सार

मथुरा की जिला अदालत ने मंगलवार को भरतपुर के राजा मानसिंह और उनके दो साथियों की हत्या के 35 साल पुराने मामले में 11 पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। इससे पहले मंगलवार को कोर्ट ने 11 आरोपियों को दोषी पाया था। वहीं, 3 आरोपियों को बरी कर दिया। इस मामले में 18 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।

मथुरा. मथुरा की जिला अदालत ने मंगलवार को भरतपुर के राजा मानसिंह और उनके दो साथियों की हत्या के 35 साल पुराने मामले में 11 पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। इससे पहले मंगलवार को कोर्ट ने 11 आरोपियों को दोषी पाया था। वहीं, 3 आरोपियों को बरी कर दिया। इस मामले में 18 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। इनमें से 1 पहले ही बरी हो चुका है, जबकि 3 की मौत हो चुकी है। 

कौन थे राजामान सिंह?
राजा मान सिंह भरतपुर रियासत के महाराजा कृष्णजी के बेटे थे। उनका जन्म 1921 में हुआ था। इसके बाद उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा इंग्लैंड में हासिल की। वे कुछ सालों बाद लंदन से मैकेनिकल इंजीनियर की डिग्री लेकर वापस लौटे। उन्हें राजा साहब सीनियर के नाम से भी जाना जाता था। 

मान सिंह की शादी 1945 में कोल्हापुर राज्य के ठिकाना कांगल के नरेश की बेटी अजय कौर के साथ हुआ था। उनकी तीन बेटियां थीं। राजा मानसिंह ने 1951 में राजनीति में हाथ अजमाया। वे निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर पर 7 बार विधानसभा चुनाव जीते। 

सीएम के हेलिकॉप्टर में मार दी थी टक्कर
साल 1985 में विधानसभा चुनाव होने थे। राजा मान सिंह के खिलाफ डींग क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी रिटायर आईएएस बृजेंद्र सिंह मैदान में थे। उस वक्त कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने उनके झंडे का अपमान कर दिया था। इससे नाराज होकर राजा मान सिंह ने तत्कालीन सीएम शिवचरण माथुर की रैली में जाकर उनके हेलिकॉप्टर में जीप से टक्कर मार दी। 

कैसे हुई हत्या?
हेलिकॉप्टर को टक्कर मारने के मामले में उन पर एक केस दर्ज हुआ। मानसिंह अपने साथियों के साथ 21 फरवरी को आत्मसमर्पण करने जा रहे थे। हालांकि, कुछ लोगों का कहना था कि वे चुनावी सभा में जा रहे थे। उसी वक्त तत्कालीन डिप्टी एसपी और पुलिसकर्मियों ने उनपर फायरिंग कर दी। इस दौरान उनके दो साथी सुमेर सिंह और हरि सिंह भी मारे गए। 

इस दौरान राजा मानसिंह के दामाद विजय सिंह भी उनके साथ थे। वे फायरिंग में बच गए। बाद में पुलिस उन्हें स्टेशन ले गई। बाद में उन्हें दबाव के चलते छोड़ दिया गया। विजय सिंह ने इस मामले में केस दर्ज कराया। 

इस मामले में जांच सीबीआई को सौंप दी गई। सीबीआई ने जुलाई 1985 में चार्जशीट दाखिल की थी। इस मामले में राज्य और केंद्र सरकार का काफी विरोध हुआ। इसके बाद मुख्यमंत्री को अपना पद भी छोड़ना पड़ा था।