पीछे किसका रहा योगदान, आइए जानते हैं यहां
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सृष्टि की रचना ब्रह्मा जी ने किया। उन्होंने अपने शरीर को दो भागा कर दिए। एक भाग 'का'कहलाया जबकि दूसरा भाग 'या'कहलाया। दोनों को जब मिलाया गया तो 'काया' यानी शरीर बना। इसी काया से नर और नारी का जन्म यानी पुरुष और महिला का जन्म हुआ।
ब्रह्म पुराण के मुताबिक ब्रह्मा जी धरती पर पुरुष के रूप में मनु को भेजा और स्त्री के रूप में शतरूपा को भेजा। पुरुष और स्त्री के रूप में दोनों ब्रह्मा जी की पहली रचना थी। उन्होंने मनु और शतरूपा को सृष्टि का ज्ञान देखकर धरती पर भेजा।
कहा जाता है कि पृथ्वी पर आने के बाद जब दोनों मिले तो एक दूसरे को पारिवारिक ज्ञान के मुताबिक विवाह कर लिए। एक दूसरे को पति-पत्नी मान लिया। मतलब धरती पर पहला विवाह मनु और शतरूपा ने किया था। कहा जाता है कि मनु और शतरूपा के साथ बेटे और तीन बेटियां हुई थीं।
मनु और शतरूपा की शादी विवाह के नियम के अनुसार हुआ था। इसे लेकर कुछ धर्मग्रंथ कहते हैं कि दोनों ने विवाह तो किया था, लेकिन नियम के मुताबिक नहीं। क्योंकि विवाह की परंपरा की शुरुात श्वेत ऋषि ने की थी। उन्होंने ही विवाह के सारे नियम नाए थे। फेरों के महत्व से लेकर सिंदूरदान, कन्यादान और मंगलसूत्र पहनाने के नियम बनाए थे।
मतलब मनु और शतरूपा के आने के बाद विवाह के नियम बने थे। इन नियमों के अनुसार पहली शादी किसने की उसके बारे में कुछ पता नहीं है। लेकिन ब्रह्म पुराण के मुताबिक मनु और शतरूपा वैवाहिक बंधन में बंधकर संतान की उत्पति की थी।
हालांकि जैसे-जैसे दौर आगे बढ़ा विवाह के नियमों में भी बदलाव देखने को मिले। हिंदू धर्म की शादी में जो वचन पंडित के द्वारा बोले जाते हैं उसमें कहा जाता है कि पत्नी पति की आज्ञा के बैगर कोई काम नहीं करेगी। विवाह के बाद पत्नी पति के अधिन हो जाती है। लेकिन श्वेत ऋषि के बनाए वैवाहिक नियमों में पति-पत्नी को समान स्थान देने की बात कही गई थी। इससे साफ हो जाता है कि जैसे-जैसे दौर बदलता गया वैसे नियमों में भी बदलाव होते गए।
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