सार

फागुनी मस्ती के माहौल में यहां रंगपंचमी पर हर साल निकाली जाने वाली "गेर" (होली का पारंपरिक जुलूस) को वैश्विक पहचान दिलाने के लिये जिला प्रशासन यूनेस्को को जल्द नामांकन भिजवाने जा रहा है। 

इंदौर मध्य प्रदेश, (भाषा) फागुनी मस्ती के माहौल में यहां रंगपंचमी पर हर साल निकाली जाने वाली "गेर" (होली का पारंपरिक जुलूस) को वैश्विक पहचान दिलाने के लिये जिला प्रशासन यूनेस्को को जल्द नामांकन भिजवाने जा रहा है। इसके जरिये इस पारम्परिक आयोजन को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के तौर पर यूनेस्को की सूची में शामिल करने का दावा पेश किया जायेगा।

यूनेस्को की मान्यता दिलाने की हो रही कोशिश
जिलाधिकारी लोकेश कुमार जाटव ने मंगलवार को संवाददाताओं से कहा, "हम गेर को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में यूनेस्को की मान्यता दिलाने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिये नयी दिल्ली की संगीत नाटक अकादमी के जरिये यूनेस्को को जल्द ही नामांकन भिजवाया जायेगा। संगीत नाटक अकादमी को भारत में इस काम के लिये नोडल केंद्र का दर्जा प्राप्त है।"

रंगपंचमी पर गेर को ठेठ रिवायती अंदाज में पेश करने की तैयारी 
उन्होंने बताया कि गेर के संबंध में भिजवाये जाने वाले नामांकन को यूनेस्को के परखने के बाद इस पर उसके अंतिम निर्णय में करीब डेढ़ साल का समय लग सकता है। बहरहाल, इस बार 14 मार्च को पड़ने वाली रंगपंचमी पर गेर को ठेठ रिवायती अंदाज में पेश करने की तैयारी की जा रही है।

 सैलानियों को बैठाने के किए जा रहे खासे इंतजाम 
जिलाधिकारी ने कहा, "हम कोशिश कर रहे हैं कि गेर का होलकरकालीन स्वरूप कायम रहे और लोग इसमें पारंपरिक वेशभूषा में शामिल होकर हर्बल रंगों का इस्तेमाल करें।"उन्होंने बताया कि गेर के करीब दो किलोमीटर के रास्ते पर दोनों ओर की बहुमंजिला इमारतों की छतों पर सैलानियों को बैठाने के इंतजाम किये जा रहे हैं ताकि वे रंगों के इस नजारे को बेहतर तरीके से निहार सकें।

बैलगाड़ियों का होता है बड़ा काफिला 
जानकारों ने बताया कि मध्य प्रदेश के इस उत्सवधर्मी शहर में गेर की परंपरा रियासत काल में शुरू हुई, जब होलकर राजवंश के लोग रंगपंचमी पर आम जनता के साथ होली खेलने के लिये सड़कों पर निकलते थे। तब गेर में बैलगाड़ियों का बड़ा काफिला होता था जिन पर टेसू के फूलों और अन्य हर्बल वस्तुओं से तैयार रंगों की कड़ाही रखी होती थी। यह रंग गेर में शामिल होने वाले लोगों पर बड़ी-बड़ी पिचकारियों से बरसाया जाता था।

यह है इस परंपरा का मकसद
उनके मुताबिक इस परंपरा का एक मकसद समाज के हर तबके के लोगों को रंगों के त्योहार की सामूहिक मस्ती में डूबने का मौका मुहैया कराना भी था। राजे-रजवाड़ों का शासन खत्म होने के बावजूद इंदौर के लोगों ने इस रंगीन रिवायत को अपने सीने से लगा रखा है।

फागुनी मस्ती में डूबते हैं हजारों लोग
गेर को "फाग यात्रा" के रूप में भी जाना जाता है जिसमें हजारों हुरियारे बगैर किसी औपचारिक बुलावे के उमड़कर फागुनी मस्ती में डूबते हैं। रंगपंचमी पर यह रंगारंग जुलूस शहर के अलग-अलग हिस्सों से गुजरते हुए ऐतिहासिक राजबाड़ा (इंदौर के पूर्व होलकर शासकों का महल) के सामने पहुंचता है, जहां रंग-गुलाल की चौतरफा बौछारों के बीच हजारों हुरियारों का आनंद में डूबा समूह कमाल का मंजर पेश करता है। 

(ये खबर न्यूज एजेंसी पीटीआई/भाषा की है। एशियानेट हिन्दी न्यूज ने सिर्फ हेडिंग में बदलाव किया है।)