सार

26 जून की सुबह 7 बजे इंदिरा ने ऑल इंडिया रेडियो के जरिए जनता को संबोधित कर आपातकाल लगाने के फैसले के बारे में बताया। इस दौरान उन्होंने बताया कि उनके खिलाफ गहरी साजिश रची गई है, जिससे वे आम आदमी के लाभ के लिए किए जा रहे प्रगतिशील उपायों को ना कर सकें। 

नई दिल्ली. 25 जून, 1975 को दोपहर करीब 3:30 बजे इंदिरा गांधी के वफादार सहयोगी और प बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे उनके पास आते हैं। रे को संविधान में एक खामी खोजने का जिम्मा दिया गया था। रे ने पूरा दिन भारत और अमेरिका के संविधान का अध्य्यन करने में निकाल दिया, आखिर में उन्हें ये खामी मिल ही गई। उन्होंने इंदिरा गांधी को बताया कि सरकार आर्टिकल 352 का इस्तेमाल कर "आंतरिक आपातकाल" लागू कर सकती है। (1971 भारत पाकिस्तान युद्ध के चलते बाहरी आपातकाल पहले से ही लागू था ) इंदिरा को जेपी आंदोलन से खतरा बढ़ गया था। (जबसे जेपी ने पुलिस और सेना से आंदोलन में शामिल होने की अपील की थी, सशस्त्र विद्रोह की आशंका भी बढ़ गई थी।) 

इस सुझाव पर बिना देर किए इंदिरा गांधी की टीम ने "आपातकाल की घोषणा" के आधिकारिक दस्तावेज तैयार किए। इनमें भारत के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर होने थे। अहमद इंदिरा के रबरस्टैम्प कहे जाते थे। उन्हें एक साल पहले ही इंदिरा ने राष्ट्रपति बनाया था। इसी वजह से इंदिरा को विश्वास था कि आपातकाल की घोषणा वाले दस्तावेज पर वे बिना देर करें हस्ताक्षर कर देंगे। शाम 5.30 बजे, इंदिरा और रे राष्ट्रपति के निवास पर गए, यहां राष्ट्रपति ने उनकी इच्छाओं को मानते हुए इस पर हस्ताक्षर कर दिए। 

रात 2 बजे तक गिरफ्तार कर लिए गए थे अधिकांश नेता 
जब इंदिरा घर पर लौटीं तब तक उनके बरामदे में सभी विपक्षी नेताओं की लिस्ट लग गई थी, जिन्हें जेल भेजा जाना था। उसी रात सभी के खिलाफ अरेंस्ट वारंट जारी किए गए। तड़के सुबह 2 बजे तक उनमें से ज्यादातर गिरफ्तार भी हो चुके थे। 




सुबह 7 बजे की आपातकाल की घोषणा
26 जून की सुबह 7 बजे इंदिरा ने ऑल इंडिया रेडियो के जरिए जनता को संबोधित कर आपातकाल लगाने के फैसले के बारे में बताया। इस दौरान उन्होंने बताया कि उनके खिलाफ गहरी साजिश रची गई है, जिससे वे आम आदमी के लाभ के लिए किए जा रहे प्रगतिशील उपायों को ना कर सकें। इतना ही नहीं उन्होंने इमरजेंसी को ऐसे बताने की कोशिश की कि उन्हें विदेशी हाथों से देश की रक्षा करने के लिए इस तरह का कदम उठाना पड़ रहा है। 

प्रेस को सेंसर कर दिया गया
प्रेस को सेंसर कर दिया गया था। अगले दिन प्रकाशित करने से पहले सभी समाचार पत्रों को सरकार के पास मंजूरी के लिए भेजा जाना था। अखबार (संपादकों) द्वारा आपातकाल के खिलाफ विरोध में किसी भी तरह की साम्रगी छापने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इतना ही नहीं कई अखबारों के दफ्तरों की बिजली काट दी गई, इससे समाचार पत्र प्रिटंर भी ठहर गए। वहीं, कई समाचार पत्रों के संपादकों ने अपना विरोध दर्ज कराने के लिए कई तरह की रणनीतियों का भी इस्तेमाल किया। इंडियन एक्सप्रेस ने इसका विरोध जताते हुए संपादकीय पेज खाली छोड़ दिया। 




प्रेस की सेंसरशिप से बड़े पैमाने पर अफवाहें फैलीं। इंदिरा गांधी ने तानाशाही तरीकों का इस्तेमाल करते हुए बड़े-बड़े होर्डिंग लगाने का आदेश दिया, ताकि लोग इस पर बातचीत ना करें और अपनी 'ड्यूटी' का पालन करें।

इस तरह के बिलबोर्ड के अलावा, सरकार प्रायोजित वीडियो बनाकर टीवी पर प्रसारित किए गए, सिनेमाघरों में चलाए गए ताकि अफवाहें ना फैलाई जाएं। 

मीसा कानून के तहत की गई कार्रवाई
आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (MISA) के तहत सभी प्रकार के विरोध प्रदर्शन (धरना, घेराव, सत्याग्रह आदि) पर रोक लगा दी गई। यहां तक ​​कि आम आदमी को भी नहीं बख्शा गया और सिर्फ आपातकाल या इंदिरा या सरकार की आलोचना करने तक पर गिरफ्तारी हो रही थी। ऐसे कई उदाहरण थे जहां व्यक्तिगत और राजनीतिक प्रतिशोध के लिए भी मीसा अधिनियम का दुरुपयोग किया गया था। गिरफ्तार लोगों की संख्या जेलों की सीमा से अधिक थी, ऐसे में कई लोगों को सिर्फ खंभे और जंजीरों से बांध दिया गया था।




एक प्रसिद्ध फिल्म निर्माता द्वारा 1978 में निर्मित "जमीर के बंदी" एक शक्तिशाली डॉक्यूमेंट्री बनाई गई। इसमें दिखाया गया कैसे निर्दोष पुरुष और महिलाओं को छोटे से कारणों के चलते जेल में डाल दिया गया। डॉक्यूमेंट्री में पहला इंटरव्यू एक ऐसे युवक का है, जिसे इंदिरा गांधी का एक स्केच बनाने की वजह से गिरफ्तार किया गया था। 

यहां देखें डॉक्यूमेंट्री...
 https://www.youtube.com/watch?v=HolbfS-vONw


यहां तक ​​कि राजघरानों तक को भी नहीं बख्शी गया। राजमाता विजयाराजे सिंधिया और महारानी गायत्री देवी को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
 

भेष बदलकर रहे कुछ नेता
आरएसएस जैसे संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया और इसके अधिकांश प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि, कुछ नेताओं ने लोगों तक सही जानकारी पहुंचाने के लिए कुछ नेता भूमिगत भी हो गए , जिससे वे जेल में बंद नेताओं की आवाज को जनता तक पहुंचा सकें। 


नरेंद्र मोदी

जैसे नरेंद्र मोदी। वे उस वक्त 25 साल के थे। इंदिरा गांधी के सबसे मुखर आलोचक डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने गिरफ्तार होने से बचने और लोगों तक जानकारी पहुंचाने के लिए आपातकालीन अवधि तक सिख बनकर रहे। 


डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी

लोकतंत्र की हत्या, अत्याचार के साथ भारत को अगले 21 महीनों के लिए अंधेरे में धकेल दिया गया। इंदिरा के बेटे संजय गांधी ने अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता के कारण उन परियोजनाओं के बारे में नहीं बताया जो अंततः विफल रहीं। मां-बेटे की जोड़ी ने पूरे देश को बंधक बनाकर रखा।